महाकवि केशव हमारी विरासत के सिरमोर

Photo0088टीकमगढ़। महाकवि केशव हमारी विरासत के सिरमोर है ओरछा स्टेट में उनकी कलम ने रामचन्द्रिका जैसी उत्कृष्ट कृति सहित विभिन्न 8 कृतियो की रचना कर रीतिकाल के आचार्य प्रवर्तक का प्रतिमान प्राप्त किया। वह संत तुलसीदास जी के समकालीन थे। उनकी कृतियां कालजयी है किन्तु ऐसे रीतिकाल के महाकवि केशव पर आयोजित सात दिवसीय केशव जयंती समारोह को शासन की संस्कृति विभाग की उदासीनता से विगत दो वर्ष से 37 वर्ष से क्रमशः आयोजित समारोह भूमिगत हो गया। नगर के प्रबंधजनो, साहित्यकारो, संगीताो ने इस व्यथा से क्षुब्ध होकर केशव जयंती समारोह परिपेक्ष्य में विरासत कला मंच टीकमगढ़ के वेनर तले विजय राघव प्रांगण में मनाया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. डी.पी. खरे, विशेष अतिथि, वरिष्ठ इतिहासवेत्त, कवि, वीरेन्द्र बहादुर खरे एवं अध्यक्षता कालीदास की कृति मेघदूत के अनुवादक पं. गुणसागर शर्मा ने की। कार्यक्रम का संचालन डॉ. जे.पी. रावत ने किया। महाकवि केशव के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन अतिथियो ने किया। इस अवसर पर युवा रचनाकार एवं विरासत कला मंच के संयुक्त सचिव दीपक अग्रवाल ने केशव जयंती पर केन्द्रित प्रतिवेदन के माध्यम से कहा कि महाकवि केशव का इतिहास उनके काल से उनकी कलम से उपजी कालजयी है वह तुलसी के समकाल के थे। उनकी स्मृति में आयोजित समारोह को संस्कृति विभाग भोपाल द्वारा बजट स्वीकृत न कराना, कार्यक्रम को रसातल में पहुंचाने का दुःसाहस दुखद है। विरासत कला मंच के जिला अध्यक्ष मुन्नालाल मिश्रा ने कहा के केशव की कविताये अदभुत थी। उनके कृतियो पर बहुत शोध हुआ है। किन्तु अभी भी बहुत शेष है। ओरछा में आयोजित जयंती ने राष्ट्रीय स्तर का स्वरूप् ले लिया था किन्तु सायं सीडी की तरह 99 से पूछ पर यह आयोज आना बेहद दुखद है। यदि सुनामी लहरे भी आ जाये तो भी केशव की जयंती की पूर्ति विरासत कला मंच पूर्ण करेगी। डॉ. डी.पी. खरे ने केशव के साहित्यिक योगदान को रेखांकित करते हुये उकी 9 कृतियो के संबंध में विस्तार से बताया। कविता लिखने का चक्र केशव का पाडित्य और रीति काल को उन्होने उद्घृत किया। वीरेन्द्र बहादुर खरे ने केशव का परिवेश केशव के साहित्य में संस्कृति, धर्म और जटिल छन्दो के संबंध में विस्तार से बताया। पं. गुणसागर सत्यार्थी ने कहा कि 36 वर्ष पहले हमारी पीढ़ी से सभी रचनाधर्मी दरी फर्स ले जाकर महाकवि की जयंती मनाते थे। उस शासन काल में केशव जयंती को गोद स्वरूप ले लिया गया। और लगभग 30 वर्ष श्री हरगोविन्द त्रिपाठी ‘पुष्प’ के संयोजन में महाकवि केशव जयंती (सात दिवसीय) अखिल भारतीय स्तर पर आ गया था। श्री पुष्प्प का आयोजन सराहनीय स्मरणीय रहेगा। भानसिंह श्रीवास्तव, सत्य नारायण तिवारी ने अपनी मधुर आवाज में गायन के माध्यम से केशव के श्रद्धांजलि दी। वही मनोहर लाल मिश्रा ने रीतिकालीन रचना धर्मता की झांकी अपनी स्वरचित छनद रचनाओ ने सभी का मन मोह लिया। वरिष्ठ कवि श्री हरेन्द्र पाल सिंह ने अपने शोध आलेख के माध्यम से केशव पर आधारित तथा कथित साहित्यकारो की उद्धार और टीप पर चुनौती पूर्ण तथ्यो को प्रस्तुत किया। पं. दुर्गेश दीक्षित ने महाकवि केशव को साहित्य के आसमान का ध्रुव बताया। उद्दीपमान शायर आखिर ने धर्म और मानवता को संदेश देती रचना प्रस्तुत की। वही उमाशंकर मिश्रा तन्हा ने महाकवि केशव को रीतिकाल का साहित्य रत्न से संबोधित कर अपनी रचना से श्रद्धांजलि दी।
मास्टर उम्मेद खां, वीरेन्द्र चंसौरिया, सीताराम सिरवैया, विद्यापति भट्ट, पुष्पेन्द्र सिंह बुंदेला, के.के. कोरी, आर.के. पुरोहित, वीरेन्द्र त्रिपाठी, दिलीप जैन, राजेन्द्र चतुर्वेदी, दीपक ताम्रकार एवं अन्य रचनाधार्मियो ने केशव को भावांजलि एवं श्रद्धांजलि के साथ अपनी बात कही। आभार मुन्ना लाल मिश्रा ने किया।
संतोष गेंगेले

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