जमीनी हकीकत को भी समझे

संजीव पांडेय
संजीव पांडेय

-संजीव पांडेय- जो कुछ फिर एक बार फिर जम्मू सीमा पर हुआ, वो कम से कम यूपीए-2 के लिए चिंताजनक है। एक बार फिर हमारी सीमा में अंदर आकर हमारे पांच सैनिकों की हत्या दुश्मन मुल्क के सेना और आतंकियों ने मिलकर की। पाकिस्तानी सेना और सक्रिय आतंकी संगठनों की मिलीजुली कार्रवाई का यह परिणाम था। क्योंकि सेना के लॉजिस्टिक सपोर्ट के बिना यह संभव नहीं था। निश्चित तौर पर यह घटना मनमोहन सिंह के लिए अच्छे संदेश लेकर नहीं आयी। चुनावी साल से पहले यह घटना मनमोहन सिंह ही नहीं, बल्कि कांग्रेस के लिए भी चिंता बढ़ाएगी। क्योंकि मनमोहन सिंह उस विचारधारा के प्रतिनिधि है, जो तमाम हिंसा के बीच शांति प्रयास की वकालत करते है। खबरें आयी थी नवाज शरीफ जल्द ही मनमोहन सिंह को उनके पैतृक गांव गाह ले जाएंगे। उसके बाद नवाज शरीफ भारतीय पंजाब के तरनतारन आने की योजना बना रहे थे। यहीं पर उनका गांव जाती उमरा है। वैसे सच्चाई तो यह है कि सारे राष्ट्रीय अस्मिता को ताक पर रख दो पंजाबियों की दोस्ती न तो पाकिस्तानियों को रास आएगी न भारतीय को। क्योंकि इसमें दोनों के निजी हित है। निश्चित रुप से नवाज शरीफ की दोस्ती के प्रस्ताव के पीछे उनके निजी व्यापारिक हित काम कर रहा है। जबकि मनमोहन सिंह की दोस्ती के प्रस्ताव के पीछे अमेरिकी दबाव है। दोनों नेताओं ने राष्ट्रीय हितों से अलग हट दोस्ती के हाथ बढ़ाए है। इसका परिणाम अच्छा आएगा, यह सोचना मूर्खतापूर्ण होगा।

दरअसल इस पूरे खेल को न तो हमारी जनता समझ रही है। न ही पाकिस्तानी जनता समझ रही है। जब सीमा पर भारतीय सैनिकों की चालाकी से हत्या की गई तो भारतीय मीडिया ने इस पूरे खेल को समझने में दिलचस्पी नहीं दिखायी। उन्होंने नवाज शरीफ के कार्यालय में कश्मीर को लेकर बनाए गए स्पेशल सेल की बात की। पाकिस्तानी सेना के उस दस्ते की बात की जो कश्मीर में आतंक फैलाने के लिए बनायी है। लेकिन पाकिस्तान के अंदर चल रहे दूसरे खेलों की जानकारी नहीं दी। एक अहम जानकारी यह है कि बीते दिनों परवेज कयानी और नवाज शरीफ के बीच एक बैठक हुई थी। बैठक में सबसे महत्वपूर्ण मसला परवेज मुशर्रफ को लेकर था। परवेज कयानी ने साफ तौर पर नवाज शरीफ को कहा था कि मुशर्रफ सेना के राष्ट्रीय इमेज है। इन्हें ज्यादा दिनतक आप जेल में बंद नहीं रख सकते है। इससे सेना का मनोबल कमजोर होगा। कयानी ने नवाज के सामने मुशर्रफ का सेफ एग्जिट का प्रस्ताव रखा था। नवाज ने कयानी को आश्वासन भी दिया कि अगले कुछ दिनों में मुशर्रफ को सेफ एग्जिट दिया जाएगा। लेकिन अभी तक उस वादे को नवाज ने पूरा नहीं किया। हालांकि नवाज की मंशा सेना को धोखा देने की नहीं है। सेना की ताकत नवाज जानते है। लेकिन पाकिस्तान में न्यायपालिका का ओवर एक्टिविजम नवाज के सामने खड़ा है। न्यायपालिका और परवेज मुशर्रफ के बीच एक जंग है। इस जंग में सेफ एग्जिट का रास्ता देने का मतलब है कि नवाज और न्यायपालिका के बीच एक नई जंग की शुरूआत होना। कम से कम पांच साल नवाज शरीफ अवमानना के चक्करों में अदालतों में हाजिर होते रहेंगे।