-विजय शर्मा- पिछले कुछ दिनों से भारत के दो चेहरे सर्वाधिक चर्चा में हैं, एक भारतीय
क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का, तो दूसरा गुजरात के
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का। इतना ही नहीं, अगर देखा जाए तो दोनों में
काफी समानताएं भी हैं।
जैसे महेंद्र सिंह धोनी के अंदर एक अच्छा ‘लीडर’ है, जो जानता है कि टीम
को किस तरह एक लय में लाकर सफलता अर्जित करनी है, वैसे ही नरेंद्र मोदी
के अंदर एक अच्छा ‘खिलाड़ी’ मौजूद है, जो मौका देखकर एक अच्छा दांव
खेलना अच्छी तरह जानता है। दोनों अपने अपने क्षेत्र के आज लोकप्रिय
चेहरे हैं। दोनों का चेहरा आज एक ब्रांड बन चुका है, एक राजनीति का
प्रतिनिधित्व कर रहा है तो दूसरा खेलनीति का। इसमें भी कोई शक नहीं कि
दोनों की अत्यंत लोकप्रियता ने दो विधाओं को बेहद लोकप्रिय बनाया है।
अगर महेंद्र सिंह धोनी झारखंड के एक ग्रामीण क्षेत्र व मध्यवर्गीय
परिवार से आते हैं तो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी गुजरात के
एक मध्यवर्गीय ग्रामीण परिवार से संबंध रखते हैं। इतना ही नहीं, जब धोनी
राष्ट्रीय टीम में पहली बार नजर आए थे, तो उनका गेटअप बिल्कुल एक
साधारण ग्रामीण युवक का था, लेकिन धीरे धीरे वे एक मॉर्डन युवा आइकन बने।
ऐसा ही कुछ नरेंद्र मोदी के साथ हुआ, जब उन्होंने पहली बार गुजरात की
सत्ता संभाली तो वे बिल्कुल ग्रामीण क्षेत्र से संबंधित व्यक्ति जैसे
थे, जिन्होंने उनके पहले के वक्तव्य सुने या देखे उनको आज के मॉर्डन
मोदी और कल के मोदी में काफी अंतर नजर आएगा।
महेंद्र सिंह धोनी को जब भारतीय क्रिकेट टीम की कमान सौंपी गई, उन दिनों
भारतीय टीम बेहद बुरे वक्त से गुजर रही थी, और धोनी के सामने एक आदर्श
टीम खड़ी करने की बहुत बड़ी चुनौती थी, खास सीनियर खिलाड़ियों से तालमेल
बिठाते हुए, लेकिन धोनी ने बहुत जल्द टीम इंडिया को एक नई पहचान और नई
उर्जा दी। कुछ ऐसा ही मामला नरेंद्र मोदी के साथ था, जब उनको पूर्व
प्रधान मंत्री अटलबिहारी वाजपेई की सिफारिश पर गुजरात की गद्दी सौंपी गई,
तो उस समय गुजरात भी बार बार लग रहे राष्ट्रपति शासन से तंग परेशान हो
चुका था। मोदी से पहले गुजरात में सरकारें अस्थिर माहौल में चलती थीं।
केवल नरेंद्र मोदी ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिनके आने के बाद गुजरात में
कभी राष्ट्रपति शासन लागू नहीं हुआ, और उसके बाद आज का गुजरात किसी से
छुपा नहीं।
भारतीय क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर भारत के लिए एक विश्व कप जीतना चाहते थे,
लेकिन उनका यह सपना पूरा हुआ महेंद्र सिंह धोनी की अगुवाई वाली टीम में
शामिल होने से, कुछ ऐसा ही सपना ‘देश का शीर्ष पद’ एलके आडवानी देख रहे
हैं, लेकिन अफसोस है कि वह नरेंद्र मोदी की टीम में शामिल होकर नहीं,
बल्कि खुद अगुवाई करते हुए। उम्मीद है कि महेंद्र सिंह धोनी की तरह
नरेंद्र मोदी अपने इस सीनियर प्लेयर का सपना पूरा करेंगे, ऐसा नहीं कि
केवल नरेंद्र मोदी को सीनियर्स का विरोध झेलना पड़ रहा है, बल्कि
महेंद्र सिंह धोनी का भी सीनियर्स के साथ तेरह का आंकड़ा रहा है।
आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफी जीतने के बाद महेंद्र सिंह धोनी एक ऐसे कप्तान
बन गए, जिसने लगभग आईसीसी की सभी बड़ी प्रतियोगिताओं में खिताबी जीत
हासिल की, वहीं नरेंद्र मोदी राजनीति के क्षेत्र में इतना आगे निकल गए कि
आज उनकी पार्टी या राजनीति से ज्यादा लोग उनको जानते हैं। वे राजनीति का
ब्रांड बनते जा रहे हैं।

इतना ही नहीं, बयान देने की बात हो या किसी विशेष विवाद पर बोलने की हो,
वहां पर भी महेंद्र एवं नरेंद्र में काफी समानताएं हैं। नरेंद्र मोदी को
गोधरा दंगों के लिए मीडिया ने बार बार टार्गेट किया, लेकिन वे चुपके से,
कभी क्षुब्ध होकर निकल गए, बिना कुछ प्रतिक्रिया दिए, जब किसी विशेष
मौके पर बयान देने की बात आई तो बयान इस कदर दिए, अगले दिन अख़बार की
सुर्खियां बने। वहीं, महेंद्र सिंह धोनी आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफी के लिए
रवाना होने से पहले दो विवादों ‘आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग से तार जुड़ने
और मैनेजमेंट फर्म में शेयर होने का मामला‘ के बीच घिरे हुए थे, , लेकिन
महेंद्र सिंह धोनी ने मीडिया से दूरी बनाई, और पूरा ध्यान चैंपियन्स
ट्रॉफी पर लगाया, अंत आज वे मीडिया धोनीमय हो गया।
एक और समानता, समय के साथ साथ नरेंद्र मोदी और महेंद्र सिंह धोनी की
लोकप्रियता बढ़ी, लेकिन दोनों के नाम छोटे होने लगे, जैसे नरेंद्रभाई
मोदी ‘नमो’ हो गया, और महेंद्र सिंह धोनी ‘माही’ हो गया। चलते चलते इतना
कहेंगे कि दोनों में समानताएं बहुत हैं, दोनों से देश को उम्मीदें बहुत
हैं, लेकिन महेंद्र सिंह धोनी और नरेंद्र मोदी बनने के लिए मेहनत ही
नहीं, किस्मत का भी होना बेहद जरूरी है। दोनों पर वक्त मेहरबान रहा,
लेकिन दोनों मेहनत भी खूब की। इनकी विवादों से किनारा कर अपने लक्ष्य पर
निगाह रखने की आदत हमें कहीं न कहीं यह नसीहत भी देती है कि अगर किसी
लक्ष्य को पाना है तो विवादों पर नहीं लक्ष्य पर निगाह रखें।