नई दिल्ली। बांग्लादेश की तीन दिवसीय यात्रा पर गए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से वहां की प्रमुख विपक्षी दल नेता खालिदा जिया ने मुलाकात करने से इंकार कर दिया है। दरअसल, राष्ट्रपति ऐसे वक्त पर वहां गए हैं, जब बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन के गुनाहगारों की सजा को लेकर मचे सियासी घमासान ने हिंसक रूप अख्तियार कर लिया है। इसमें अब तक करीब 84 लोगों की जान जा चुकी है।
ऑपरेशन सर्चलाइट:
पहले बांग्लादेश, पाकिस्तान का एक हिस्सा था और पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। 1971 में पाकिस्तान से आजादी के लिए वहां स्वतंत्रता संग्राम हुआ। पाकिस्तान ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए ऑपरेशन सर्चलाइट अभियान शुरू किया। इस अभियान में लाखों निर्दोष बांग्लादेशी मारे गए। बांग्लादेश की जमात-ए-इस्लामी समेत कई दलों पर आरोप है कि उन्होंने पाकिस्तान का समर्थन करते हुए स्वतंत्रता संघर्ष को बर्बर तरीके से कुचलने में उसका भरपूर सहयोग किया। जमात के नेता अब्दुल्ला कादिर मुल्ला की इसमें बड़ी भूमिका मानी जाती है।
इंटरनेशनल कोर्ट ट्रिब्यूनल (आईसीटी): इस ऑपरेशन के 39 साल पूरे होने पर 2010 में बांग्लादेश सरकार ने नरसंहार, युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराधों की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय ट्रिब्यूनल का गठन किया।
18 दिसंबर, 2011 को मुल्ला के खिलाफ 344 हत्याओं समेत कुल छह आरोप तय किए गए।
पांच फरवरी, 2013 को उसको मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
शाहबाग आंदोलन:
इस सजा के खिलाफ कुछ ही घंटों में ढाका के शाहबाग स्क्वायर में जन आंदोलन शुरू हो गया। तब से लगातार आंदोलन बढ़ता जा रहा है। उनकी प्रमुख मांग अब्दुल कादिर मुल्ला को फांसी देने के साथ बांग्लादेश की राजनीति से जमात की राजनीति पर प्रतिबंध लगाने की भी है। सोशल मीडिया में भी ट्रिब्यूनल के निर्णय की आलोचना हो रही है। बदले की कार्रवाई में जमात ने भी हड़ताल और धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया है। नतीजतन हिंसा भड़क चुकी है।