आखिर जेल जाना पडा जयललिता को

jaylalitaदोषी करार दिये जाने और सजा सुनाये जाने के बीच जितना फासला था जयललिता के लिए उतने ही साल जेल की सलाखें लेकर आये। दोपहर एक बजे तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता को आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी करार दिया गया और शाम पांच बजे चार साल की सजा सुना दी गई। आय से अधिक संपत्ति के मामले में जयललिता को संभावित तौर पर एक से सात साल की सजा हो सकती थी और जज जान माइकल कुन्हा ने उन्हें चार साल की जेल और 100 करोड़ के जुर्माने की सजा सुना दी। और कोई जाने न जाने जज जॉन माइकल जरूर जानते होंंगे कि अगर जे जयललिता को तीन साल या इससे कम की सजा सुनाई गयी होती तो शायद उनके वकील भवानी सिंह तत्काल उसी अदालत में जमानत की अर्जी लगा देते। लेकिन अब जयललिता के पास जेल जाने के अलावा और कोई चारा नहीं। उनके जमानत पर सुनवाई अब हाईकोर्ट में ही हो सकेगी।

जयललिता की आय से अधिक संपत्ति मामले की सुनवाई जिस विशेष अदालत में हो रही थी वह बंगलौर की सेन्ट्रल जेल में ही बनाई गयी थी, फिर भी अभी तक पता नहीं है कि जयललिता को बंगलौर सेन्ट्रल जेल में ही रखा जाएगा या फिर बाद में 70 लाख रूपये की लागत से महिलाओं के लिए विशेष तौर पर बनाई गई तुमकुर जेल भेज दिया जाया जाएगा। वे कहीं भी रहें लेकिन अपने प्रिय पोएस गार्डन से दूर हो गयी हैं। यह दूरी बहुत सामान्य नहीं होगी। सजायाफ्ता होने के बाद अब वे न तो तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रह जाएंगी और न ही दोषमुक्त होने तक कोई चुनाव लड़ पायेंगी। तब सवाल यह है कि तमिलनाडु में वे जिस राजनीतिक विरासत की उत्तराधिकारी थी उस राजनीति को कौन संभालेगा?

अगर बात किसी राष्ट्रीय पार्टी से जुड़ी होती तो संकट इतना बड़ा न होता। लेकिन जयललिता एक ऐसी क्षेत्रीय पार्टी का प्रतिनिधित्व करती हैं जिसका वर्तमान नेतृत्व तो होता है लेकिन ऐसे दलों में भविष्य का कोई नेतृत्व नजर नहीं आता। यह समस्या अकेले जयललिता की पार्टी के साथ हो ऐसा भी नहीं है, देशभर में जितने भी एक व्यक्ति एक पार्टी के सिद्धांत पर क्षेत्रीय पार्टियां काम कर रही हैं वे सब नेतृत्व न उभरने देने के सिद्धांत पर काम करती हैं। अगर जयललिता का परिवार होता तो हो सकता है लालू यादव की तर्ज पर उनके घर से निकलकर कोई नेतृत्व संभालने बाहर आता लेकिन जयललिता का पक्ष भी शून्य है और उनके दत्तक पुत्र सुधाकरन ही नहीं बल्कि जयललिता की साथी शशिकला भी जयललिता के साथ जेल जा चुके हैं। करीब दो साल पहले जयललिता के मन्नारगुणी माफिया हो चुका शशिकला और उनका परिवार फिलहाल विकल्प दिखाई नहीं देता। तो फिर सवाल यह है कि क्या अब तमिलनाडु धोतीवाला नहीं बल्कि टाईवाला मंत्री चलायेगा?

