शास्त्र सम्मत नहीं है अयोध्या की चौरासी कोस की परिक्रमा

Arun-Kumar-Tripathi-अरुण कुमार त्रिपाठी- आगरा। विश्व हिंदू परिषद की तरफ से प्रस्तावित अयोध्या की चौरासी कोस की परिक्रमा न तो शास्त्र सम्मत है न ही वह 18 वीं सदी में शुरू हुयी परम्परा के अनुरूप। उसका मकसद गलत समय पर गलत परम्परा डालना है और आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर राजनीतिक ध्रुवीकरण करना है। इसलिए यह परम्परा के नाम पर एक नया विवाद खड़ा करने की कोशिश है। यह बात धर्माचार्यों और राजनीतिज्ञोंने महसूस की है।

ब्रजाचार्य पीठाधीश गोस्वामी स्वामी दीपकराज भट्ट का मानना है कि अयोध्या के चौरासी कोस की परिक्रमा की परम्परा न तो प्राचीन है न ही शास्त्र सम्मत। इसे 18 वीं सदी मेंरामानंद संप्रदाय के लोगों ने शुरू किया। जब से कुम्भ में नागा साधुओं के स्नान की परम्परा शुरू हुयी और अयोध्या मेंहनुमान गढ़ी की स्थापना हुयी लगभग उसी से जुड़ कर निकली अयोध्या के चौरासी कोस की परिक्रमा।

ब्रज उद्धारक नारायण भट्ट की 18 वीं पीढ़ी के आचार्य दीपक राज जी का कहना है कि  रामनंदियों और रामानुजों ने न सिर्फ अयोध्या की चौरासी कोस की परिक्रमा शुरू करवाई बल्कि मिथिला की भी इसी तरह की परिक्रमा शुरू की। आज लोकजीवन में किसी को इसका स्मरण भी नहीं है। अयोध्या की भी परिक्रमा को भी किसी धर्माचार्य की मान्यता नहीं है। नारायण भट्ट जी, माधवाचार्य जी और बल्लभाचार्य जी किसी ने भी इसे मान्यता नहीं दी है।  दरअसल चौरासी कोस परिक्रमा की परम्परा ब्रज में रही है। वही प्राचीन है और वही शास्त्र सम्मत है। इसका जिक्र ग्राउसग्रियर्सन और गिलक्राइस्ट ने भी किया है। तवारीखे फिरोजशाही में भी इसका वर्णन है। यह परम्परा कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने शुरू की थी।

दीपक राज भट्ट जी का मानना है कि राम नाम का महत्व तो  प्राचीन समय से रहा है लेकिन अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम को भगवान की मान्यता बहुत बाद में मिली है। चौरासी कोस की यह परिक्रमा उसी राम के ईश्वरीय महत्व को स्थापित करने का प्रयास था। अयोध्या की इस परिक्रमा का महत्व उसी तरह कभी बन नहीं पाया जैसे तमाम साईं हुये लेकिन सिरडी वाले के अलावा सभी का वैसा महत्व नहीं बना। पहले तो यह महज पांच कोस की होती थी और बाद में सात फिर चौदह कोस की हो गयी। यह सब धर्मांधता बढ़ने और धर्म में राजमनीति का घालमेल होने से हुआ।

जबकि अयोध्या नए घाट के निवासी धर्माचार्य रघुनाथ दास त्रिपाठी का कहना है कि अयोध्या की चौरासी कोस परिक्रमा का जिक्र अयोध्या महात्म्य में है।  यह अनादिकाल से भगवान राम से जुड़ी है। श्री त्रिपाठी का कहना है कि वह परम्परा तो अक्षय तृतीया से जानकी नवमी के बीच होती है। वह इस साल 25 अप्रैल से 20 मई के बीच सम्पन्न हो चुकी है। यह परिक्रमा फैजाबाद, बस्ती, गोंडा से गुजरती है। इसकी शुरुआत बस्ती जिले के मखौड़ा नामक स्थान से होती है और रास्ते में परशुरामपुर और विक्रमजोत वगैरह इसके पड़ाव हैं। इसमें व्यापक तौर पर संत समाज शामिल होता है और थोड़े बहुत गृहस्थ भी। विहिप अभी जिस परिक्रमा की बात कर रही थी उसका मकसद अलग है।

राज्यमंत्री और अयोध्या के पूर्व विधायक जयशंकर पांडेका कहना है कि विहिप की इस प्रस्तावित परिक्रमा पर रोक लगाकर ठीक किया गया, क्योंकि यह धार्मिक नहीं, राजनीतिक यात्रा थी। यह भारतीय दर्शन और परम्परा को छोड़कर नई परम्परा शुरू करने का प्रयास था। बल्कि विहिप के ज्ञापन में ही लिखा था कि वे राम मंदिर निर्माण के लिए जनजागरण के मकसद से यह करना चाहते हैं। उनका प्रयास इस इलाके में पड़ने वाले फैजाबाद, गोंडा, बस्ती आंबेडकर नगर समेत चार-पांच लोकसभा क्षेत्रों को प्रभावित करने का है। पर यह तो बड़बोलापन है। आखिर कोई काम शास्त्र सम्मत ही किया जाएगा ? अब कार्तिक पूर्णिमा अमावस्या के दिन तो नहीं पड़ेगी। रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी के दिन नहीं पड़ेगी। चौदह कोसी परिक्रमा संत समाज की है उसमें गृहस्थ नहीं जाते रहे हैं। अब उसे आम जनता से जोड़ने का उद्देश्य कुछ और है। सवाल उठता है कि जब भाजपा की सरकार थीतब विहिप ने क्यों नहीं की यह परिक्रमा।

दूसरी तरफ शहीद शोध संस्थान फैजाबाद के प्रबंध निदेशक सूर्यकांत पांडे का कहना है कि मुलायम सिंह और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक तो विहिप के नेता अशोक सिंघल से मिलकर गलती की और फिर इस परिक्रमा पर पाबंदी लगाकर। अब रोक लगाने से विहिप अपने मकसद  में कामयाब हो गयी है। सपा को इस काम में अपने कार्यकर्ताओं को लगा देना था। इसके विहिप विफल हो जाती। उनका कहना है कि यह परिक्रमा उस समय से हो रही है जब भगवान राम का जन्म होने वाला था और संतों को उसका अहसास हो गया था, लेकिन इसमें आम जन नहीं जाता। इसकी खत्म होने की तारीख तय है, इसलिए इसे हर समय नहीं किया जा सकता। जाहिर है विहिप का उद्देश्य मंदिर आंदोलन को फिर से गरमाना है।

अरुण कुमार त्रिपाठी, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आजकल कल्पतरू एक्सप्रेस के कार्यकारी संपादक हैं। http://www.hastakshep.com

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