हीरो: जिसके आगे ‘हीरे’ भी बेनूर

dilip kumarफुटबॉल खिलाड़ी दिलीप कुमार फिल्मों के ऐसे नायक हैं जो कभी भूमिका और अदायगी से समझौता नहीं करते। चौंक गए न आप, दिलीप जी यानि यूसुफ खान फुटबॉल खिलाड़ी ! जी हां… लेकिन ठहरिये…वे एक अच्छे गायक और सितारवादक भी हैं। सच्च…युवा पीढ़ी तो क्या बल्कि उम्र का छठा-सातवां दशक पार करने वाले भी शायद दिलीप कुमार की इन खासियतों को भूल गए होंगे। दिलीप जी ने ऋषिकेश मुखर्जी की एक फिल्म में गाया भी था। गजलें पसंद करने वाले दिलीप कुमार का फिल्मी सफर 1944 में फिल्म ‘ज्वार-भाटा’ से शुरू हुआ। आज 65 साल की सिनेमाई यात्रा के इस हीरो की नकल करने वालों की संख्या दिलीप जी की उम्र से भी कहीं अधिक होगी। यह बात बिग बी ने भी अपने शब्दों में कह चुके हैं। रंगमंच की अदाकारी भी उन्होंने फिल्मों में दिखाई और ‘दिलीप स्टाइल’ में दिखाई… उदाहरण के रूप में ‘देवदास’ का नाम सबसे पहले और आज की पीढ़ी की यादाश्त के हिसाब से ‘मशाल’ का जिक्र प्रथम वरीयता में करना उचित रहेगा। मशाल में सड़क पर मरती बीबी को बचाने की गुहार लगाने वाला दृश्य जहां दर्शकों को झकझोरता है वहीं मिमिकरी करने वालों की रोजी का जरिया भी बन गया था। सगीना में अदाकारी के जलवे बिखेरने वाले दिलीप कुमार की फिल्में एक से बढ़कर एक सफलता अर्जित करने वाली तो रहीं, साथ ही बॉलीवुड में नये युग का सूत्रपात भी इनसे ही हुआ। उम्र में बड़े, दिखने में भी बड़े और अदाकारी में भी बड़े दिलीप के सामने अपने समय के स्टार हीरो भी बौने दिखे और यही वजह रही कि नायक के रूप में दिलीप ने ही बड़ी उम्र के अभिनेताओं को प्रमुख भूमिकाएं दिलवाने कीशुरुआत की जैसा कि क्रांति, कर्मा, शक्ति और सौदागर जैसी फिल्मों की मिसाल देकर कहा जा सकता है। डबल रोल की फिल्में राम और श्याम से आगे नहीं निकल सकी चाहे तकनीक कितनी ही आधुनिक हो गई है। पेशावर में पठान परिवार से रिश्ता रखने वाले दिलीपजी के 12 भाई-बहिन हैं। पिता फल-व्यापारी थे मगर दिलीप को तो सिनेमा के रुपहले पर्दे पर छा जाना था सो व्यापार के सिलसिले में महाराष्ट्र में आने के बाद किसी बात पर पिता से अनबन हुई तो वे पूना जा पहुंचे। वहां उन्होंने भी फल बेचे। यह उनके व्यक्तित्व का एक और पहलू है कि वे फुटबॉल खिलाड़ी,, गायक, सितारवादक के साथ फ्रूट बेचने वाले भी हैं। प्यार के मामले में भले ही उनका नाम कामिनी कौशल, मधुबाला, वैजयंतीमाला और कितनी ही नायिकाओं से जोड़ा गया हो किन्तु उन्होंने 44 साल की उम्र में सायरा बानों से विवाह किया। सायरा दिलीपजी से आधी उम्र की हैं। दिलीप की दूसरी शादी आस्मा से हुई मगर परवान नहीं चढ़ सकी। दिलीप जी की फिल्मों की फेहरिस्त बनाई जाये तो खुद दिलीप जी के बारे में लिखना कम पड़ सकता है। बेशुमार फिल्मों में उनके अभिनय, कलात्मकता और कथाशिल्प के साथ साथ संवाद अदायगी के लिये यादगार कुछ नाम चुनिंदा हीरों के रूप में पेश हैं – जुगनू 1947, शहीद 1948, बाबुल 1950, दीदार 1951, आन-दाग 1952, उड़न खटोला 1955, नया दौर 1957, मधुमती-यहूदी 1958, कोहिनूर – मुगल-ए-आजम 1960, लीडर 1964, राम और श्याम 1967, सगीना 1970, शक्ति 1982 सहित दिल दिया दर्द लिया, अंदाज, आरजू, जोगन, देवदास, मेला, संघर्ष आदि….। मगर यह फेहरिस्त यहीं पूरी नहीं होती और नहीं दिलीप के बेमिसाल अभिनय की यात्रा का वृतांत खत्म होता है। दिलीप ने अपने निर्देशन में एक फिल्म कलिंगा का निर्माण आरंभ किया किंतु कारणवश वह फिल्म पूरी होकर सिनेमाघरों तक नहीं पहुंच सकी। दिलीप ने देशभक्ति का जज्बा पैदा करने वाले चरित्र को साकार किया था और उन पर फिल्माये गीत सदाबहार बन गए।

मोहन थानवी
मोहन थानवी

आवाज दो हम एक हैं…., वतन की आबरू खतरे में है, एक हो जाओ 1962 की भारत-चीन जंग के बाद के दौर के हैं जो कभी बिसर नहीं सकते। दिलीप के मुकाबले के तो नहीं किंतु उनकी तरह अपनी ही शैली के अलहदा नायक रहे ‘राजकुमार’। वे नाम और काम को सार्थक करने वाले राजकुमार थे जबकि दिलीप कुमार जी ऐसे हीरो, जिनके आगे बाकी हीरे भी बेनूर-से लगते रहे। इति।

दिलीप – एक नजर
असली नाम – मोहम्मद यूसुफ खान
पिता का नाम – मोहम्मद सरवर खान
जन्म – 11 दिसंबर पेशावर में
कद – 5 फीट 10 इंच
पहली फिल्म – ज्वार-भाटा 1944
दिलीप की पसंद के एक्टर – जिमी स्टीवर्ट, इनग्रिड, बर्गमैन
अवार्ड मिले – फिल्मफेयर अवार्ड आठ बार बेस्ट एक्टर
दाग – 1952
आजाद, देवदास – 1955
नया दौर – 1957
कोहिनूर – 1960
लीडर – 1964
राम और श्याम – 1967
शक्ति – 1982

-मोहन थानवी,
हिन्दी, सिन्धी एवं राजस्थानी साहित्यकार
विश्वास वाचनालय, 82, सार्दूल कॉलोनी

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