तेहरान। अमेरिकी एतराज के बावजूद ईरान से दोस्ती बढ़ाने में भारत कोई गुरेज नहीं करेगा। विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद के तेहरान दौरे में भारत ने अपनी यह मंशा स्पष्ट कर दी है। दोनों देशों ने हर क्षेत्र में द्विपक्षीय रिश्तों को और गति देने का शनिवार को फैसला किया।
भारत ने ईरान को यह भी बता दिया कि वह उसकी महत्वाकांक्षी चाबहार बंदरगाह परियोजना में भी बढ़चढ़ कर भागीदारी करेगा। इस कदम के जरिये चीन को जवाब देने की कोशिश होगी, जिसने पिछले दिनों पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को विकसित करने का ठेका लिया है।
विदेश मंत्री खुर्शीद की उनके ईरानी समकक्ष अली अकबर सालेही के साथ वार्ता में दोनों देशों के बीच दोस्ती को नई ऊंचाई देने का फैसला किया गया। दोनों के संयुक्त आयोग की बैठक में व्यापार के लिए भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय आवागमन समझौते पर आगे बढ़ने को लेकर रजामंदी हुई। साथ ही, इस समझौते के मसौदे को अंतिम रूप देने के काम को जल्द शुरू करने की जरूरत पर बल दिया गया। बैठक में आपसी व्यापार को बढ़ाने के साथ ही दोनों देशों के नागरिकों के बीच परस्पर संपर्क को और विकसित करने पर जोर दिया गया। इसके लिए वीजा नियमों को और उदार बनाने की जरूरत महसूस की गई। दोनों पक्षों ने कृषि, विमानन और फार्मा सेक्टर में आपसी सहयोग बढ़ाने के साथ ही द्विपक्षीय निवेश में बढ़ोतरी करने का भी फैसला किया। अफगानिस्तान की स्थिति पर दोनों देशों ने आपसी संपर्क बढ़ाने का भी निर्णय किया।
बैठक के दौरान खुर्शीद ने सालेही को बताया कि भारत ने चाबहार बंदरगाह को विकसित करने की परियोजना में भाग लेने का फैसला कर लिया है। इस सिलसिले में कागजी औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए भारत के जहाजरानी मंत्रालय के सचिव जल्द तेहरान का दौरा करेंगे।
भारत के लिए अहम है चाबहार बंदरगाह
दरअसल, चाबहार बंदरगाह का भारत के लिए बेहद रणनीतिक व व्यावसायिक महत्व है। एक तो यह पाकिस्तान के उस ग्वादर बंदरगाह से 76 किलोमीटर दूर है, जिसे विकसित करने का ठेका चीन ने लिया है। ईरान के चाबहार बंदरगाह परियोजना में भाग लेकर भारत वहां से ग्वादर में चीन की गतिविधियों पर नजर रख सकता है।
दूसरा इस बंदरगाह के विकसित होने से भारत का अफगानिस्तान और मध्य एशिया के दूसरे देशों से व्यापार बढ़ेगा। चूंकि दूसरे देशों से व्यापार के लिए पाकिस्तान अपने मार्ग के इस्तेमाल की इजाजत भारत को नहीं देता है। चाबहार बंदरगाह के विकसित हो जाने के बाद भारत के लिए व्यापार और निवेश का सीधा रास्ता खुल जाएगा। इसके साथ ही, अफगानिस्तान की भी पाकिस्तान पर निर्भरता खत्म होगी। अभी तक वह कराची बंदरगाह का इस्तेमाल अपने व्यापार के लिए करता है। शायद यही कारण इस परियोजना में शामिल होने के लिए भारत ने करीब 539 करोड़ रुपये खर्च करने का मन बनाया है।