आवश्यकता हो तब बोले और मन में कोई गठान नहीं होना चाहिए
बचपन नटखट, जवानी मर्यादित और बुढ़ापे में वैराग्य हो
धर्मसभा: षिर्डी जैन स्थानक में सलाहकार दिनेष मुनि ने दिए प्रवचन।
षिर्डी। कोई जन्म से महान नहीं बनता, महान बनने के लिए महत्वपूर्ण शर्त है कि कि जीवन कैसे जिया। कृष्ण ने जो गीता में उपदेश दिया है, उसे आत्मसात करो। राम ने उपदेश नहीं दिया, उनका तो जीवन ही उपदेश है। वे धरती पर ऐसे महापुरुष हुए जिन्होंने अपने जीवन में न कभी जप किया, न तप किया, न जंगलों में जाकर साधना की लेकिन फिर भी वे धरती के भगवान् स्वीकार किए गए। जन्म से लेकर निर्वाण तक एक भी माला नहीं जपी ओर न ही किसी तरह की साधना की। प्रेम ही उनकी साधना थी और आत्मविष्वास ही उनकी आराधना थी। व्यक्ति का बचपन कन्हैया जैसा नटखट हो। जो बच्चा बचपन में अधिक शैतानी करता है, वह बड़ा होकर तेज बुद्धि का होता है। व्यक्ति की जवानी श्रीराम की तरह मर्यादित होनी चाहिए और बुढ़ापा हो महावीर जैसा तपस्वी। जैसे ही 50 वर्ष के पार हो, अपने जीवन को वैराग्य की ओर मोड़ लेना चाहिए। यह विचार श्रमण संघीय सलाहकार दिनेष मुनि ने 5 सितम्बर ‘श्रीकृष्ण जन्माष्ठमी’ पर धर्मसभा में व्यक्त किए।
बांसुरी की तरह मीठा बोलो, मन में गठान मत रखो
सलाहकार दिनेष मुनि ने कहा कि मनुष्य का जीवन बांसुरी की तरह होना चाहिए। रुक्मिणी के पूछने पर श्रीकृष्ण ने कहा कि उनकी बांसुरी की पहली विशेषता है कि यह जब भी बोलेगी, मीठी ही बोलेगी। दूसरी विशेषता यह है कि जब बुलवाओ, तब ही बोलेगी और तीसरी विशेषता है कि इसके तन पर कोई गठान नहीं होती। ऐसे ही व्यक्ति का जीवन हो। जब भी बोले मीठा ही बोले, आवश्यकता हो तब बोले और मन में कोई गठान नहीं होना चाहिए।
खुद को आलोकित कर ज्ञान का दीपक जलाएं शिक्षक
शिक्षक दिवस के मौके पर भी सलाहकार दिनेष मुनि ने कहा कि भारत के भावी नागरिक तैयार करने में शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है। माता-पिता के बाद शिक्षक का प्रभाव विद्यार्थियों पर सबसे श्यादा पड़ता है। शिक्षकों को चाहिए कि वे खुद को आलोकित कर विद्यार्थियों में ज्ञान का दीपक जलाएं। शिक्षकों का सम्मान उनके व्यक्तित्व, कृतित्व एवं आचरण पर निर्भर करता है।
डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि ने श्रीकृष्ण को मैनेजमेंट गुरु बताते हुए कहा कि भक्तों की पुकार सुन दौडे चले आते थे। ये उनकी भक्तवत्सलता थी कि उन्होंने दुर्योधन के छप्पन भोगों को ठुकराकर विदुर द्वारा खिलाई गए केले के छिलकों को भी बडे प्रेम से खा लिया।
डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि ने कहा कि श्रीकृष्ण जब जन्में थे तब थाली बजाने वाला कोई नहीं था और धरती से गए तो आंसू ढुलकाने वाला भी कोई नहीं था फिर भी वे जिंदगी भर आनंद से जिए और आंनद से भरा प्रेम धर्म देकर चले गए।
षिक्षक दिवस पर हुआ षिक्षिकाओं का सम्मान
षिर्डी शहर में विगत् चार वर्षों से बालक – बालिकाओं में धर्म संस्कारों का बीजारोपण करने वाली षिक्षिकाओं का आज सम्मान किया गया। लुक एण्ड र्लन पाठषाला में प्रत्येक रविवार को 70 विधार्थियों को धार्मिक षिक्षा अध्यनन करवाने वाले षिक्षिकाआंे में श्रीमती सपना पारख, रानी लोढा, कविता लोढा, डॉ. प्रेरणा कोठारी, पूजा अेास्तवाल, राखी समदडिया, प्रिया पारख का हार व पुस्तक व कलम देकर स्वागत अभिनंदन किया गया।
