अच्छे दिन वालों क्या कोर्ट में घसीटा जाए?

modiजो राजनीति की हरेक समस्या को लेकर
न्यायालय की शरण में जाने के आदी हैं
उनको सोचना होगा कि ‘अच्छे दिन आने वाले
हैं’ विज्ञापन के लिए जिम्मेवार को न्यायालय
में घसीटा जाए या नहीं। महंगाई
का बढ़ना जारी है, और ‘गिर गए भाव
सोना के’। दिल्ली में
बिजली आपूर्ति की कमी से अंधियारा पसर
गया है तो रायसीना हिल्स के शिखर पुरुष
का पौरुषत्व बदला नजर आ रहा है।
तुकबंदियों का दायरा बढ़ा है तो तमाम
बंदिशों के बावजूद ‘उत्तम प्रदेश’ के साथ-साथ
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के
यहां से भी बलात्कार की खबरें आ रही हैं।
मनमोहन सिंह सरकार को सारा दोष देकर
मोदी सरकार
अपनी अकर्मण्यता नहीं छिपा सकती। पर
यक्ष प्रश्न यह है कि आखिर वह अंबानी और
अदानी (पूंजीपतियों) का खयाल करे या आम
आदमी का! बजट का इंतजार है; मोदी के
आर्थिक मसलों पर सुर अभी से बदलने लगा है।
चुनाव के नतीजों से प्रगतिशील खेमा स्तब्ध
है; इनसे जुड़े बुद्धिजीवियों में
सन्नाटा पसरा है। हमें
समझना होगा कि दरअसल वह शख्स
बुद्धिजीवी नहीं है,
जो बौद्धिकता का इस्तेमाल अपने गुजारे के
साधन अर्जित करने, और इससे निबट कर आगे
भोग और शोहरत के लिए करता है। ऐसा शख्स
महज बौद्धिककर्मी है। बुद्धिजीवी तो वह है,
जो अपनी बौद्धिकता का इस्तेमाल
आलोचनात्मक विश्लेषण और समाज परिवर्तन
के लिए करता है; शोषित वर्ग को शोषक वर्ग के
खिलाफ संघर्ष में उतरने की प्रेरणा देता है।
मार्क्सवाद कहता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी से किसी को डरने की जरूरत नहीं है।
आखिर वे पूंजीवादी लोकतांत्रिक सरकार के
मुखिया हैं और सरकार संविधान से संचालित
है न कि किसी की सदिच्छा से।
माना कि हिटलर का उदय
भी पूंजीवादी लोकतंत्र के मार्फत ही हुआ
था, पर तब और अब के संस्थाओं और
उनकी कार्यप्रणाली पर वैश्विक
प्रतिक्रिया के असर में गुणात्मक फर्क आ
चुका है। इस बाबत पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान
का हवाला दिया जा सकता है। जरूरत इस बात
की है कि चुनाव प्रणाली समेत हरेक संस्थागत
कमजोरियों पर बेबाक टिप्पणी की जाए और
इनमें जनपक्षीय सुधार के लिए ईमानदार
कोशिश की जाए। इस कोशिश की कशिश से
ही भारत का भविष्य उज्जवल होगा। हमें
‘इंडिया दैट इज भारत’ से
छुटकारा पाना ही होगा।’
Hansraj tiwari
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2 thoughts on “अच्छे दिन वालों क्या कोर्ट में घसीटा जाए?”

  1. बात बात में न्यायलय की शरण में जाने वालों को यह काम भी कर ही लेना चाहिए ,सही हालत से परिचित हो जब उनकी अपील ख़ारिज होगी तो उनकी आदतों में कुछ सुधार आ सकेगा

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