थिरूवायरू। कावेरी तट पर षीतल चांदनी और कल-कल बहती जलधारा के बीच राजस्थान के 45 लोक कलाकारों ने जब लोक स्वर लहरियां छेड़ी तो दर्षक स्वर सरिता में गोते लगाने लगे। जयपुर विरासत फाउण्ड़ेषन के बैनर तले बाड़मेर, जैसलमेर व जोधपुर के लंगा-मांगणियार कलाकारों ने पहले कमायचा, मुरली, सारंगी, सुरिन्दा, खड़ताल, भपंग, मोरचंग, अलगौजा, षहनाई, ढोल व ढोलक पर लगभग आधा घण्टा सामुहिक लोक वाद्य वादन किया। कमायचा के दिलकष स्वरों ने दिल के तार छेड़े तो लंगो की सारंगी ने स्वरों को प्रवाह दिया। अलगौजे की मादक स्वर लहरियों ने धोरों की याद दिलायी तो मोरचंग, मुरली, खड़ताल, तंदूरा, भपंग, ढोलक और ढोल ने दर्षकों को झूमने पर मजबूर कर दिया।
चैनई की प्रकृति फाउण्ड़ेषन और इन्टैक के बुलावे पर गये इन कलाकारों ने अपनी दूसरी पारी में लगभग डेढ़ घन्टे से अधिक प्रस्तूति में पारम्परिक लोक गीत सुनाये जिनमें ’’अम्बाबाड़ी, अन्तरियों, चै-चै करती चिड़कली, गोरबन्द, कोथलघुड़लो, रूमाल, घोड़लियो, जांगड़ा और केसरियो हजारी गुलरो फूल’’ खूब पसंद किये गये।षेखावाटी की भंवरी देवी ने भाव भरे स्वरों में जब भरतरी गाया तो कावेरी के तट पर ढाई सौ साल पुराने कल्याण महल की प्राचीरों से स्वर प्रस्फुटित हो उठे। भंवरी ने भजन सावरियों घट माईं रे….भी सुनाया। कमायचा के वरिष्ठ कलाकार हाकम, अनवर, लूणा, आमद और दर्रा खां मांगणियार की सामुहिक प्रस्तुति ने दर्षकों को बाड़मेर के धोरों का साक्षात करवाया। जलाल और बरकत खां ने तंदूरे पर सगुण परम्परा के दो भजन सुनाए। सरदार खां लंगा और साथियों ने पारम्परिक रचना ’’गोरबंद’’ सुनाकर लोक संस्कृति को साकार किया। कचरा खां और जमील खां ने सूफी गीत-रंग ही रंग बनारा सुनाकर माहौल को दार्षनिक बना दिया।
उल्लेखनीय है कि तत्कालीन मराठा राजा सरफौजी द्वितीय ने कावेरी के तट पर कल्याण महल बनवाया था जिसमे वर्तमान में एक बालिका छात्रावास चल रहा है। यह पहला अवसर है जब कि गत सौ सालों में इस प्रांगण में यह आयोजन हो रहा है। प्रकृति फाउण्ड़ेषन, चैनई द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ’’ फेस्टिवल ऑफ सेक्रेड़ म्यूजिक’’ में षनिवार को राजस्थान के लोक कलाकारों की प्रस्तुति को भरपूर सराहा गया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि थिरूवायरू में ही कर्नाटक संगीत के प्रवर्तक संगीतज्ञ संत त्यागराजन की समाधि है। इसमें ऐसे आयोजनों एवं उसमें भाग ले रहे कलाकारों की भागीदारी महत्वपूर्ण हो जाती है।
राजस्थान के लोक कलाकारों की इस प्रस्तुति की परिकल्पना जयपुर विरासत फाउण्ड़ेषन के विनोद जोषी ने की जिसे ईष्वर दत्त माथुर एवं हरि दत्त कल्ला ने मूर्त रूप दिया।
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