सुभाष चन्द्र बॉस के साथ काम कर चुके आदमी अभी तक मिल जायेंगे, खूब सारे तो नहीं एक्का दुक्का। गांधीजी, नेहरूजी के साथ आजादी के आंदोलन में भाग लिए हुए आदमी भी मिल जायेंगे..
इसी तरह आपके पिताजी, माताजी, दादाजी के सहपाठी मिल जायेंगे या फिर उनके बेहद पुराने सहकर्मी मिल जायेंगे..
मगर क्या आजतक कोई एक भी आदमी सामने आया है जिन्होंने पीएम मोदीजी को बचपन में चाय बेचते देखा हो? या कभी चाय पी हो?
पीएम मोदीजी दावा करते हैं कि रेल में भी चाय बेचीं थी.. आखिर वहाँ स्टेशन पर कोई तो और वेंडर, कुली, कर्मचारी होता जो यह कहता कि हाँ इन्होंनें कभी यहाँ चाय बेची थी…
हकीकत यह है कि आजतक उनके किसी एक भी जानकार या परिचित या परिवारजन ने इस चायवाली बात की पुष्टि नही की है, क्या यह बात अजीब नहीं लगती?
वैसे भी एक आरटीआई के जवाब में वेस्टर्न रेलवे ने बताया कि, उनके पास वडनगर और उसके आसपास के दस स्टेशनो पर भी किसी भी ऐसे नाम के आदमी का रेलवे स्टेशन पर टी वेंडिंग का कोई रिकॉर्ड नही है 1960-1980 तक की कालावधि में।
प्रधान मंत्री की बचपन की एक तस्वीर भी मीडिया में आई है, जिसमे वे वैल ड्रेस्ड हैं कोट, पेंट, जूते, मोज़े समेत… वो वेशभूषा एक चायवाले लडके की तो बिल्कुल नहीं है…
सबसे बडी बात… कि मोदीजी 1994-95 से एक्टिव राजनीति में थे… तीन बार गुजरात का मुख्यमंत्री रहे.. तीन बार विधानसभा चुनाव लडा.. कभी भी प्रचार में इन्होंने अपने चायवाला होने का जिक्र नहीं किया, ना ही गुजरात का मुख्यमंत्री रहते कभी एक बार भी यह बात की.. उन पंद्रह सालों में दर्जनों इंटरव्यू दिये, लेकिन कभी चायवाली बात का जिक्र तक नहीं किया…
फिर पिछले लोकसभा चुनाव से पहले ही इन्हें “चायवाला होना” अचानक क्यों याद आया?
पहले क्या याद्दाश्त चली गई थी? जो 2014 के लोकसभा चुनाव के समय अचानक लौट आई?
आखिर में इस समय और इस पद पर आकर बारबार “मैं चाय बेचता था, मैं चाय बेचता था” कहने का क्या तुक है?
क्या यह चाय वाली बात, खुद को गरीब दिखाकर सिर्फ जनता की सहानुभूति बटोरने के लिए रचा गया ड्रामा है?
यदि यह झूठ है, तो क्या यह देश से धोखेबाजी एक गंभीर बात नहीं है?
आपको क्या लगता है?
आपभी इस गंभीर बात पर सोचे।
Manish sharma
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