श्रीलंका सरकार को अपनी छवि से ऊपर उठने की जरुरत

a 3
Navi Pillay in Jafana (Srilanka)

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त नवी पिल्लय अगस्त माह के अंत में एक सप्ताह के तथ्य खोजने के मिशन पर श्रीलंका की यात्रा पर गई. वास्तव में श्रीलंका सरकार संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त की यात्रा को लेकर शुरू से ही उत्साहित नहीं थी, पर अंतरराष्ट्रीय दवाब के कारण उसे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त की इस यात्रा को न चाहते हुए भी सहयोग देना पढ़ा. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त नवी पिल्लय के कोलंबो पहुँचने पर उनके आने का विरोध बौद्ध भिक्षुओं के नेतृत्व में सिंहली बहुसंख्यक समुदाय ने किया और यह माँग रखी कि नवी पिल्लय को देश से बाहर चला जाना चाहिए और उसे देश के मानवाधिकार रिकार्ड की आलोचना नहीं करनी चाहिए. वे 26 और 27 अगस्त 2013 को कोलंबो स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के बाहर यह माँग कर रहे थे कि नवी पिल्लय को श्रीलंका नही, बल्कि इराक और अफगानिस्तान जाना चाहिए. ऐसी ख़बर भी मिली कि श्रीलंका सरकार के कुछ मंत्रियों ने भी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त की श्रीलंका यात्रा को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने का आरोप लगाया था. एक समाचार के अनुसार श्रीलंका केराष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने भी संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार काउंसिल की आलोचना की. जब नवी पिल्लय श्रीलंका पहुँची, उन्होंने स्पष्ट कहा कि वे यहाँ आलोचना करने नहीं आई हैं, वे श्रीलंका में मानव अधिकार की चिंताओं को सुनने के लिए आई हैं, वे अपना कानून लिखने नहीं आई हैं, बल्कि उस ढाँचे को देखने आई हैं जो श्रीलंका ने विकसित किया था कि क्या यह विकसित मानकों के अनुरूप है.

a 2
Navi Pillay meeting people

नवी पिल्लय अपनी सात दिन की यात्रा के दौरान अनेक लोगों से मिली, उनकी बातें सुनी और विचार-विमर्श भी किया. इस यात्रा के दौरान वे श्रीलंका के राष्ट्रपति, सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों, अधिकारियों, मुख्य न्यायाधीश, अटार्नी जनरल, संसद सदन के नेता, राष्ट्रपति के स्थाई सचिव आदि से मिलीं और विचार-विमर्श किया. वे उन राजनैतिक नेताओं से भी मिली जो वर्तमान श्रीलंका सरकार के हिस्सेदार नहीं हैं. वे ‘सबक सीखा और सुलह आयोग’ की रिपोर्ट के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए स्थापित कार्यदल के प्रधान से भी मिली. वे ‘राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग’ के सदस्यों से भी मिली. वे इस दौरान श्रीलंका के अनेक स्थानों पर गई और कोलंबो, जाफ्ना और त्रिकोमाली में विभिन्न बैठकों में मानव अधिकार रक्षकों और नागरिक समाज संस्थाओं के प्रतिनिधियों से भी मिली. उन्होंने श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी प्रांतों के गवर्नरो और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से भी वार्ता की

a 1
Navi Pillay meeting Srilanka President

वे उन परिवार के लोगों से भी मिली, जिनके परिवार सदस्य लापता हैं. एक घटना जो अखबारों के माध्यम से सामने आई, वह् इस प्रकार है – एक श्रीलंकाई ‍तमिल महिला शशिथरन का पति ‍तमिल अल्पसंख्यक गुरिल्ला एलटीटीई (लिट्टे) का सदस्य था और उसने 18 मई 2009 को (सरकार द्वारा युद्ध में जीत घोषित करने के एक दिन पहले) श्रीलंका सरकार की सेना के समक्ष आत्म समर्पण किया था. शशिथरन का कहना है कि उसे विश्वास है कि उसका पति जिन्दा है और उसे किसी गुप्त हिरासत केन्द्र में रखा गया है. दूसरी तरफ़ श्रीलंका की सेना के प्रवक्ता का कहना है कि उन्हें शशिथरन के पति की कोई जानकारी नहीं है. नवी पिल्लय ने श्रीलंका के उस गांव का दौरा भी किया, जहाँ सैकड़ों नागरिक मारे गए थे. वे त्रिकोमाली में ईसाई पादरी से भी मिली और एक घंटे तक बातचीत की, जिसने लापता लोगों के सम्बन्ध में एक रिपोर्ट नवी पिल्लय को सौंपी.

नवी पिल्लय का शुक्रवार 30 अगस्त को श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे से मिलना तय था और वे उनसे मिली. राष्ट्रपति ने पिल्लय से कहा कि श्रीलंकाई यह विश्वास करते हैं कि संयुक्त राष्ट्र एक पक्षपाती और पूर्वाग्रह से ग्रस्त संस्था है. वे विश्वास करते हैं कि मानवाधिकार आयुक्त की जो रिपोर्ट सितंबर माह में संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार कौंसिल को प्रस्तुत की जानी है, वह् पूर्व निर्धारित है. जब पिल्लय ने हाल के दिनों में मुस्लिम और ईसाई पूजा-स्थलों के खिलाफ हुई हिंसा पर आश्चर्य व्यक्त किया तो राजपक्षे ने कहा कि ये छिटपुट घटनाएँ हैं, जबकि श्रीलंका के अधिकतर लोग शान्ति से रहते हैं. श्रीलंका सरकार के कई मंत्रियों ने नवी पिल्लय के यात्रा कार्यक्रम की आलोचना की. नेशनल फ्रीडम फ्रंट के नेता और आवास मन्त्री विमल वीरावंसा ने कहा कि पिल्लय उन लोगो से चुपके से मिल रहीं हैं, जिनसे मिलना उनके कार्यक्रम में निर्धारित नहीं था. उनका विचार था कि वे संयुक्त राष्ट्र को निष्पक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करने नहीं जा रहीं.

