तीन प्रताड़ित कीनियाई ब्रिटेन से मांग सकेंगे मुआवज़ा

ब्रिटेन की उच्च अदालत ने फैसला सुनाया है कि 1950 के दशक में ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन के तहत प्रताडना का शिकार हुए तीन कीनियाई नागरिक ब्रिटेन सरकार से मुआवज़े की मांग कर सकते हैं.

हांलाकि इस तरह का मामला दायर करने की समय सीमा बीत चुकी है लेकिन अदालत के फैसले के अनुसार पीड़ित नागरिक मुआवज़े के लिए मुकदमा दायर कर सकते हैं ये मामला कीनिया में 1950 में हुए मॉउ मॉउ विद्रोह का है.

इस फैसले का मतलब हैं कि अब इस मामले की पूरी सुनवाई होगी. इस मामले में कीनियाई नागरिकों का पक्ष रखने वाले वकीलों ने इस फैसले को ‘ऐतिहासिक’ बताया.

कीनियाई नागरिकों के वकील मार्टिन डे ने कहा, “ये एक ऐतिहासिक फैसला है जिसकी गूंज विश्व भर में सुनाई देगी और इसका असर आने वाले वर्षों में दिखाई देगा.”

वकीलों ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किलों में से एक ज़िल को नपुंगसक बना दिया गया था, नियांजी को बुरी तरह पीटा गया, म्यूथोनी मारा का यौन शोषण किया गया. जबकि चौथे कीनियाई नागरिक निडिकू मूतविवा की इसी साल मौत हो चकी है.

ब्रिटेन सरकार इस बात को स्वीकार करती है कि ब्रिटिश सेनाओं ने हिरासत में रखे गए लोगों को प्रताडित किया लेकिन इस बात की ज़िम्मेदारी लेने से इंकार कर रही है और इस फैसले के खिलाफ़ अपील करेगी.

ब्रिटिश सरकार ने शुरुआत में दलील दी थी कि 1963 में आज़ादी देने के साथ ही सभी ज़िम्मेदारियां कीनियाई सरकार को सौंप दी गई थी और इसके लिए कीनियाई सरकार को ज़िम्मेदार माना जाना चाहिए.

कीनियाई नागरिकों के वकील मार्टिन डे ने कहा, “इस फैसले के बाद हम उम्मीद करते हैं कि सरकार अब हमारी मांगों पर गौर करेगी और इन मागों को पूरा करेगी. मालाया से लेकर यमन और साइप्रस से लेकर फ़लस्तीन तक के लोग इस फैसले को ध्यान से पढ़ रहे होंगे.”

कीनियाई राजधानी नेरोबी में मौजूद बीबीसी संवाददाता गैब्रियल गेटहाऊस कहते हैं कि नेरोबी में कीनियाई मानवाधिकार आयोग के सामने 50 माओ माओं बुजूर्ग इकट्ठा हुए और अपनी खुशी का इज़हार किया.

ब्रिटेन के विदेश और राष्ट्रमंडल विभाग के प्रवक्ता ने कहा हैं कि ये फैसला काफ़ी महत्वपूर्ण है और इसके दूरगामी वैधानिक प्रभाव होंगे.

विदेश और राष्ट्रमंडल विभाग के प्रवक्ता ने कहा, “इस तरह के मामलों में अपील करने की समय सीमा तीन से छह साल है लेकिन इस मामले में इसे बढ़ाकर 50 वर्ष कर दिया गया है जबकि इस मामले में अहम फैसला लेने वाले अधिकतर लोगों की मौत हो चुकी है और वो अपना पक्ष नहीं रख पाएंगे.”

विदेश और राष्ट्रमंडल विभाग के प्रवक्ता ने दोहराया कि सरकार इस बात से इंकार नहीं कर रही है कि औपनिवेशिक शासन के तहत तीनों नागरिकों के साथ प्रताड़ना हुई थी.

 

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