उन्हें न्यायपालिका सबक सिखाने में लग जाएगी। ये वही न्यायपालिका है जो नवाज शरीफ के लांग मार्च से मजबूत हुई। लेकिन अब यही नवाज के लिए भस्मासुर बन गई है। इसे बोतल में बंद करना नवाज के बस की बात नहीं है। एक तरफ सेना और एक तरफ न्यापालिका, बीच में परवेज मुशर्रफ, फैसला नवाज शरीफ के हाथ में। फिर तो जम्मू कश्मीर सीमा पऱ फायरिंग होना लाजिमी है। आगे भी होते रहेंगे। नवाज बताएं, वो किसका साथ देंगे। सेना का या न्यायपालिका।
अब बात आर्थिक हिस्सेदारी की। बीते कुछ समय से सेना चुनी हुई सरकार से कमाई में हिस्सेदारी की मांग कर रही है। क्योंकि बीते पांच साल पीपुल्स पार्टी ने पाकिस्तान पर राज किया। उनके समय में सेना को कमाई का उचित हिस्सा नहीं मिला। अब लगातार दूसरी बार चुनी हुई सरकार पाकिस्तान में आ गई है। सेना का कारोबार घट गया है। अब  सेना सत्ता की मलाई में खुलकर हिस्सेदारी चाहती है। इस हिस्सेदारी को नवाज शरीफ से मांगा गया। देश के निजी क्षेत्र में बहुत बड़ी हिस्सेदारी सेना की है। रिएल एस्टेट से लेकर, बिजली और पेट्रोलियम सेक्टर में सेना की हिस्सेदारी है। अगर हिस्सेदारी को नवाज मंजूर नहीं करेंगे तो उनकी समस्या बढ़ेगी। सारी दुनिया जानती है कि सेना का एक बडा विंग किसी के नियंत्रण में नहीं है। वो अपने हिसाब से अपने हितों के लिए कार्रवाई करती है। अगर नवाज शरीफ सेना के आर्थिक हितों को नजर अंदाज करेंगे तो नवाज अंतराष्ट्रीय स्तर फंसते रहेंगे। अब नवाज एक बार फिर फंस चुके है। कम से कम भारतीय प्रधानमंत्री अभी तक उन्हें मदद कर रहे थे। लेकिन सीमा पर गोलीबारी और भारतीय सैनिकों की शहीदी ने भारतीय प्रधानमंत्री के कदम को पीछे खींचने पर मजबूर किया है। मनमोहन सिंह अब चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते है।
नवाज शरीफ सत्ता हासिल कर चुके है। लेकिन इस सत्ता के खेल में उनकी जान जा सकती है वो इस सच्चाई को जानते है। पांच साल पीपुल्स पार्टी की सरकार ने सत्ता चलायी। अब पीपुल्स पार्टी के बड़े नेता विदेश जाने की तैयारी में है। क्योंकि जान को खतरा है। नवाज शरीफ की पंजाबी आतंकियों से सांठगांठ तो है। लेकिन पश्तून आतंकी गुट कभी भी उनकी जान ले सकते है। तालिबान इसमें प्रमुख है। भारत के हुक्मरान इस जमीनी हकीकत को समझने से भाग रहे है। आखिर नवाज शरीफ के हाथ में कुछ नहीं है। हम यह मानकर चले कि हमारे पड़ोस में एक इस तरह का मुल्क है जिससे हमेशा तमाम शांति वार्ता के बीच गोली की आवाज सुनाई देती रहेगी। पाकिस्तान से शांति की उम्मीद लगाए रहना बेमानी इसलिए है कि वो खुद अपने मुल्क के अंदर शांति लाने में विफल है। एक अशाँत देश दूसरे देश के शांति प्रयासों में कैसे भाग लेगा। जिसका आंतरिक शांति का मोर्चा फेल हो चुका है वो बाह्य शांति के मोर्चे पर कैसे सफल होगा।
