-रतन सिंह शेखावत- गोवरिकर की फिल्म जोधा-अकबर को श्री राजपूत करणी सेना ने इतिहास के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए विरोध किया है। यह विवाद अभी ठीक से शांत ही नहीं हुआ था कि एकता कपूर की बालाजी टेलीफिल्म्स ने इसी विषय जोधा-अकबर पर सीरियल बना जी टीवी पर प्रसारित करने की घोषणा व तैयारी करली| जी. टीवी पर इस सीरियल के प्रोमो देखने के बाद देशभर के राजपूत संगठनों में इस सीरियल को लेकर रोष भड़क गया, इंडियन ब्राडकास्टिंग फाउंडेशन में शिकायत के बाद फाउंडेशन के अधिकारीयों व राजपूत संगठनों के प्रतिनिधियों से इस मुद्दे पर चर्चा हुई व जी. टीवी टीम ने राजपूत संगठनों द्वारा व्यक्त रोष व ऐतिहासिक तथ्य बालाजी टेलीफिल्म्स को देने के बाद बालाजी टेलीफिल्म्स विवाद को सुलझाने के बजाय उल्टा जी टीवी को हड़काने लगी कि आप उन्हें कैसा सीरियल बनाना है पर राय देने वाले कौन होते है ?
बालाजी टेलीफिल्म्स को जोधा का अकबर की बेगम नहीं होने के प्रमाणिक ऐतिहासिक संदर्भ देने के बावजूद बालाजी टेलीफिल्म्स सीरियल में झूंठा इतिहास दिखाने पर तुली है|
जबकि इतिहास में कहीं भी जोधाबाई का अकबर की पत्नी के रूप में उल्लेख नहीं है| कोई भी ऐतिहासिक साक्ष्य या ऐतिहासिक स्रोत भी इस बारे में कोई संकेत नहीं देता है कि “जोधाबाई-अकबर की पत्नी थी|” प्रश्न उठता है कि इस विवाद की शुरुआत कहाँ से हुआ? और पुरे ऐतिहासिक साक्ष्य मिलने के बावजूद फ़िल्मकार इस गलती को सुधारने में रूचि क्यों नहीं लेते ? हम इस पर दृष्टिपात करें
अग्रवाल स्नातकोतर महाविद्यालय के इतिहास विभागाध्यक्ष और प्रिंसिपल प्रो. राजेंद्र सिंह खंगारोत इस संबंध में लिखते है :–
“इस सब की शुरुआत हुई कर्नल जेम्स टॉड की पुस्तक “एनल्स एंड एंटीकिव्टीज ऑफ़ राजस्थान” से| इस पुस्तक के भाग 2 में उन्होंने लिखा- “जोधाबाई के अकबर विवाह के कारण शाही परिवार का संबंध जोधपुर से स्थापित हुआ|” (पृष्ठ ९६५) यहाँ टॉड ने उल्लेख किया है कि- “ये जोधाबाई जोधपुर की जोधाबाई है न कि आमेर की|” (पृष्ठ ९६५) पर इसी पुस्तक में पुस्तक के संपादक विलियम कुक ने “आईने ए अकबरी” पृष्ठ ६१९ का सन्दर्भ देते हुए तोड़ के आशय को स्पष्ट किया है| कुक लिखते है- “जोधाबाई के बारे में कुछ संदेह हो सकता है परन्तु यह स्पष्ट है कि वह जहाँगीर की पत्नी थी, अकबर की नहीं|” (पृष्ठ ९६५)
अन्यत्र कर्नल जेम्स टॉड ने “जोधाबाई को जोधपुर के मोटाराजा उदयसिंह की पुत्री बताया है|” (एनल्स एंड एंटीकिव्टीज ऑफ़ राजस्थान, अंक 1 (पृष्ठ 389), इसी पृष्ठ पर फुटनोटों में कुक ने स्पष्ट किया है- “शाहजहाँ की माँ जोधबाई का विशाल मकबरा आगरा के पास सिकन्दर में अवस्थित है और निकट ही अकबर के अवशेष भी जमीदोज किये गये है| जोधबाई एक संबोधन है जिसका मतलब है “जोधपुर की बेटी|” उनकी पहचान के संबंध में कुछ संदेह उत्पन्न हो सकते है लेकिन यह निर्विवाद है कि वे उदयसिंह की पुत्री और जहाँगीर की पत्नी थी|” (आईने ए अकबरी पृष्ठ ६१९)
इस निष्कर्ष के साथ कि जोधाबाई शाहजहाँ की माँ थी; यह स्वत: सिद्ध हो जाता है कि वह जहाँगीर की ही पत्नी थी| “जोध” शब्द मूलतः जोधपुर का प्रारंभिक शब्दांश ही प्रतीत होता है| कुक ने यहाँ यह स्पष्ट कर दिया है कि जोधबाई “जोधपुर की बेटी” के रूप में प्रचलित अभिधा (नाम) का ही पर्याय है|
फिल्म “मुग़ल ए आजम” में फ़िल्मकार ने टॉड के मत से प्रेरणा लेकर जोधाबाई को अकबर की पत्नी बताया| फिल्म के पटकथा लेखक ने फुटनोटों के रूप में कुक के दिए स्पष्टीकरणों को नजर अंदाज कर दिया, साथ ही निर्माता और निर्देशक ने भी ऐतिहासिक तथ्यों पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया|
