आसाराम बापू के खिलाफ अभियान पत्रकारिता नहीं

asharamकई मित्र मुझसे पूछ रहे हैं कि मैं आसाराम बापू के पक्ष में क्यों खड़ा हो गया हूं। सच यह है कि मैं न उनके पक्ष में खड़ा हूं न विपक्ष में। जब मामला पुलिस से न्यायालय तक है तो पक्ष-विपक्ष का प्रश्न कहां है। मेरा प्रतिकार तो मीडिया की भूमिका से है। मैंने अपनी टिप्पणियों में यही कहा है कि मीडिया आरोप के साथ ही जिस तरह आसाराम बापू को सबसे बड़ा दुराचारी साबित करने का अभियान चला रहा है वह किसी दृष्टि से पत्रकारिता नहीं है। किसी का दिन रात पीछा करना, उसे चैन से कहीं आने-जाने न देना कौन सी पत्रकारिता है? मीडिया को पुलिस पर दबाव इस बात का बनाना चाहिए था कि वह बिना किसी के पक्ष-विपक्ष में गए निष्पक्ष जांच और कार्रवाई करे। मीडिया ने दबाव इस बात का बनाया कि आसाराम बापू को हर हाल में अपराधी साबित करो। यह पत्रकारिता के नाम पर आतंक है। आसाराम की संपत्ति, उनके अन्य कार्य सारे इस समय मुद्दा बनाए जा रहे हैं, जिनमें कुछ सही हो सकते हैं, पर इस समय पुलिस के पास केवल एक लड़की द्वारा यौन उत्पीड़न का आरोप है और मैं उसी संदर्भ में अपना मत प्रकट कर रहा हूं। मेरा यह भी मानना है कि आसाराम बापू या ऐसे अन्य आश्रम संस्कृति के लोगों का भारतीय सभ्यता-संस्कृति को बनाए रखने सहित शिक्षा, संस्कार, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में जो योगदान है उनकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। लेकिन मेरा किसी भी अपने पत्रकार मित्र से निजी नाराजगी नहीं। यह मेरा विचार है। हर व्यक्ति को मेरे से सहमत-असहमत होने का अधिकार है।

वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार के फेसबुक वॉल से.

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