नई दिल्ली. टीचर्स डे (5 सितंबर) से एक दिन पहले शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर के स्टूडेंट्स से बात की। दिल्ली के मानेकशॉ ऑडिटोरियम में 9 जगहों से आए करीब 800 स्टूडेंट्स को संबोधित किया। उनकी स्पीच का देश भर के स्कूलों में वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के जरिए टेलिकास्ट किया गया। कुछ बच्चों ने पीएम से सवाल भी पूछे। एक बच्ची ने जब उनसे उनके प्रिय खेल के बारे में पूछा तो मोदी ने कहा-राजनीति वाले क्या खेलते हैं, यह सबको मालूम है।
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11.47 AM:जेएनवी मुंगेशपुर (दिल्ली) के देव्यांश सिंह ने पूछा- आपकी ड्रेसिंग सेंस को सब लाइक करते हैं। आप ब्रांड अंबेसडर हैं। मोदी कुर्ता पापुलर हो गया है। इस ड्रेसिंग सेंस का आइडिया आपके मन में कैसे आया?
मोदी- बाजार में बड़े भ्रम है, मोदी का कोई फैशन डिजाइन नहीं है। कुछ फैशन डिजाइनर क्लेम करते हैं। मैं सवालों का जवाब नहीं देता। न किसी से मिला। छोटी उम्र में घर छोड़ दिया था। 30-40 साल तक घूमा। एक छोटा सा बैग लेकर घूमता था। गुजरात में सर्दी नहीं होती है। मैं कुर्ता पैजामा पहनता था। खुद कपड़े धोता था। मेरे मन में दो विचार थे। खुद कुर्ता काट कर छोटा कर दिया। अब कोई फैशन डिजाइनर अपने से जोड़ ले तो क्या करें। ढंग से रहने का स्वभाव था। प्रेस कराने के लिए पैसे नहीं रहते। लोटा में कोयला रख देता था और उसी से प्रेस कर देता था। एक रिश्तेदार ने जूते गिफ्ट किए थे कैनवास के। मैं क्लास में रुक जाता था। टीचर जो चॉक के टुकड़े फेंक देते थे। उसी को घर लाकर जूते को वाइट कर देता था। फैशन डिजाइनर वैगरह कुछ नहीं है। ओकेजन के अनुसार रहना चाहिए। इसकी अपनी अहमियत होती है।
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11.45 AM:जवाहर नवोदय विद्यालय की स्टूडेंट पूजा शर्मा ने पूछा- आपके मन में विश्व योग दिवस का विचार कैसे आया?
मोदी- जब मैं सीएम या पीएम नहीं था तो ऑस्ट्रेलिया गया था। जो ये जानते थे कि मैं इंडिया से हूं तो वे योगा के लिए पूछते थे। दस में 6 पूछते थे। मुझे लगा कि ऐसी ताकत है जिसे पहचानना चाहिए। मुझे अवसर मिला तो मैंने इसे यूएन में रखा। 177 देश को स्पांसर बने। हमें पता नहीं था कि योग का कितना महत्व है। मीडिया में कथा आती थी कि 21 जून क्यों रखा? आज बताता हूं। ऊर्जा का स्त्रोत है तो वह सूर्य है, हमारे भूभाग सबसे लंबे समय तक होता है। उस दिन सबसे ज्यादा ऊर्जा, इसलिए सजेशन दिया था और दुनिया ने उसे माना। योग को प्रोफेशन बनाएं तो अच्छे टीचर की जरूरत है। सतरंज में धैर्य ताकत होती है। योग भी धैर्य और भीतर की शक्तियों को ताकतवर बनाता है। हमारी जिम्मेदारी है कि इसे डायलूट न होने दें।
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11.44 AM:केंद्रीय विद्लाय जनकपुरी (दिल्ली) 12 की स्टूडेंट्स अनामिका दुबे ने पूछा- आजकल स्टूडेंट्स पर प्रेशर रहता है। हम अपने अभिभावकों को कैसे समझाएं कि अगर आप पर भी दबाव पड़ा होता तो आज हमें ऐसा पीएम नहीं मिलता।
मोदी- आप पत्रकार बनना चाहती हैं क्या? घूमा-घूमा कर पूछ रही है। (सब हंसने लगते हैं) मेरे सपने देखने की क्षमता या अवस्था नहीं थी। मैं इस बात पर सहमत हूं कि बच्चों पर अपने सपने नहीं थोपे। इसका मतलब कि आप उसकी क्षमता नहीं जानते। पिता तो इतने व्यस्त हैं कि फुर्सत ही नहीं। सातवीं, पांचवी कितने क्लास में है बच्चा नहीं पता होता। मां-बाप को बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए। जो अच्छा लगता है उसमें उन्हें मदद करना चाहिए। मैं तुम्हारे अभिभावक को कहूंगा कि अगर तुम्हें जर्नलिस्ट बनना है तो जरूर मदद करें।
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11.42 AM:केंद्रीय विद्यालय पुष्पविहार (दिल्ली) की श्रेया सिंह ने पूछा- आप कभी रिटेन स्पीच नहीं देते। oratory speech (बोलने की कला) कैसे डेवलप किया?
