डरबन। ब्रिक्स बैंक को हकीकत बनने में अभी दो साल का समय और लगेगा। ब्रिक्स के पांचों सदस्य देशों में कुछ मुद्दों पर सहमति बनना अभी बाकी है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो साल 2014 के अंत तक यह बैंक अपना आकार ले सकता है। ब्रिक्स के वित्त मंत्री मंगलवार को बैंक के मसौदे पर चर्चा करेंगे। सूत्रों के मुताबिक बैंक की स्थापना से जुड़े कम से कम तीन मुद्दों पर अभी सहमति नहीं बन पाई है। बैंक की पूंजी कितनी होगी, इसकी सदस्यता का स्वरूप कैसा होगा और इसका गवर्नेस कैसे होगा। इसके अलावा एक और मुद्दा यह भी है कि इस बैंक की सदस्यता विकसित देशों को दी जाए या नहीं। माना जा रहा है कि ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के वित मंत्री मंगलवार को होने वाली अपनी बैठक में इन सभी मुद्दों पर एक राय बनाने की कोशिश करेंगे। उम्मीद की जा रही है कि बैंक की स्थापना के प्रस्ताव के मसौदे को अंतिम रूप देने में अभी एक साल का वक्त लगेगा। उसके बाद ही इसकी स्थापना की प्रक्रिया शुरू हो पाएगी।
बैंक की शुरुआती पूंजी क्या हो, इस पर सभी देशों की राय अलग-अलग है। यह 50 अरब डॉलर से 100 अरब डॉलर के बीच हो सकती है। इसके अलावा बैंक की सदस्यता और सदस्यों को मिलने वाले वोटिंग अधिकारों को लेकर भी अभी पांचों देशों के बीच चर्चा जारी है। किस देश को कितने वोटिंग अधिकार मिलें इसका फैसला होना अभी बाकी है। बैंक को चलाने के तौर-तरीकों पर भी अभी वित्त मंत्री सहमति नहीं बना पाए हैं। इस बैंक का दायरा बढ़ाने खासकर मिस्त्र को सदस्यता देने पर रूस आपत्ति जता रहा है।
ब्रिक्स बैंक के मसले पर पांचों देशों के वित्त मंत्रियों की पिछले एक साल में अब तक चार बैठकें हो चुकी हैं। पांचवी बैठक मंगलवार को डरबन में होगी। वित्त मंत्री अपनी रिपोर्ट राष्ट्राध्यक्षों को सौंपेगे। अगर पांचों देशों में अब तक अनसुलझे मुद्दों पर सहमति बनती है तो ब्रिक्स बैंक के मुद्दे को समिट के बयान में शामिल किया जा सकता है।