(ए.वी. पठानियां) भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अब अपने उस वायदे को पूरा करने में किसी भी तरह की देरी नहीं करनी चाहिए जो उन्होंने अपने चुनावी दौरे के दौरान हिमाचल प्रदेश में यह कह कर किया था कि अगर वह प्रधानमंत्री बने तो अद्र्धसैनिक बलों को सैनिकों जैसी सुविधाएं दिए जाने की प्राथमिकता से पहल ही नहीं करेंगे, बल्कि वे वर्दी से वर्दी के बीच का भेदभाव भी समाप्त कर देंगे। नरेन्द्र मोदी आज भारत के प्रधानमंत्री भी बन चुके हैं लेकिन आज समूचे भारत के अद्र्धसैनिक बल इस बात की आस लगाए हुए हैं कि वह दिन कब आएगा जब मौजूदा भारत सरकार उन्हें सैनिकों जैसी सुविधा दिए जाने पर अपनी मोहर लगाएगी। यह कितनी बड़ी हैरानगी वाली बात है कि जो अद्र्धसैनिक बलों के जवान समूचे भारत के चप्पे-चप्पे में दिन-रात मुस्तैदी से देश की खातिर जाग रहे हैं और अपने बलिदानों से देशवासियों को निर्भयता से सम्मान के साथ जीने का अवसर प्रदान करते हों, ऐसे जवान जो देश की सरहदों के सजग प्रहरी के रूप में युद्ध के समय एक सैनिक की तरह दुश्मन के खिलाफ अपनी सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश की खातिर लड़ रहे हों, जो निरंतर पिछले कई दशकों से देश की आंतरिक समस्याओं से लगातार आतंकवाद और अलगाववाद की कार्रवाइयों से अपने प्राणों की आहुतियां देकर देश की रक्षा में पूरे दमखम के साथ जुटे हों, ऐसे अद्र्धसैनिक बलों के शूरवीरों को भारतीय सेना की सी.एस.डी. कैंटीन से साबुन की एक टिकिया लेने की अनुमति तक नहीं। क्या यह भारत जैसे देश में शर्मनाक नहीं है कि हमारी सरकारें आजादी के बाद ऐसे नियम नहीं बना सकीं कि देश की रक्षा में तैनात सशस्त्र बलों व सैनिकों की सुविधाओं के बीच किसी भी प्रकार का मतभेद नहीं रखा जाएगा। क्या रक्षा और प्रतिरक्षा बलों की सुविधाएं एक जैसी करने से किसी की शान पर फर्क पड़ जाएगा? यह फर्क देश की सरहदों पर युद्ध के समय क्यों नहीं पड़ता जब सेना के जवान और अद्र्धसैनिक बलों के जवान एक होकर दुश्मन से लोहा लेते हैं? आज भी भारत की सरहदों पर अद्र्धसैनिक बलों के जवान सैनिकों की तरह दुश्मन से दिन-रात लोहा ले रहे हैं लेकिन उनके भविष्य को सैनिक की तरह सम्मान देना न जाने क्यों हमारी सरकारों ने उचित नहीं समझा है? अद्र्धसैनिक बलों के रिटायर्ड लोगों को मात्र 300 रुपए का चिकित्सा भत्ता दिया जाता है, क्या उन्हें भीसैनिकोंजैसीचिकित्सासुविधानहींमिलनीचाहिएं? क्या उनके परिवार एक सैनिक परिवार से भिन्न हैं। क्या उनको बीमारी नहीं होती? कितनी हैरानगी भरी दास्तान है कि जिस देश के अद्र्धसैनिक बलों के जवानों और अधिकारियों को 1971 के भारत-पाक युद्ध में विजय के उपरांत वीर चक्र एवं महावीर चक्र के साथ-साथ भारत के राष्ट्रपति द्वारा असंख्य पुलिस मैडलों से नवाजा जा चुका हो, क्या ऐसे सशस्त्र बल जवानों के साथ पिछले कई दशकों से सुविधाओं के नाम पर भारत की सरकारों के द्वारा किया जाने वाला सौतेला व्यवहार उचित है? हमेशा ही अद्र्धसैनिक बलों ने अपने खून से भारत की एकता व अखंडता को बनाए रखा है लेकिन दुखद है कि ऐसे बलों के लोग पूरे भारत में सैनिकों जैसी सुविधाओं के नाम पर ठगे जा रहे हैं। कितना शर्मनाक है कि देश की सेवा करने के उपरांत अद्र्धसैनिक बलों के रिटायर्ड लोग अपनी सैनिक जैसी सुविधाओं की मांग के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं। ऐसा नहीं है कि अद्र्धसैनिक बलों के जवानों को सैनिकों जैसी सुविधा दिए जाने का मुद्दा संसद भवन में न गूंजा हो। पिछली सरकार के शासनकाल में यह मुद्दा हिमाचल प्रदेश के उस समय के भारतीय जनता पार्टी के कांगड़ा व चम्बा के सांसद डा. राजन सुशांत ने संसद भवन में उठाया था लेकिन आज भी ये जवान सैनिक सुविधाओं से वंचित हैं। भारत माता के सपूतों के बीच सुविधाओं के नाम पर सौतेले व्यवहार का यह फर्क भारत सरकार को 1971 के भारत व पाक युद्ध के पश्चात ही समाप्त कर देना चाहिए था जब अद्र्धसैनिक बल बी.एस.एफ. ने कंधे से कंधा मिलाकर भारतीय सेना के साथ इस युद्ध में बहुत बड़ी विजय देश को दिलाई थी। हमारे नेताओं के जो हाथ अद्र्धसैनिकों के अदम्य साहस के लिए तालियां बजाने में कोई कमी नहीं रखते, वही उन्हें सैनिकों जैसी सुविधा दिए जाने के लिए क्यों बंद मु_ी में बदल जाते हैं? भले ही आज भारत के रिटायर्ड अद्र्धसैनिकों द्वारा ऑल इंडिया पैरामिलिट्री फोर्स वैल्फेयर एसोसिएशन का गठन कर लिया गया हो और प्रांतों की एसोसिएशनें अपनी मांगों के लिए जो भी प्रयास करती हों वह सब कुछ वैसा ही है जैसे कोई चकोर चन्दा को निहारता रहे। क्या जी-जान से देश की सेवा करने वाले रिटायर्ड अद्र्धसैनिक बल के लोगों को अब अपनी सुविधाओं की मांगके लिए आम आदमी की तरह सड़कों पर उतरनाहोगा? जिन लोगों ने हमेशा से अनुशासन को चरम पर रख कर देश की सेवा की हो, ऐसे लोगों के सम्मान कीरक्षाकरनाहमारीसरकारोंकादायित्व है। प्रधानमंत्री महोदय को अब देश के अन्दर पिछले कई दशकों से चली आ रही सुविधाओं के नाम पर भेदभाव की नीति को समाप्त करने में देरी नहीं करनी चाहिए अपितु देश के समूचे अद्र्धसैनिक बलों के समस्त परिवारों एवं शूरवीरों के हित में उन्हें सीधे ही सैनिक सुविधाओं से जोड़ कर देश की शक्ति में एक नई जान डालने कीअपनीउच्चकोटिकीकार्यकुशलताकापरिचय देते हुए अपनी वचनबद्धता को निभाने में कोई कोर-कसर नहीं छोडऩी चाहिये । हमारी आवाज़ शायद प्रधानमंत्री जी के पास अभी नही पहूची है अन्यथा अभी तक इस दिशा में कुछ सार्थक परिणाम अवश्य आताआप हमारी माँग के समर्थक है ?
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