दमोह जिला अस्पताल के नव निर्मित द्वार का नामकरण प्रथम दानदाता सिंघई रघुवर प्रसाद के नाम पर किए जाने के बाद आखिर इतना हाय तौवा क्यों किया जा रहा है ? वहीं इसको लेकर धर्म, जाति, पार्टी आदि के ताने-बाने बुनकर भी प्रश्नचिंह लगाए जा रहे है। इस दौरान आलोचकों द्वारा स्वर्गीय सिंघई द्वारा अपने जीवनकाल में कराए गए समाजसेवी कार्यो को नजरांदाज करने के प्रयास करते हुए गेट नामकरण मामले की समीक्षा अपने अपने ढंग से करने की कोशिश की जा रही है। जिसे एक गुमनाम समाजसेवी तथा दानदाता के साथ सौतेला वर्ताव भी कहां जा सकता है। यहां गुमनाम शब्द का प्रयोग इसलिए किया जा रहा है, क्यों कि स्वगीर्य सिंघई के परिजनों ने आज तक उनके नाम को किसी तरह से प्रचार का जरिया नहीं बनाया। आज यदि यह विवादास्पद हालात सामने नहीं आते तो शायद उनके बारे में जानकारी देने की जरूरत वर्तमान पीढ़ी के आलोचकों को नहीं पढ़ती।
प्रथम दानदाता रहे है सिंघईजी
दमोह में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के करीब सौ साल पुराने इतिहास में जुझार के तत्कालीन मालगुजार सिंघई रघुवरप्रसाद का प्रखर योगदान रहा है। इनके पूर्वज दौलतराम, हजारीलाल सिंघई पन्ना के महाराजा छत्रसाल के समय से लेकर पेशवा के वंशजों के समय तक दरवारी रहे है। सन 1920 के दशक में दमोह जिले में चेचक, माता, हैजा, प्लेग जैसी महामारी जब अपना कहर बरसा रही थी। उस समय सिंघई रघुवर प्रसाद ने दमोह में दो विशाल कमरों वाले मेडिकल वार्ड का निर्माण कराते हुए स्वास्थ्य सेवाओं की शुरूआत की थी। 1924 में इस मेडिकल वार्ड का उदघाटन तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर खान बहादुर सैयद जाकिर अली आईएसओ द्वारा किया गया था। उस समय श्री सिंघई आनरेबिल मजिस्टेªट तथा ड्रिस्ट्रिक काउंसिल के चेयरमैन जैसे पद भी थे। इस बात का सा़क्षी शिलालेख आज भी जिला अस्पताल के मुख्यद्वार के बाजू में लगा हुआ है। जिसमें प्रजेंटेड बाय सिंघई रघुवर प्रसाद मालगुजार, दरबारी, आनरेबिल मजिस्टेªट, चेयरमैन डिस्टिक कांउसिल आदि अंकित है। श्री सिंघई की पहल के बाद इसी केंपस में 1930 एवं 40 के दशक में अन्य दानदाताओं द्वारा भी वार्डो के निर्माण कराके स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि के प्रयास किए गए।
जहर देकर कराई थी हत्या
अपने जीवनकाल में सार्वजनिक तौर पर दर्जनों कुंआ, बाबड़ी एवं सड़कांे का निर्माण कराने वाले सिंघई रघुवर प्रसाद ने तीर्थक्षेत्र कुंडलपुर जी में तालाब के समीप मंदिर निर्माण कराया था। 53 नम्बर के इस मंदिर मंे उनके नाम का शिलालेख वर्तमान में भी मौजूद है। 