अमेरिकी खुफिया कार्यक्रम की पोल खोलेंगी गूगल और माइक्रोसॉफ्ट

Microsoftवाशिंगटन। अमेरिका के खुफिया निगरानी कार्यक्रम प्रिज्म के खिलाफ गूगल और माइक्रोसॉफ्ट ने लड़ाई छेड़ दी है। ओबामा प्रशासन से बातचीत असफल होने के बाद इन कंपनियों ने खुफिया एजेंसियों को अदालत में घसीटने का फैसला लिया है। गूगल और माइक्रोसॉफ्ट इंटरनेट उपभोक्ताओं के संबंध में खुफिया एजेंसियों द्वारा मांगी गई सूचनाओं को सार्वजनिक करना चाहती हैं। ये दोनों कंपनियां जून में अदालत की शरण में गई थीं। इसके बाद सरकार से उन्होंने वार्ता भी शुरू की, जो असफल हो गई। कंपनियों ने विदेशी खुफिया जांच कानून के तहत इंटरनेट उपभोक्ताओं के बारे में सूचनाएं मांगने के संबंध में अपने अधिकारों पर सफाई मांगी थी।

माइक्रोसॉफ्ट के अधिवक्ता ब्रेड स्मिथ ने बताया कि कंपनियों के प्रतिनिधि छह बार सरकारी अधिकारियों से चर्चा के लिए मिले। हालांकि, इन मुलाकातों से कोई नतीजा नहीं निकला। स्मिथ ने बताया, हमें पूरी उम्मीद है कि सरकार खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान पर हमारा पक्ष समझ गई होगी। इसके बाद अपनी रणनीतिक व्यापारिक प्रतिस्पर्धा से इतर दोनों कंपनियों ने हाथ मिलाते हुए सरकार के खिलाफ लड़ने का फैसला किया। स्मिथ ने कहा कि हम अपने उपभोक्ताओं का भरोसा कायम रखने की कोशिश कर रहे हैं। तकनीक के मुद्दे पर भले ही हम प्रतिस्पर्धी हों, लेकिन उपभोक्ताओं के हितों को देखते हुए हम यहां एक-दूसरे का साथ देंगे। अमेरिकी संविधान से हमें यह हक मिला है कि हम सूचनाओं को जनता से साझा करें। हम जनता को बताना चाहते हैं कि सरकार ने कितनी बार और किस-किस के बारे में सूचनाएं मांगी। स्मिथ बोले, हमें पूरी उम्मीद है कि अदालत हमारे और उपभोक्ताओं के हक में फैसला सुनाएगी। अमेरिकी कांग्रेस से भी हमें समर्थन मिलने की उम्मीद है।

एडवर्ड स्नोडेन द्वारा नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी [एनएसए] के खुफिया निगरानी कार्यक्रम का खुलासा करने के बाद इन कंपनियों की साख खतरे में पड़ गई है। उपभोक्ताओं को लग रहा है कि उनकी निजी सूचनाएं खुफिया एजेंसियों तक पहुंचाई जा रही हैं। स्मिथ ने कहा कि सूचनाओं की प्रकाशित करने से राष्ट्रीय सुरक्षा पर कोई खतरा नहीं आएगा।

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