किसने आप से कहा कि अखबार व चैनल चलाइये

electronic mediaक्या कीजिएगा…अब मीडिया की खबर देने वाली वेबसाइट्स पर भी PR Stories दिखने लगी हैं…पहले एक खबर चलाते हैं और फिर उसे काटने के लिए दूसरी “PR स्टोरी” चेंप देते हैं… वैसे मेरी समझ में ये नहीं आता कि रेवेन्यू आ नहीं रहा…मिल नहीं रहा…घाटा बढ़ता जा रहा है लेकिन बड़े-बड़े बनिए फिर भी अखबार-चैनल चलाए जा रहे हैं…आखिर किसलिए? कोई तो बात होगी…कहीं तो कोई हित सध रहा होगा…या फिर ये सारे बनिए देशसेवा के लिए इतने तत्पर हैं कि घर से पैसा लगाकर-घाटा सहकर अखबार-चैनल चलाए जा रहे हैं….

और फिर रोना रोते हैं बिजनेस मॉडल का और रेवेन्यू का…अरे भैया, किसने आपसे कहा कि चैनल-अखबार चलाकर-निकालकर देश पर एहसान करिए…घाटा हो रहा है तो बंद कर दीजिए ना… और जब बिजनेस मॉडल की बात करेंगे तो फिर पत्रकारिता की बात मत करिए…सिद्धांतों और नैतिकता का रोना मत रोइए…शान से कहिए आप एक प्रॉडक्ट निकाल और बेच रहे हैं…मैं तो कभी नहीं कहता कि नौकरी करते हुए मैं पत्रकारिता करता हूं…खबरों की दुनिया में खबर बेचता हूं, बस…और यही सच है. अगर जिया खान की स्टोरी बिकेगी तो मैं बेचूंगा और राखी सावंत की स्टोरी से टीआरपी मिलेगी तो मैं उसे दिखाऊंगा…और अगर नौकरी करनी है, बिजनेस में बने रहना है तो ये सब करना पड़ेगा…फिर भी ये आप पर है कि इन सीमाओं के बावजूद कितनी संवेदनशीलता से आप चीजों को दिखाते-परोसते हैं…

हां, जहां-जहां मुझे आजादी मिली है, छूट मिली है, अधिकार मिले हैं, मैंने खुलकर गंभीर खबरों के साथ पाठक-दर्शकों के सरोकारों से जुड़ने की कोशिश की है…लेकिन ये आप पर है कि अगर आपको घुटने के बल आने के लिए कहा जाए तो आप दंडवत ना लेट जाएं…संपादकीय विभाग की गरिमा बनाए रखने का जिम्मादारी भी आप पर ही है…और अगर बर्दाश्त ना हो, तो इस्तीफा देकर कोई और नौकरी ढूंढिए….लेकिन ये गारंटी नहीं कि दूसरी जगह भी आपसे यही सब करने के लिए नहीं कहा जाएगा…!!!! सो फैसला पूरी तरह से आपके हाथ में है…और हां, कभी ऊपर से फोन आ जाए कि संपादक जी, मार्केटिंग वालों का टार्गेट पूरा नहीं हो रहा है, एडिटोरियल से सहयोग की अपेक्षा है तो आपको सहयोग करना पड़ेगा…

अगर कोई बड़ी खबर है तो कई दफा आपको ये अधिकार होता है कि आधे-एक घंटे का निर्मल बाबा का स्लॉट आप गिरा सकते हैं…और फिर बाद में आपको ही जस्टिफाई करना होगा कि स्लॉट गिरने से रेवेन्यू का लॉस तो हुआ है लेकिन दर्शकों का भरोसा जीतने-बनाए रखने के लिए, मार्केट में चैनल की साख कायम रखने के लिए हमें तत्काल खबर पर आना जरूरी था या फलां खबर की लगातार कवरेज जरूरी थी…यही हाल अखबार में भी है…ऐड गिरा देंगे तो उस स्पेस में खबर परोसने की महत्ता आपको साबित करनी ही होगी…वरना आपको गुडबाय बोल दिया जाएगा..

और अगर निर्भीक-निष्पक्ष-बेदाग-गंभीर-जनसरोकारी पत्रकारिता करनी है तो किसने रोका है…अपना अखबार निकालिए, चैनल चलाइए…कौन मना कर रहा है…लेकिन इसकी गारंटी नहीं कि उत्पाद, विश्लेषण और वितरण के बाजार वाले अर्थशास्त्र से आप वहां भी बचे रहे पाएंगे. http://bhadas4media.com

पत्रकार नदीम एस. अख्तर के फेसबुक वॉल से.

error: Content is protected !!