हमारी विफलता है कि हम पाकिस्तान के आंतरिक आर्थिक समस्या को नहीं समझ रहे है। पाकिस्तान एक एसे गंभीर आर्थिक संकट में फंस गया है कि आने वाले समय में पूरे साउथ एशिया की शांति को प्रभावित करेगा। खासकर पाकिस्तान का उर्जा संकट पाकिस्तान को ही नहीं पूरे साउथ एशिया में आतंकी गतिविधियों को बढाएगा। पाकिस्तान गंभीर बिजली संकट से जूझ रहा है। पूरे देश में दस हजार मेगावाट बिजली उपलब्ध है। गांवों में बिजली न के बराबर है। जबकि शहरों में 18 घंटों का कट है। पिछले पांच सालों से बिजली संकट के कारण कई जगहों पर प्रदर्शन हो रहा है। इसका फायदा आतंकी संगठन उठा रहे है। वो कई जगह युवाओं को भड़का कर जेहाद की तरफ ले जा रहे है। क्योंकि बिजली संकट के कारण नौकरियों में भारी कमी आयी है। उदोग धंधे चौपट हो चुके है। ग्रामीण कृषि अर्थव्यस्था भी खराब हो चुकी है। शहरों में बिजली संकट के कारण बढ़ती बेरोजगारी युवाओं और बेरोजगारों को जेहादी मदरसो की तरफ आकर्षित कर रही है। पाकिस्तान सरकार को देश में बिजली संकट खत्म करने के लिए कम से कम 20 अरब डालर चाहिए। वो उनके पास नहीं है। इसका फायदा जेहादी और आईएसआई दोनों उठाएंगे। जेहादी सुविधा के हिसाब से भारतीय कश्मीर में भी हमला करेंगे और पाकिस्तान के अंदर भी हमला करेंगे। शिकार सिर्फ हम अकेले नहीं होंगे। शिकार तो वो भी होंगे जो इन्हें पैदा कर रहे है। लेकिन यह खतरा अब भारत से निकल बांग्लादेश, बर्मा, लाओस, कंबोडिया समेत दक्षिण एशिया के दूसरे मुल्कों की तरफ जाएगा।
लेकिन नवाज शरीफ को पाक साफ न समझे। वो कटटरपंथी विचारधारा से युक्त सिर्फ अपने लाभ को हासिल करने वाले व्यापारी है। वे सारे यथार्थ को समझ रहे है। नवाज शरीफ पाक साफ नहीं है। उनका लालन-पालन कटटरपंथी समाज के बीच ही हुआ है। पंजाब के आतंकी संगठनों को संरक्षण उनका परिवार और खुद उनके पिता मोहम्मद शरीफ देते रहे है। ये आतंकी संगठन भारत विरोधी कार्रवाई में पिछले तीस सालों से जुटे है। बीते चुनाव में पंजाब में इन्हीं आतंकी संगठनों ने नवाज को समर्थन दिया। नवाज ने पूरे पंजाब में दूसरे दलों को सूपड़ा साफ कर दिया। इसमें आतंकियों की भारी भूमिका थी। पूर्व पीएम युसूफ रजा गिलानी के बेटे का अपहरण आतंकियों ने नवाज शरीफ को मदद करने के लिए ही की थी। आतंकियों से कई वादे नवाज ने चुनावों के दौरान किए है। अब उन वादों को पूरा करना नवाज की मजबूरी है। हाफिज सईद के संगठन को पंजाब सरकार दवारा करोड़ों रुपये देना इसका उदाहरण है। अब कई और मांगे ये आतंकी कर रहे है। आईएसआई के सबसे खतरनाक अधिकारियों को भी नवाज और उनके पिता अपना सहयोग देते रहे है। वैसे नवाज शरीफ मजबूरी में भारत से बातचीत करेंगे। इसके पीछे निजी हित है। वे स्टील के कारोबारी है, चीनी के कारोबारी है। भारत से संबंध सुधारेंगे तो उनका व्यापार काफी बढ़ेगा। लेकिन उनकी राजनीतिक पालन पोषण जमात-ए-इस्लामी और जनरल जिया-उल-हक जैसे लोगों के संरक्षण में हुआ है। इसलिए वो इनकी नीतियों के मोह को भी नहीं छोड़ेंगे।
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