फिल्मांकन की दृष्टि से यह फिल्म इतनी भव्य थी कि जिसने भी इस फिल्म को देखा सभी ने जोधाबाई को अकबर की पत्नी के रूप में स्वीकारा| जिसने भी इस तथ्य के विरुद्ध कोई विचार या सत्य व्यक्त करने का प्रयास करना चाहा उन्हें व्यर्थ सिद्ध कर दिया गया| इससे सिद्ध होता है कि सिनेमा- चाहे वह सही हो या गलत- किस हद तक आम आदमी के मस्तिष्क को प्रभावित करता है|
इतिहास केवल और केवल तथ्यों पर ही आधारित होता है| किसी को भी तथ्यों को बदलने का अधिकार नहीं है और न ही ये बदले जाने चाहिये| इतिहास में दर्ज प्रत्येक घटना भी तथ्यों पर आधारित होती है और यह तथ्य अपरिवर्तनीय होते है| जो बदल सकता है वह है उस घटना की केवल विश्लेषणात्मक व्याख्या| उदाहरण के लिए पानीपत का प्रथम युद्ध २१ अप्रैल १५२६ को लड़ा गया और बेनजीर भुट्टो की हत्या २७ दिसम्बर २००७ में हुई- ये तथ्य है; कैसे, कब, कहाँ, किसने, और क्यों ? –ये विश्लेषण के विषय हो सकते है|
दिग्भ्रमित गाइड फतेहपुर सीकरी स्थित जोधाबाई के महल को अकबर-जोधा संबंधों की पुष्टि के एक और तर्क के रूप में प्रस्तुत करते है और उस महल को अकबर की पत्नि जोधाबाई का महल बताते है जबकि वी.एस. भार्गव इसे स्पष्ट करते हुए कहते है कि –“अनभिज्ञ गाइडों द्वारा फतेहपुर सीकरी स्थित महल को जोधाबाई- जो कि उनके अनुसार अकबर की बेगम थी का महल बताने से पर्यटकों के मध्य एक गलत परम्परा पड़ी, परन्तु समकालीन इतिहास इस परम्परा की पुष्टि नहीं करता| इसीलिए भारत के इतिहास की इस प्रमुख समस्या के समाधान हेतु इसे नकारना उचित होगा|” (देखें- “मारवाड़ एंड द मुग़ल एम्परर्स” पृष्ठ 59)
सतीश चन्द्र ने अपनी पुस्तक “मीडिवल इंडिया” में फतेहपुर सीकरी के उस महल के बारे में वर्णन करते हुए कहा है- “हरम के महलों में से एक महल को जोधाबाई का महल” कहा गया जबकि जोधाबाई उसकी पुत्रवधू थी, पत्नी नहीं|” (पृष्ठ 436)
सामान्य रूप से लेखन करने वाले लेखकों और इतिहास के प्रबुद्ध विद्वानों में पर्याप्त अंतर होता है| साधारण तौर पर, लिखने वाले “मुग़ल ए आजम” या “अनारकली” जैसी फिल्मों से कथ्य ग्रहण कर सकते है परन्तु इतिहास के विद्वान् प्राथमिक और प्रमाणिक तथ्यों का अनुसंधान कर ही अपनी लेखनी को लिपिबद्ध करेंगे| कुछ इत्तेफकिया लेखकों द्वारा भ्रमवश जोधाबाई को अकबर की पत्नी बताने की गलती द्वारा अथवा कुछ सरकारी अधिकारीयों द्वारा लिखित “कॉफी टेबल” पुस्तकों द्वारा या टूरिस्ट गाइडों द्वारा इसी भ्रमित पथ का राही बनने के बावजूद प्रमाणिक ऐतिहासिक तथ्यों को झुठलाया नहीं जा सकता|
सामयिक या ऐतिहासिक फिल्में सिनेमा का अत्यावश्यक हिस्सा है और होनी भी चाहिये परन्तु उपयुक्त शोध के बिना ये फ़िल्में निरर्थक हो जाती है| सामान्य व्यक्तियों के अवचेतन पर सिनेमा का गहरा प्रभाव होता है| जैसा कि पहले भी कहा गया है इतिहास सिर्फ और सिर्फ तथ्यों पर आधारित होता है, कल्पना पर नहीं| हाँ ! ऐतिहासिक तथ्यों के दिग्दर्शन हेतु वेशभूषा, आभूषण तथा तत्कालीन वातावरण को कल्पना के उपयुक्त सांचों में ढाला जा सकता है|
सिनेमाई, साहित्यिक, काव्यात्मक, कलात्मक अधिकारों में छूट लेना ठीक हो सकता है परन्तु क्या हमें इतिहास को बदलने का अधिकार है ?
क्या हम अपना स्वयं का नया इतिहास सृजित करने की छूट ले सकते है ? क्या “मुगले ए आजम” में हुई गलती को दोहराया जाना चाहिये ? क्या दो गलतियाँ मिलकर “एक सही” का निर्माण कर सकती है ? कदापि नहीं, निश्चित तौर पर नहीं| इन्हें समय के साथ सुधारना ही होगा|”
http://www.gyandarpan.com से साभार