
कुछ परछाइयाँ आडी तिरछी सी ,
कुछ लम्बी और पतली सी ।
अतीत के झरोखे से ,
दिखती है और यादों के ।
नश्तर बार बार कई बार ,
चुभते से लगते है ।
उम्र ढल जाती है ,
उनकी धुंध छँटने मे ।
अचानक कहीं से कोई,
तीर चला जाता है ,
बेंधता हुआ दिल को ,
आँसू फिर न थमते है ,
इन बहते सूखते आंसुओ से ,
करती हूँ हर बार एक वादा ,
कि अंधेरा छंट ही जाएगा ।
नूतन रौशनी फिर होगी ,
नई सुबह जरूर होगी ।