मोदी- बोलने से पहले आपको अच्छा श्रोता बनना होगा। अच्छे ढंग से सुने इसमें आंख, कान विचार सबकुछ शामिल होना चाहिए। ये चिंता मत कीजिए कि और लोग क्या कहेंगे। ज्यादातर लोग कहते हैं कि इस बात से डरते हैं कि माइक नहीं चलेगा, पैर फिसल जाएगा। इसे भूल जाएं। नोट बनाने की आदत होनी चाहिए। जब जरूरत पड़े उसे देखें। जो बताना है उसे बताने में देर हो जाती है। आपको जो कहना है उसमें शार्पनेस ले आएं। हालांकि, मैंने कभी यह नहीं किया कभी। आपलोग तो गूगल गुरु के स्टूडेट्स हैं। इंटरनेट पर पब्लिक स्पीकिंग के कोर्सेज चलते हैं। यूट्यूब पर स्पीच को देखें। आपको भी बोलना आ सकता। मैं कागज इसलिए नहीं रखता कि अगर इसे रखता हूं तो गड़बड़ हो जाती है।
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11.40 AM: केंद्रीय विद्लाय गोलमार्के (दिल्ली) की रिनीकी बदलोई ने पूछा- आप ने कविता भी लिखी है। आप साहित्य को बढ़ाने के लिए क्या कहना चाहेंगे?
मोदी- हर एक के भीतर कविता का वास होता है। हर इंसान में। किसी में कलम से टपकती है, किसी की आंसू से और किसी की अंदर-अंदर ही संभालती है। मैं जो लिखा हूं वह अभी कविता कहने की तैयारी नहीं है। पर कविता ही है। प्रकृति के साथ जुड़ा था। गुजराती में कविता थी वो छप गई। चलते-चलते दुनिया को देखता था वही अभिव्यक्त किया हूं। कई भाषा में ट्रांसलेशन है। ऑनलाइन आप देख सकते हैं।
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11.38 AM: श्रीनगर के कुलगाम में आठवीं की स्टूडेंट राबिया नजीर (वह एस्टोरॉमर बनना चाहती है) ने पूछा- जब आप स्टूडेंट थे तो क्लास के भीतर और बाहर क्या एक्टिवीट थी?
मोदी- मैं पढ़ने में बहुत….(बच्चे हंसने लगते हैं) इसलिए ज्यादा इधर-उधर रहता था। लेकिन ऑब्जर्वेशन का बड़ा स्वभाव था। वो क्लासरूम में ही नहीं, क्लासरूम के बाहर भी। 1965 के वार में मैं फौजियों से मिलने गए। मन में लगा कि जहां बैठे हैं उसके बाहर बहुत बड़ी दुनिया है। उन्हीं चीजों से सीखने का प्रयास करने लगे।
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11.35 AM: बोकारो में केंद्रीय विद्लायल की स्टूडेंट कुमारी अंशिका मिंज ने पूछा- आपको क्या लगता है कि सफलता की क्या रिसेपी हो सकती है?
