पर्युंषण समस्त आडम्बर से मुक्त शुद्ध आत्म साधना का पर्व

पर्युषण पर्व को अन्तराष्ट्रीय महत्व मिलना चाहिये
धर्मसभा को संबोधित करते हुए सलाहकार दिनेष मुनि ने कहा –

DInesh muni LOch (1)षिर्डी – 11 सितम्बर 2015। श्रमण संघीय सलाहकार दिनेष मुनि ने कहा कि जैन धर्म शासन में पर्वाधिराज पर्युंषण समस्त आडम्बर से मुक्त शुद्ध आत्म साधना का पर्व है। इस पर्व की आराधना त्याग तप दान सेवा साधना से ही की जाती है। आत्म शुद्धि ही इसका मूल ध्येय है। विश्व मैत्री इसका मौलिक उद्घोष है।
वे आज षिर्डी जैन स्थानक में आयोजित पर्युषण महापर्व के प्रथम दिवस 11 सितम्बर 2015 धर्म सभा को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यूं तो भारत वर्ष पर्वो का ही देश है। यहां पर हर दिन किसी न किसी पर्व से जुड़ा रहता है उतम खान-पान आमोद प्रमोद और नवीन वस्त्र धारणकर नृत्य गान करने वाले पर्व भारत में आये दिन मनाये जाते है किन्तु पर्व राज पर्युषण इन सभी बातों से अलग है। इस धार्मिक पर्व में ये सभी भौतिक साधन छोड़ दिये जाते है। साधना ही इस पर्व का मूल ध्येय रहता है। उन्होंने कहा कि आत्मा शुद्धि का ऐसा पर्व सम्पूर्ण मानवता के लिये वरदान है। पर्युषण का विश्व मैत्री का संदेश सम्पूर्ण विश्व के लिये उपयोगी है। अंहिसा और सत्य के आदर्श आत्म शान्ति और भय मुक्ति के लिये बहुत जरूरी हो गये है। सम्पूर्ण विश्व में पर्युषण का संदेश पंहुचना चाहिये। उन्होंने बताया कि सादगी धर्म की पहली शर्त है इसे खोकर किसी धर्म की आराधना कैसे होंगी। साधनो की कमी को देखते हुए वैसे भी सारे देश को सादगी के साथ ही जीना चाहिये। पर्युषण पर्व सादगी और साधना का पर्व है। इसे अन्तराष्ट्रीय महत्व मिलना चाहिये।
डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि ने अन्तकृत दशांग सूत्र का वाचन प्रारम्भ किया और कहा कि धार्मिक एवं स्वास्थ्य जागरूकता की दृष्टि से खाद्य संयम आवश्यक है। उन्होंने कहा कि पयुर्षण का अर्थ चारों और बिखरी अपनी शक्तियों को एक जगह समेटकर स्वयं को जाग्रत करना है।
डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि ने कहा कि स्वस्थ, प्रसन्न और मधुर जीवन जीने का एक मात्र राज सकारात्मक सोच है। दुनिया में सारे मंत्र निष्फल हो सकते हैं, पर सकारात्मक सोच का मंत्र आज तक कभी निष्फल नहीं हुआ। नकारात्मक सोचने वाला कभी स्वर्ग में नहीं जाता और सकारात्मक सोचने वाले को यहीं स्वर्ग मिल जाता है।
मुनि का हुआ केषलोच
केशलोच क्रिया से संत आत्मा और देह के बीच प्रयोगात्मक परीक्षा देता है। केशलोच क्रिया भेदविज्ञान की परीक्षा है। इस परीक्षा से मैं महसूस करता हूं कि मेरे संन्यासकाल में देह से आसक्ति बढ़ी है या घटी है। यह विचार श्रमण संघीय सलाहकार दिनेष मुिन ने केशलोच क्रिया के बाद व्यक्त किए।
भिक्षु दया का आयोजन रविवार को
षिर्डी जैन समाज के इतिहास में प्रथम बार श्रद्धालुजन भिक्षुदया व्रत करेंगे। जिसमें श्रद्धालुजन पांच सामायिक के पश्चात् सफेद चदद्र, मुंहपति, चोलपट्टा व पूंजनी पूर्णतया सामायिक गणवेष को धारण करने के पश्चात गोचरी के लिए दल बनाकर अलग अलग घरों में जाएगें। तत्पष्चात सामूहिक रुप से दयाव्रत का आयोजन करेगें।

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