“अंधेरा छंट ही जाएगा”

अन्नपूर्णा बाजपेयी
अन्नपूर्णा बाजपेयी

कुछ परछाइयाँ आडी तिरछी सी ,

कुछ लम्बी और पतली सी ।

अतीत के झरोखे से ,

दिखती है और यादों के । 

नश्तर बार बार कई बार , 

चुभते से लगते है । 

उम्र ढल जाती है , 

उनकी धुंध छँटने मे । 

अचानक कहीं से कोई, 

तीर चला जाता है , 

बेंधता हुआ दिल को , 

आँसू फिर न थमते है , 

इन बहते सूखते आंसुओ से , 

करती हूँ हर बार एक वादा , 

कि अंधेरा छंट ही जाएगा । 

नूतन रौशनी फिर होगी , 

नई सुबह जरूर होगी ।

-अन्नपूर्णा बाजपेयी
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