इसका जवाब आने में थोड़ा समय लगेगा लेकिन जयललिता की जेल यात्रा तत्काल प्रभाव से शुरू हो चुकी है। एमजी के निधन के बाद 1989 में फिल्मों से राजनीति में आई जे जयललिता दो साल बाद ही कांग्रेस की मदद से 1991 में मुख्यमंत्री बन गईं। 1991 के चुनाव में जे जयललिता की जीत ने जैसे उन्हें राजनीति के क्षितिज पर पेश किया था पांच साल बाद ही 1996 में जयललिता को करारी हार का सामना करना पड़ा। उनके 168 उम्मीदवारों में सिर्फ चार को जीत मिली और खुद जयललिता चुनाव हार गईं। लेकिन जयललिता सिर्फ चुनाव ही नहीं हारी बल्कि उनके खिलाफ इसी साल आय से अधिक संपत्ति का मामला भी दर्ज करवाया गया। यह काम किया सुब्रमण्यम स्वामी ने। आय से अधिक संपत्ति के मामले में बाद में भले ही स्वामी हट गये हों लेकिन अपने पहले कार्यकाल में महज एक रूपया वेतन लेनेवाली जयललिता की संपत्तियों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। अदालत में जारी याचिका में सवाल उठाया गया था कि एक रूपये की कमाई से कोई 68 करोड़ की संपत्ति कहां से इकट्ठा कर सकता है? इस संपत्ति में निश्चित रूप से जमीन जायदाद ही नहीं बल्कि जयललिता की साड़ियों और सैंडलों को भी बतौर संपत्ति शामिल किया गया था जो उनके पास हजारों की तादात में थीं।

जयललिता का राजनीतिक उभार एक ज्वार की तरह था। ठीक वैसे ही जैसे उत्तर प्रदेश में मायावती या फिर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का हुआ। इन कुंआरी नेत्रियों को जनता ने अपना नेतृत्व दिया लेकिन दुर्भाग्य से इनमें से दो नेत्रियोंं के ऊपर आय से अधिक संपत्ति के मामले ही दर्ज हुए। मायावती हों कि जयललिता साड़ी, सैंडल, सलवार शूट, संपत्ति और सैन्य तानाशाही जैसा शासन ही सामने आया। दुर्भाग्य इससे भी दुखद यह है कि इन दोनों ही नेताओं का राजनीतिक कैरियर उसी संपत्ति के मायाजाल का शिकार हो गया जिसे बनाने के लिए उन्होंने अपनी सत्ता और शक्ति का इस्तेमाल किया। मायावती भले ही सुप्रीम कोर्ट से आये से अधिक संपत्ति के मामले में बरी करार दी जा चुकीं हों लेकिन उत्तर प्रदेश आमचुनावों में करारी हार के बाद मायावती को नये सिरे से अपने आपको स्थापित करने के लिए काम करना होगा। कमोबेश यही अब जयललिता को करना होगा। सुब्रमण्यम स्वामी अगर यह कह रहे हैं कि जयललिता का राजनीतिक कैरियर बर्बाद हो गया, तो वे कुछ गलत नहीं कह रहे हैं। वे जिस सत्ता तंत्र के सहारे राजनीतिक पकड़ रखती थीं अगर उस तंत्र से बहिष्कृत हो जाएंगी तो कितने दिन पार्टी पर पकड़ बनाकर रख पायेंगी?

जयललिता के खिलाफ क्या है मामला
एआईएडीएमके प्रमुख जयललिता पर आरोप था कि 1991 से 1996 के दौरान बतौर मुख्‍यमंत्री उन्‍होंने आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति जमा की। इस दौरान बतौर मुख्‍यमंत्री उन्‍होंने एक रुपया महीना वेतन लिया। इसके बावजूद पांच साल में उनकी संपत्ति तीन करोड़ रुपए से बढ़ कर 66.65 करोड़ रुपए हो गई। मामले में उनकी सहयोगी शशिकला नटराजन, उनकी रिश्तेदार इलावरासी और उनके गोद लिए लेकिन बाद में बेदखल किए गए सुधाकरन को भी आरोपी बनाया गया था। जया के खिलाफ भ्रष्‍टाचार निरोधक कानून के तहत केस दर्ज किया गया था।

छापे के दौरान मिला था 28 किलो सोना
1996 में जब जयललिता के घर पर छापा मारा गया था तब 896 किलो चांदी, 28 किलो सोना, 10 हजार साडि़यां, 750 जूते और 51 घडि़यां बरामद हुई थीं।
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