अवैध रेत का परिवहन करने वाले पांच ट्रकों पर कार्यवाही

chatarpur-logoछतरपुर / बीते रोज नौगांव एसडीएम ने अवैध रूप से रेत का परिवहन करने
वाले पांच ट्रकों पर कार्यवाही की, अवैध रूप से रेत का परिवहन
कर रहा एक टे्रक्टर मऊसहानिया के पास पलट गया, छतरपुर में
सांतरी तलैया के पास अवैध रूप से रेत का परिवहन करके आने वाले
टे्रक्टरों की लाईन लगी रहती है। जिले की रेत खदानों पर बड़े
पैमाने पर अवैध रूप से खुलेआम उत्खन्न चल रहा है। इतना ही नहीं
खनिज अधिकारी ने पिछले दिनों कलेक्टर को गुमराह करके
धनवली खनिज माफिया से सांठगांठ करके नियमविरूद्ध ढंग से खनिज
उत्खनन के लिये पट्टा बना डाला। इतना सब होने के बावजूद जब उनके
कारनामों के किस्से उजागर हुये और बिग बॉस यानि कलेक्टर ने
उनकी क्लास ली तो खनिज अधिकारी खुद को नीट एण्ड क्लीन बताने के
लिये अब तथ्यात्मक समाचार का प्रकाशन करने वाले अखवारों को
नोटिस थमाने का ड्रामा करने लगे हैं।
यदि कहा जाये कि जिले में खनिज विभाग केवल नाम के लिये काम कर
रहा है तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं होगी। खनिज विभाग के नियमों
को न तो खनिज माफिया मानते है न अधिकारी उन्हें नियम मानने के
लिये कोई प्रयास करते हैं। नियमानुसार खनिज अधिकारी या
निरीक्षक को रेत और पत्थर खदानों का मौके पर जाकर निरीक्षण
करना चाहिए कि लीजों की नियमानुसार खुदाई हो रही है या नहीं
लेकिन ऐसा होता नहीं है। यदि गाहे- बगाहे निरीक्षण कर भी लिया तो
मात्र नोटिस देकर खानापूर्ति की जाती है। बाद में ले देकर नोटिसों
को दबा दिया जाता है। औपचारिक निरीक्षण में यह नहीं बताया जाता है
कि निरीक्षण दिनांक तक खनिज उत्पादन की मात्रा क्या है? यह मात्र लिख
दिया जाता है कि पटटेदार कर निर्धारण हेतु समस्त अभिलेखों सहित 7
दिन में उपस्थित हों। जिसका परिणाम यह होता है कि बिना कर निर्धारण
के उत्खनन चलता रहता है और सूत्रों की माने तो इसके एवज में खनिज
अधिकारी को साध लिया जाता है। इस तरह से कायदे कानून के उल्लंघन
पर पर्दा डालने के लिए निर्धारित सुविधा शुल्क लेकर यह लेख कर दिया
जाता है कि खनन कार्य नियमानुसार चल रहा है। नियमों में ये साफ है कि
प्रत्येक लीज ठेकेदार हर माह यह बताए कि उसने कितना उत्खनन किया है,
पर कोई भी ठेकेदार कभी भी यह लिखित रूप से यह नहीं बताता है। इस
पर कभी भी ठेकेदार के खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं की जाती है।
क्रेशर संचालक शासन द्वारा निर्धारित रायल्टी सरकारी खजाने में
कभी जमा नहीं कराई जाती है जिससे शासन को प्रतिमाह लाखों रूपए के
राजस्व का नुकसान होता है। इसी तरह के्रशर लगाने के समय ये साफ
प्रावधान है कि क्रेशर संचालक अनिवार्य रूप से पर्यावरण विभाग से
अनापत्ति प्रमाण पत्र लें, लेकिन ऐसा कोई भी नहीं करता है। जिले में
लगे लगभग सभी क्रेशर पर्यावरण विभाग से बिना अनापत्ति प्रमाण पत्र लिए
ही चलाए जा रहे हैं।
इस बार तो नियम विरूद्ध तरीके से खनिज माफिया को फायदा पहुंचाने
के लिये खनिज अधिकारी ने कलेक्टर को भी गुमराह कर दिया। यह
सच्चाई सामने आते ही अब खनिज अधिकारी पत्रकारों को नोटिस
दिलाकर तरह तरह से दबाव बनाने में जुट गये हैं ताकि बिग बॉस
उन्हें क्लीन चिट दे दें।
Santosh Gangele

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