नोट देव! तुम कागज के टुकडे हो पर,
हो कितने शक्तिशाली।
तुम्हारा ही आधिपत्य है दुनिया पर,
हो कितने प्रभावशाली।
सारी दुनिया की दृष्टि तुम पर,
हो कितने गौरवशाली।।
गरीबी की आशा, अमीरी की परिभाषा,
सपनों की मंजिल, भागा-दौडी की भाषा।
समस्त कर्मो के संचालक, तुम हो एकाधिकारी शासक।
सर्व दुःख- दारिद्रय विनाशक,
साक्षत् लक्ष्मी के तुम हो उपासक।।
हे नोट! तुम्हारी सर्व श्रेष्ठता सर्वमान्य है।
सौभाग्यशाली का तुमसे ही महकता संसार है।
किन्तु क्या इस प्रकार ही जीवन का उद्धार है?
हे जगत के उपकारक! क्या मेरी विनय स्व्ीकार है?
नोट देव! तुम सुपात्र के श्रृंगार बनो।
कुपात्र को छोडकर सुपात्र को सम्पन्न करो।
धर्म के रक्षक बनो, अधर्मियों का बल हरो।
जीवन के उजियारे हो, निष्पाप ज्योतिर्मय रहो।।
परिश्रमी का बल बनो, योग्यता का वरण करो।
दुनिया के शिखर पर आसीन अपनी
सार्थकता सिद्ध करो।।
-सीमा सक्सेना, अजमेर