मोदी- सफलता की कोई रेसपी नहीं होती। ठान लेना चाहिए विफल होना नहीं है। कभी न कभी सफलता चरण चूमने लग जाती है। एक विफलता सपनों का कब्रिस्तान बन जाती है। ऐसा नहीं बनना चाहिए। हमें सपने पूरे करने के लिए सफलता से सीख लेने का आधार बनाना चाहिए। जो विफलता से सीखता है वह सफल होता है। हर चीज को पॉजिटिव को देखना। पालीना की किताब पढ़ें। मन की रचना होनी चाहिए कि मुझे विफल नहीं होना चाहिए। खुद को झोंक दीजिए, सफलता के कोई पैरामीटर तय नहीं कीजिए।
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11.32 AM: बेंगलुरु के लिटिल फ्लावर पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले आत्मिक अजॉय ने पूछा- युवा आखिर क्यों टीचिंग नहीं करना चाहते जबकि हमें टीचर की जरूरत है।
मोदी- तुम क्या बनोगे? (आत्मिक ने कहा-कंप्यूटर साइंस फील्ड में जाऊंगा) यही रियल प्रॉब्लम है। ऐसा नहीं है कि देश में अच्छे टीचर नहीं है। ये वे बालक है जिनके अंदर कोई स्पार्क था, जिसे टीचरों ने पहचाना। इन बच्चों से मैं उन टीचर को देख रहा हूं। देश में सफल व्यक्ति सप्ताह में एक घंटा किसी स्कूल में पढ़ाने जाएं। देश में टैलेंट की कमी नहीं है।
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11.30 AM: क्लाउड कंप्यूटिंग में महारत हासिल करने वाली तिरुनेलवेली की विशालनी ने पूछा- देश के लिए काम करना चाहती हूं। मैं क्या कर सकती हूं?
मोदी- जो तुम कर रही हो तो वह भी सेवा है। फौज में जाने, चुनाव लड़ने से ही देश की सेवा नहीं होती। अगर कोई बालक 100 रुपए का बिल 90 रुपए कम कर देता है वह भी सेवा है। हम खाना खाते हैं, कभी कभी खाना छोड़ कर वेस्ट कर देते हैं। जितना चाहिए उतना ही लीजिए वह भी देश की सेवा है। गाड़ी चालू छोड़कर मत जाएं। कई चीजों को सहज रूप से करके भी देश की सेवा कर सकते हैं। घर में काम करने वालों को पढ़ना सिखाइए। करोड़ों लोगों के द्वारा छोटे-छोटे काम से बड़ी कोई देश की सेवा नहीं हो सकती।
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11.20 AM: पटना डीपीएस में पढ़ने वाले 12 के छात्र अनमोल काबरा ने पूछा- आजकल प्रतियोगी परीक्षाएं ही मकसद बन गई हैं? क्या संदेश देना चाहेंगे?
मोदी- तुम भी तो इंजीनियर बनना चाहते हो। (अनमोल- इंजीनियरिंग ऐम है, मिशन कुछ और है।) ये सही है कि हमारे यहां माता-पिता का स्वभाव होता है कि जो काम वह अपने नहीं कर पाए तो वह बच्चों से करवाना चाहते हैं। सबसे बड़ी कठिनाई यही है। एक बदलाव लाने का प्रयास कर रहा हूं। आने वाले दिनों में होगा। आजकल कैरेक्टर सर्टिफिकेट मिलता है। जो जेल में हैं उनके पास भी होता है। जो फांसी पर लटक गया उसके पास भी घर में होगा। यह एक कागज बन गया बस। हमें एटीट्यूड सर्टिफिकेट देना चाहिए। हर तीन महीने में दोस्तों से सॉफ्टवेयर के जरिए फिलअप कराना चाहिए। तब पता चलेगा कि उसमें क्या विशेष है? फिर वह अपने जीवन की दिशा तय कर पाएगा। डिपार्टमेंट इस पर काम कर रहा है।
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11.10 AM: मोबाइल ऐप बनाकर टेक चैलेंज 2015 जीतने वाली बेंगलुरु की न्यू होराइजन पब्लिक स्कूल की नौवीं क्लास की स्टूडेंट्स अनुपमा ने पूछा- स्वच्छ भारत अभियान समस्या में क्या दिक्कत आई?
