आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी,/
वसुंधरा जी, मुख्यमंत्री राजस्थान ।
सरकार ने छठा वेतन आयोग जैसे लागू किया वैसे सभी सरकारों ने इसे कर्मचरियों को दे दिया। इसी प्रकार पत्रकारों के लिए भी मजीठिया का गठन किया गया, लेकिन मालिक इसे खा गए। न तो उन्हें इसका लाभ दिया न एरियर का भुगतान किया। दो-तीन हजार रुपए बढ़ाकर एक कागज पर बिना पढ़े दबाव डालकर साइन करा लिए। इसके बाद प्रबंधन ने कर्मचारियों के अनाप-शनाप तबादले किए, ताकि लोग नौकरी छोड़कर भाग जाएं। न बीमार देखा न बुजुर्ग।
आपसे निवेदन है कि पत्रकारों के हित में आप जरूर सोचें। आज वह जमाना नहीं है कि आप मीडिया से डरें। मीडिया की बखिया उधेडऩा जरूरी है। कारण मीडिया मालिकों के हाथों में है और कर्मचारी उनके द्वारा शोषित हैं। आप अपने सार्वजनिक भाषणों में भी जिक्र कर आमजनता को राजस्थान पत्रिका की हकीकत से अवगत करा सकते हैं कि समाजिक सरोकारों, संस्कारों का दंभ भरने वाला दंभी अखबार क्या कारगुजारियां कर रहा है। सरकार से पूरी छूट ले रहा है। कागज में, जमीनों में, सामाजिक सरोकारों के नाम पर विज्ञापनदाताओं, पैसे वालों को ब्लैकमेल कर रहा है। इनसे पूछा जाए कि ऐसा कौनसा काम है जिसमें पत्रिका प्रबंधन ने कुछ खर्च किया हो। बेचारे लोग मीडिया के डर से पैसा देते हैं। ये पैसा सीधे तौर पर मालिकों के पर्सनल अकाउंट में जा रहा है। न ही इसकी ऑडिट हो रही है न ही कहीं हिसाब-किताब है। इसके लिए बकायदा मुख्यालय से मालिकों के गुर्गे आते हैं और कैश लेकर उन तक पहुंचाते हैं।
ऐसे ये मालिक पत्रकारों के हित की बात क्यों नहीं करते, उन्हें उनका हक क्यों नहीं दे रहे। यहां तक कि सरकार की योजनाओं का लाभ भी पत्रिका प्रबंधन ने अपने कर्मचारियों को उठाने से रोका। क्या यह सरकार का अपमान नहीं था या वे सरकार से भी बड़े हो गए। आपकी सरकार पूर्ण बहुमत में है……..होगा वही जो आप कर देेंगे…..तरे मीडियाकर्मियों के लिए भी कुछ करिये…..जिन अखबारों ने मजीठिया नहीं दिया है….उनका डीआईपीआर का भुगतान….कागज और जमीनों पर छूट आदि रोकनी चाहिए………।
इसके अलावा कुछ प्रावधान भी हैं, जिन्हें लागू कर मीडियाकर्मियों के जीवन स्तर को सुधारा जा सकता है।
-हर मीडिया कंपनी कर्मचारियों का १० लाख तक का बीमा करवाए। क्योंकि कवरेज के समय उनकी जान को भी खतरा रहता है। इसके प्रीमीयम आदि का भुगतान भी कंपनी खुद करे। क्योंकि कर्मचारी कंपनी के लिए ही जान जोखिम में डालता है। विशेषकर मशीन में कामकरने वाले कर्मचारियों के साथ हादसे होते रहते हैं।
-कर्मचारियों के परिवार वालों के लिए आवश्यक योजनाएं चलाए, क्योंकि कर्मचारी के काम के घंटे तय नहीं होते। तय समय से कई गुना कर्मचारियों से काम लिया जाता है।
-ओवरटाइम पेमेंट की व्यवस्था हो।
-सरकार में भी मीडियाकर्मियों की सुनवाई के लिए सशक्त सेल का गठन हो और उस पर मॉनिटरिंग सख्त होनी चाहिए, ताकि मालिकों यदि शोषण करें तो उन्हें भी कार्रवाई का डर हो।
-कर्मचारी वेतन आयोग के अनुसार स्वयं ऑडिट करा सकें, इसके लिए सरकारी एजेंसी उनकी मदद करे और भौतिक सत्यापन भी करे, उनका अकाउंट चैक करे कि पूरी सेलेरी अकाउंट में डाली गई है या नहीं।
-कार्यालयों में लगी थंब इंप्रेशन मशीन की भी ऑडिट होनी चाहिए कि कर्मचारी ने तय समय से कितने घंटे अधिक काम किया है और यदि अधिक काम किया है तो उसे कितना ओवरटाइम किस नियमानुसार भुगतान किया गया है।
-फैक्ट्री एक्ट के अनुसार ओवरटाइम की व्यवस्था हो।
-मानवाधिकार आयोग की अचानक विजिट का प्रावधान भी अखबारों में किया जाना चाहिए। देखना चाहिए कि वे किसी कंडीशन में काम करते हैं। विशेषकर पत्रिका में तो इसलिए यह जरूरी है कि कहीं बाथरूम नहीं हैं तो कहीं गंदगी है। कहीं काम की कंडीशन सेफ नहीं हैं। उपकरण ही पूरे नहीं दिए जाते मशीनवालों को। उनकी जान का जोखिम रहता है।
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Hissar unit ke karamchari pahuche labour court. 18 Feb KO pesh hone all notice jari.
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