नीमच 20 अगस्त। स्वतंत्रता का आत्मांद की अनुभूति भी है। परमात्मा का जीवन प्रेरणा की डायरी है। प्रभु ने गाली देने वाले को भी गले लगाया है। मानव के कदम अपने हैं लेकि राहें पराई है। मानव की जिंदगी गुलामी की है। चिंतन का विषय है। उक्त विचार साध्वी गुणरंजना श्रीजी म.सा. ने कहे। वे स्टेषन रोड दादावाडी आराधना भवन में 20 अगस्त गुरूवार को बोल रहे थे। साध्वी श्रीजी ने कहा कि मानव जीवन फुटबाल की तरह है। हम जीवन के मैदान में कभी इस पाले में तो कभी उस पाले में, यह तो उधार की जिंदगी है और मानव और मैं अपनी जानकर राजी होती है। मानव की यह मुस्कान उधार की है। यह गिरवी का दिमाग है। मानव अपना सोचकर प्रसन्न बनता है। यहां तो संचालक कोई और है। मानव तो कठपुतली की तरह नाचता है। कोई रूलाता है तो रोता है। कोई हंसाता है तो हंसता है। कोई नचाता है तो नाचता है यह गुलामी की जिंदगी है। सोच भी पराई है। मेरा अपना क्या है। यह मेरा रास्ता अपना कहां है। साध्वी श्रीजी ने कहा कि जिन आगमवाणी का रस मानव के मन मंदिर में जाएगा जब राग द्वेष विष दूर होता है। मानव ने कर्म के मर्म को समझ लिया तो जिंदगी में भ्रमित नहीं होंगे। सद्बुद्धि देने वाले दो चार मिलते हैं। बर्बाद करने वाले हजार मिलते हैं। नवकार का जो चिंतन करता है उसका भव से बेडा पार होता है। नवकार सदगति का संवाहक है। प्रभु ने दर्द देने वाले को भी खुषी के फूल दिये हैं। उन्होंने विष बरसाने वालों पर भी अमृत वर्षा की है। यही अध्यात्म को जाने वाली राह जीवन की प्रथम पीढी है। यही मोक्ष की ओर बढने का पहला कदम है। यही षांति और स्नेह से जीने का तरीका है। हजारों दीये एक साथ जल उठेंगे तो हजारों फूल एकसाथ खिल उठेंगे और जीवन स्वर्ग बन जायेगा और जीवन में मधुर बांसुरी बज उठेगी। यही अपने कदम पराई राहे हैं।
