केंद्र सरकार ने FTII के निदेशक पद से गजेन्द्र चौहान को हटाकर राजकुमार हीरानी को नियुक्त किया है।
दो माह से संघर्षरत विद्यार्थियों की तो यह जीत है ही ,साथ ही कला जगत में अवांछित सरकारी हस्तक्षेप की महत्वपूर्ण पराजय भी है।
कला साहित्य संस्कृति को राजकीय हस्तक्षेप से मुक्त रखा जाना चाहिए तथा राजकीय सहायता प्राप्त संस्थानों की स्वायत्तता की रक्षा की जानी चाहिए।
इन संस्थानों को सरकारें अपनी।जागीर समझने लगी हैं।
राजस्थान में पिछली सरकार ने साढ़े तीन साल तक साहित्य अकादमी का अध्यक्ष ही नियुक्त किया।फिर किया भी तो चले हुए कारतूस को बैठाया।
वर्तमान सरकार को डेढ़ वर्ष हो गया उन्हें कोई उपयुक्त पात्र नही मिल रहा।
ऐसी ही स्थिति अन्य अकादमियों व संस्थानों में है।
एक समय था जब इन नियुक्तियो में व्यक्तिगत व राजनैतक पसंद के स्थान पर योग्यता का ही ध्यान रखा जाता था।सरकार के प्रखर आलोचक भी अपनी क्षमता के कारन सुशोभित हुए।
सुखाड़िया सरकार ने राजस्थान साहित्य अकादमी का प्रथम अध्यक्ष अपने धुर विरोधी जनार्दन राय नागर को बनाया।वो 12 वर्ष तक इस पद पर रहे और सरकार के आलोचक भी बने रहे।
आज जिस तरह के पिछलग्गू इन पदों पर बैठते हैं उससे लगता है कि रीढ़विहीन होना ही सबसे बड़ी योग्यता है।
FTII के विद्यार्थियों के संघर्ष ने एक राह दिखाई है। प्रतिबद्ध कलाकर्मियो व साहित्यकारों को उनसे सीखना चाहिए।
अनंत भटनागर की फेसबुक वाल से साभार
