प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी जन-धन योजना के 53% खातों में एक बार भी कोई लेन-देन नहीं हुआ है। इससे इन खातों के रखरखाव के लिए बैंकों पर सालाना करीब 2,135 करोड़ रुपए का बोझ पड़ने का अनुमान है। विशेषज्ञों के मुताबिक, एक खाते पर राेजाना करीब 250 रुपए का खर्च आता है।
प्रधानमंत्री ने देश के सभी लोगों को बैंक से जोड़ने के लिए यह योजना शुरू की थी। खाते खुल गए, गिनीज बुक में रिकॉर्ड भी दर्ज हो गया, लेकिन करीब 16 करोड़ खातों में से सिर्फ 47% में ही लेन-देन हो रहा है। इनमें करीब 16 हजार करोड़ रुपए जमा हुए हंै। बाकी 8,53,88,546 खातों में एक बार भी कोई लेन-देन नहीं हुआ। यह आंकड़े 3 जून 2015 तक के हैं। प्रधानमंत्री ने पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से यह योजना शुरू करने का एलान किया था। इसकी शुरुआत 28 अगस्त को की गई। बैंकिंग सेवा से वंचित साढ़े सात करोड़ परिवारों को इसके दायरे में लाने का लक्ष्य था।
बचत खाते की रकम पर बैंक 4% ब्याज देते हैं। जबकि कर्ज पर औसतन 10% ब्याज वसूलते हैं। इससे खातों के रखरखाव का खर्च निकल जाता है।
एकखाते के मेंटेनेंस पर रोजाना ~ 250 तक खर्च
बैंकिंगविशेषज्ञों के मुताबिक एक खाते के मेंटेनेंस पर रोजाना करीब 250 रुपए खर्च होते हंै। यानी जनधन योजना के 16 करोड़ खातों में से 53% के मेंटेनेंस के लिए बैंकों पर सालाना करीब 2,135 करोड़ का बोझ पड़ेगा। आम तौर पर बचत खाते की रकम पर बैंक 4% ब्याज देते है, जबकि कर्ज पर औसतन 10% ब्याज वसूलते हंै जिससे खातों के रखरखाव का खर्च निकल जाता है।
कुल लगभग 16 करोड़ खाते (03.06.2015 तक)
बैंक ग्रामीण शहरी खातों में रकम जीरो बैलेंस
सार्वजनिकक्षेत्र 6.80 5.68 13867.57 53%
निजी बैंक 0.39 0.28 1013.06 49.25%
क्षेत्रीय ग्रामीण 2.42 0.42 3114.82 53.52%
कुल 9.61 6.38 17995.45 52.94%
(सभी आंकड़े करोड़ में)