मोदी- अब चैलेंज नहीं लग रहा। अगर आठवीं-नौवीं की स्टूडेंट्स वेस्ट मैनेजमेंट पर ऐप बनाती है तो देश स्वच्छ होकर रहेगा। यह अभियान हमारे स्वभाव से जुड़ा हुआ है। कई लोग कहते हैं कि मेरा पोता अब कूड़ा कचरा कहीं फेंकने देता। मोदी,मोदी करता है। इस अभियान को मीडिया के लोगों ने कितना आगे बढ़ाया। कमाई छोड़ कर कैमरे लेकर प्रोग्राम बनाए। हम वेस्ट मैनेजमेंट के बिना अल्टीमेंट सॉल्यूशन नहीं ला सकते। केचुंए लाकर अगर कचरे में डाल देते हैं तो खाद बना सकते हैं। वेस्ट को वेल्थ में क्रिएट कर सकते हैं। वेस्ट बहुत बड़ा बिजनेस है। हम फंड देकर इस काम को आगे बढ़ाएंगे।
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11.00 AM: स्पेशल गेम्स में मेडल जीतने वाली गोवा से सोनिया यल्पा पाटिल ने पूछा- आपको कौन सा गेम पसंद है?
मोदी- तुम अमेरिका से क्या ले कर आई? (सोनिया- सिल्वर मेडल ले आई)। तुम्हें ये खेलने के लिए किसने हिम्मत दी? खेल में जब लड़कियां आगे जाती हैं तो उसमें उनकी मां का बहुत बड़ा रोल होता है। मां चाहती है कि बच्ची बड़ी हो रही है तो किचन में मदद करे लेकिन खेलने भेजती है तो यह बहुत बड़ा त्याग होता है। शारीरिक क्षमता में कमी के बावजूद बच्ची ने कमाल किया है। उनके टीचर को बहुत धन्यवाद देता हूं। राजनीति वाले क्या खेलते हैं, यह सबको मालूम है। मैं छोटे से गांव से था। कई खेल के नाम भी नहीं जानता था। कपड़े धोने के कारण तालाब जाता था तो तैरना सीख गया। फिर योग सीख लिया। बड़ोदा के पीटी टीचर थे, उनसे वहां मलखंभ सीखने की कोशिश की। क्रिकेट खेलता नहीं था पर बाउंड्री के बाहर से बॉल देने का काम करता था।
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10.54 AM: सैनिक स्कूल देहरादून में पढ़ने वाले और देश के पहले जूनियर मास्टरशेफ खिताब जीतने वाले सार्थक भारद्वाज ने पीएम से पूछा- देश के कई हिस्सों में बिजली नहीं है। ऐसे में डिजिटल इंडिया कैंपेन कैसे पूरा होगा?
पीएम ने कहा- देश में अठारह हजार गांवों में बिजली नहीं है। अगले एक हजार दिनों में बिजली पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। बिजली नहीं है तो डिजिटल एक्टिविटी रुकती नहीं है। हम सब इससे अछूते नहीं रह सकते। अगर हमें सामान्य लोगों को उसका हक पहुंचाना है तो डिजिटल इंडिया की जरूरत होगी। यह सामान्य लोगों को एम्पावर करने का मिशन है। 2022 तक घरों में 24 घंटे बिजली होनी चाहिए। पीएम ने इस सवाल का जवाब देने से पहले सार्थक से पूछा कि तुम्हारी फेवरिट डिश कौन सी है? यह भी पूछा कि उन्हें खाने में क्या-क्या बनाना पसंद है? साथी पूछते होंगे कि हमें भी कुछ खाना पकाना सिखा दो?
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10.52 AM: इंग्लिश ओलंपियाड में टॉप करने वाली एनआईसी इंफाल से जवाहर नवोदय विद्यालय की शैली किपजेन ने पूछा- सफल राजनेता बनने के लिए क्या करना चाहिए?
मोदी का जवाबः राजनीतिक जीवन की बदहाली हो चुकी है। इसलिए लोग सोचते हैं, नहीं जाना चाहिए। बहुत आवश्यक है कि राजनीति में अच्छे, विद्वान, जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्र के लोग आएं। गांधी जी जब आंदोलन चलाते थे तो सब क्षेत्र के लोग उससे जुड़े थे। आंदोलन की ताकत बहुत बढ़ी। आप अगर राजनीति में आती हो तो आपको लीडरशिप रोल करना होगा। गांव, स्कूल में घटना घटती है तो सबसे पहले पहुंचे। लोग भी जाएंगे। लीडर क्यों बनना है यह क्लिर होना चाहिए। चुनाव लड़ने के लिए, खुशी पाने के लिए, जहां रहती हैं उनकी समस्याओं को समाधान करने के लिए। इसके लिए उनके प्रति लगाव होना चाहिए। उनका दुख सोने न दे और सुख हमें खुशी दे। अगर आप ऐसा कर पाती हैं तो देश तुम्हें अपने आप लीडर बना देगा।
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10.49 AM: मालापूर्णा नाम की स्टूडेंट ने पूछा- आपको किसने सबसे ज्यादा प्रभावित किया?