1932 में दमोह से जिले का दर्जा छीन कर इसे सागर जिले मंे समाहित कर दिया गया। उस दौरान श्री सिंघई ने प्रेमशंकर धगट, हरिशचंद्र मरोठी, रघुवर प्र्रसाद मोदी सहित अनेक युवाओं के साथ विभिन्न आंदोलनों में हिस्सा लेते हुए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जमकर शंखनाद किया। परंतु 10 जुलाई 1941 को हिंडोरिया में आयोजित राजा लक्ष्मणसिंह के तिलक समरोह के दौरान एक अंग्रेज अफसर के इशारे पर उनकों धोखे से खाने में जहर मिलाकर दे दिया गया। जिसके बाद उनकी हालत बिगड़ने पर दमोह की अस्पताल लाने के बजाय घोड़े से जुझार वापिस भेज दिया गया। जहां बाद में उनकी मौत हो जाने के साथ ही सिंघई परिवार पर मुसीवतों का पहाड़ टूटना प्रारंभ हो गया। उस समय उनके पुत्र रतनचंद की आयु महज पांच वर्ष थी। अंगे्रजांे की दबिश तथा प्रापर्टी के चक्कर में पांच साल के रतनचंद एवं उनकी मां इंद्रानीबहू को भी जान से खत्म कर देेने की धमकिया मिलने पर इनकों रघुवरप्रसाद की तेरहवी के बाद जुझार छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। जिसके बाद सिंघई परिवार की सभी संपत्तियों का बंदरवाट कराके हड़पने के बाद लोग चलते बने। इधर अनेक वर्षो तक रिश्तेदारों के यहां रहकर गुमनामी भरा बचपन काटने वाले स्वर्गीय सिंघई के पुत्र रतनचंद को शिक्षा ग्रहण करने तक का अवसर नहीं मिला। देश की आजादी के बाद अपने गांव जुझार वापिस पहंुचने पर नाबालिग में दर्ज हवेली एवं बगीचा ही इनको विरासत में प्राप्त हुआ।
1950 में बना प्रधान चिकित्सालय
इधर देश के आजाद होने के बाद अस्पताल केंपस में खैराती अस्पताल का निर्माण कराया गया। 1950 में जिसका उदघाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल द्वारा किया गया था। उस समय नामांकित विधायक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रेमशंकर धगट थे। जिनके निधन के बाद जिला अस्पताल का नामकरण इन्हीं के नाम पर किया गया। वहीं समय के साथ साथ पुराने दानदाताओं के बनवाए वार्डो के कंडम होते जाने से 1990 के दशक में पुराने वार्डो को हटाकर इनकी जगह नए वार्डो का निर्माण कराया गया। परंतु पुराने दान दाताओं की याद को चिरस्थाई बनाने कोई प्रयास नहीं किए गए।
सांसद मंत्री ने ली सुध
21 अगस्त को कलेक्टेªट सभाकक्ष में आयोजित रोगी कल्याण समिति की बैठक में सांसद प्रहलाद पटेल का ध्यान अस्पताल के पुराने दानदाताओं के प्रति जारी उपेक्षात्मक रवैये की ओर दिलाया गया। साथ ही प्रथम दानदाता सिंघई रघुवरप्रसाद द्वारा निर्मित कराए गए वार्ड एवं शिलालेख के फोटोग्राफस सभी के सामने रखे गए। जिसके बाद जिला अस्पताल के निर्माणाधीन द्वार का नामकरण प्रथम सिंघई रघुवरप्रसाद के नाम किए जाने सभी के द्वारा सहमति जताई गई। बाद में इसकी जानकारी स्थानीय विधायक एवं मंत्री जयंत मलैया को दिए जाने के बाद उनके द्वारा गांधी जयंती पर सिंघई स्मृति द्वार का उदघाटन किया गया।
दान देने वालों को मिलेगी पे्ररणा
जिसके बाद स्वर्गीय सिंघई के परिजनों ने मंत्री, सांसद, जिला प्रशासन, अस्पताल प्रबंधन को धन्यवाद देते आशा जताई है कि इससे लोगों के बीच में दान देने की भावना प्रेरित होगी। साथ ही लोग अपने पूर्वजों केे कार्यो को आगे बढ़ाने के लिए भी दान करने का रास्ता अपनाएगे। द्वार के नामकरण को लेकर कुछ लोगों द्वारा जताई जा रही आपत्ति को दुर्भाग्य पूर्ण बताते हुए सिंघई परिवार ने इस बात पर सहमति जताई है कि नवनिर्मित द्वार पर स्वर्गीय प्रेमशंकर धगट का नाम भी अंकित होना चाहिए।
–Rajendra Atal