श्रीलंका में अनेक विरोध प्रदर्शन और दुष्प्रचार के बावजूद नवी पिल्लय ने अपनी श्रीलंका यात्रा को अच्छी तरह से पूरा किया और अपने सात दिन के श्रीलंका प्रवास के अन्तिम दिन 31 अगस्त 2013 को एक प्रेस कांफ्रेंस में परम्परा के तौर पर नवी पिल्लय ने श्रीलंका के मानव अधिकारों के प्रति कुछ टिप्पणियाँ की. उन्होंने कहा कि वे बहुत जागरूक हैं पर वे हर उस व्यक्ति से मिल सकने में असमर्थ रहीं, जिन्होंने उनसे मिलने का अनुरोध किया था. उन्होंने श्रीलंका के मंत्रियों द्वारा किए ग़लत प्रचार के दुरुपयोग की बात भी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में कही. उन्होंने इस बात को ग़लत और आक्रामक बताया जिसमें उनके भारतीय ‍तमिल विरासत के आधार पर लिट्टे के एक साधन के रूप उन्हें वर्णित किया गया. उन्होंने इस बात का गर्व किया कि वे एक दक्षिणी अफ्रीकी हैं. उन्होंने यह भी कहा कि लिट्टे एक जानलेवा संगठन था और लिट्टे कई अपराधों में संलग्न रहा और इसने कइयों का जीवन नष्ट किया. उन्होंने याद दिलाया कि वे जुलाई 1999 में पिछली बार श्रीलंका नीलम तिरुचेलम की याद में आयोजित समारोह में भाग लेने आई थी, जो एक विधायक, शान्ति चाहने वाली और विद्वान थीं, जो लिट्टे के आत्मघाती बम द्वारा मारी गई थी. उन्होंने स्पष्ट कहा कि भय को जारी रखने वाले संगठन लिट्टे की स्तुति के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए. नवी पिल्लय ने श्रीलंका मानव अधिकार मुद्दों को दो भागों में बाँटा है – पहला, 27 सालों का सरकार और लिट्टे के बीच हुए संघर्ष और उसके बाद से संबंधित, और दूसरा, पूरे देश से संबंधित.

31 अगस्त को आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में नवी पिल्लय के पूरे संबोधन को संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार कौंसिल की वेबसाइट लिंक http://www.ohchr.org/EN/NewsEvents/Pages/media.aspx?IsMediaPage=true पर देखा जा सकता है, पर जो बात उन्होंने बेबाक कही, उसका उल्लेख करना जरुरी है, हालाँकि उनकी यह बात श्रीलंका सरकार के गले नहीं उतर रही पर सच्चाई यही है. उन्होंने कहा – “अकेले भौतिक पुनर्निर्माण से सुलह, गरिमा या स्थाईशान्ति नही आएगी. वास्तव में युद्ध के दौरान लोगों की पीड़ा के लिए सत्य, न्याय और क्षतिपूर्ति प्रदान करने के लिए एक अधिक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है…. मैं गहराई से चिंतित हूँ कि युद्ध के अंत द्वारा मिलें अवसर से एक नए जीवंत, सबको गले लगाते राज्य के निर्माण की अपेक्षा श्रीलंका तेजी से सत्तावादी (authoritarian) दिशा में बढ़ने के संकेत दे रहा है.” श्रीलंका सरकार ने आलोचना करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार मुखिया नवी पिल्लय ने, यह कहकर कि श्रीलंका एक सत्तावादी (authoritarian) दिशा में जा रहा है, अपने अधिकार-पत्र (mandate) से हटकर काम किया है.

केशव राम सिंघल
केशव राम सिंघल

नवी पिल्लय की श्रीलंका यात्रा पर मिश्रित प्रतिक्रिया आई है. एक ओर श्रीलंका सरकार ने उनकी यात्रा की आलोचना की है, पर दूसरी ओर मानव अधिकारों और न्याय की आस में हजारों श्रीलंकाई नागरिक इस यात्रा को एक आशा की किरण के रूप में देख् रहे हैं कि श्रीलंका में सही मायनों में लोकतंत्र स्थापित होगा और उन्हें न्याय मिलेगा. जरूरत इस बात की है कि श्रीलंका सरकार को अपनी सिंहली बहुसंख्यक छवि से ऊपर उठकर अल्पसंख्यकों के हित के लिए कुछ लोकतांत्रिक कदम उठाने होंगे और इसके लिए फिलहाल संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार आयुक्त नवी पिल्लय के प्रेस कांफ्रेंस संबोधन (जिसे वेबसाइट लिंकhttp://www.ohchr.org/EN/NewsEvents/Pages/media.aspx?IsMediaPage=true पर देखा जा सकता है) को सकारात्मक रूप से पढ़ने, सोचने और समझने की जरुरत है, ताकि श्रीलंका सरकार सभी के हित में कदम उठाए.

– केशव राम सिंघल

error: Content is protected !!