मोदी का जवाबः- जीवन एक व्यक्ति के कारण नहीं बनता। रिसेप्टिव माइंड के हैं तो एक निरंतर प्रभाव चलता है। रेल के डिब्बे में भी कुछ सीखने को मिल जाता है। मेरा स्वभाव छोटी उम्र से जिज्ञासु रहा। मुझे टीचरों से लगाव था। मेरे परिवार में माता का भी देखभाल रहता था। मेरी गांव में लाइब्रेरी थी। मैं वहां स्वामी विवेकानंद को बढ़ता था। उन्हीं किताबों ने मेरे जीवन पर प्रभाव डाला।
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10.47 AM: पीएम की स्पीच खत्म। अब बच्चों के सवालों का जवाब देंगे।
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10.45 AM: हमें रोबोट बनने से बचना है। हमारे भीतर संवेदनाएं हों। यह कला साधना से आती है। कला के साथ सहजता से आती है। बिना कला के जीवन एक प्रकार से रोबोट सा बन जाता है।
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10.43 AM: कला उत्सव के माध्यम से स्कूल के बच्चों की प्रतिभा को निखारने का अवसर मिलना चाहिए। यह केवल नाट्य उत्सव नहीं है। यह थीम बेस्ड होना चाहिए। कला उत्सव से पूरे देश में सामाजिक माहौल बनेगा।
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10.41 AM: हमारा काम है कि पीढियों को बनाना और हम यह सब मिलकर करें।
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10.39 AM: टीचर्स डे पहले भी मनाया जाता था। पर क्या होता था। एक-दो टीचर राधाकृष्णन के बारे में बता देता था। क्लासरूम में खुशी मनाने से आगे कुछ नहीं होता था। हम इस प्रेरक पर्व को व्यवस्था में लाना चाहते हैं। इसका महत्व कैसे बढ़ाया जाए इसकी कोशिश कर रहे हैं। बालक का जो ऑब्जर्वेशन होता है वह सही होता है।
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10.35 AM: यह अन्य व्यवसाय जैसा नहीं है। एक डॉक्टर कोई बड़ा ऑपरेशन करता है तो उसकी अखबारों में स्टोरी छपती है। लेकिन एक टीचर 100 डॉक्टर्स बना देता है पर उसकी स्टोरी नहीं छपती। हमें सोचना होगा।
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10.33 AM: मुझे किसी ने बताया था किएक आंगनबाड़ी की वर्कर का बच्चों के प्रति लगाव था। वह गरीब परिवार की थी। उसने अपनी पुरानी साड़ी के टुकड़े किए और रूमाल बनाया। बच्चों को वह देती थी और उसका यूज सिखाती थी। यह संस्कार देने की कला है।
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10.29 AM: दुनिया के कई देशों में टीचर्स डे मनाया जाता है। स्टूडेंट्स और टीचर के बीच रिश्ता होता है और दोनों एक दूसरे का सम्मान करते हैं।
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10.25 AM: एपीजे अब्दुल कलाम को हमने निकट से देखा है। उन्होंने कभी कहा था कि वह टीचर के रूप में याद रखा जाए। राष्ट्रपति का पद छोड़ने के बाद वह अगले दिन चेन्नई चले गए। स्टूडेंट्स को संबोधित करते-करते ही उन्होंने अपना देह त्याग दिया। टीचर कभी रिटायर नहीं होता।
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10.23 AM: कल कृष्ण और राधाकृष्ण का जन्मदिन एक साथ आ गया। इसके कारण स्टूडेंट्स से आज मिल रहा हूं। शिक्षिक की पहचान होता है स्टूडेंट्स। ऐसा कोई इंसान नहीं जो अपनी जीवन में मां और टीचर का योगदान नहीं मानता