श्रीलंका सरकार न्यायपालिका के सामने झुकने को नहीं तैयार

श्रीलंका में सरकार और न्यायपालिका की लड़ाई थमने का नाम ही नहीं ले रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार द्वारा चलाई गई महाभियोग की प्रक्रिया को असंवैधानिक करार देने के बावजूद सत्ता पक्ष ने आगे बढ़ने का फैसला किया है। वैश्विक दबाव के बावजूद सरकार न्यायपालिका से समझौते के लिए तैयार नहीं है।

सरकार समर्थक अखबार संडे आइलैंड की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के सामने सरकार झुकेगी नहीं। मुख्य न्यायाधीश शिरानी भंडारनायके के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया इस हफ्ते के अंत तक पूरी कर ली जाएगी। शिरानी के खिलाफ जांच के लिए बनाई गई संसदीय समिति अपनी रिपोर्ट पेश कर चुकी है।

मिति ने शिरानी को तीन मामलों में दोषी पाया है। अखबार ने लिखा कि रिपोर्ट पर संसद में बहस के बाद वोटिंग कराई जाएगी। वोटिंग में सरकार का जीतना तय है। श्रीलंकाई संसद में सत्ता पक्ष का तीन चौथाई बहुमत है।

खबार के मुताबिक, यह प्रक्रिया 11 जनवरी से पहले पूरी हो जाएगी। संसद द्वारा महाभियोग पर मुहर लगाए जाने के बाद प्रस्ताव राष्ट्रपति महिंदा राजपक्ष के पास भेज दिया जाएगा। राष्ट्रपति से अनुमति मिलने के अगले ही दिन उन्हें मुख्य न्यायाधीश पद छोड़ना होगा।

अखबार ने लिखा कि सरकार स्थानीय और वैश्विक दबाव के आगे नहीं झुकेगी। इतना आगे बढ़ने के बाद अब पीछे हटना ठीक नहीं है। सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय से इत्तेफाक नहीं रखती जिसमें कहा गया था कि शिरानी के खिलाफ जांच करने वाली संसदीय समिति असंवैधानिक थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार ने जो तरीका अपनाया वह संविधान के खिलाफ है। शिरानी और विपक्षी दल इस संसदीय समिति पर एकतरफा होने का आरोप लगाकर कार्रवाई का बहिष्कार कर चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विपक्षी दलों ने भी स्वागत किया था। अब सवाल यह भी उठता है कि शिरानी खुद इस्तीफा देंगी या नहीं। यदि शिरानी इस्तीफा नहीं देती और राष्ट्रपति नया मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करते हैं तो देश में संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा। श्रीलंका में दो मुख्य न्यायाधीश होंगे।

संडे टाइम्स ने लिखा है कि संविधान की रक्षा का काम सुप्रीम कोर्ट को सौंपा गया है। ऐसे में संसद यदि शिरानी के खिलाफ कार्रवाई करती है तो देश गहरे संकट में होगा। 10 और 11 जनवरी को संसद में होने वाली बहस निर्णायक होगी। सभी दल इसके लिए विशेष तैयारी कर रहे हैं। इसके बाद सदन के स्पीकर राष्ट्रपति राजपक्षे को संसद की विचारों के बारे में सूचित करेंगे। शिरानी ने अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों से इन्कार किया है। उनका दावा है कि कार्रवाई के दौरान संसदीय समिति के सदस्यों ने अपशब्दों का इस्तेमाल किया।

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