इच्छाओं पर अंकुश लगाना सबसे बड़ा तप

कीचड़ में कमल की तरह जीवन जियो
मन कभी इच्छाओं से भरता नहीं है।

पर्युषण पर्व के द्वितीय दिवस जैन स्थानक ‘षिर्डी’ में सलाहकार दिनेष मुनि ने कहा-
shirdi photo (3)shirdi photo (1)shirdi photo (2)षिर्डी 12 सितम्बर 2015। जो तपता नहीं, वह पकता नहीं। सोना भी तपने के बाद ही निखरता है। रोटी पकने के बाद ही स्वादिष्ट बनती है। ऐसे ही आत्मा भी जब तक तपेगी नहीं तब तक वह परमात्मा नहीं बन सकती। संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उनका जीवन देखो, उन्होंने कितनी तपस्या की है। जैन धर्म के दर्शन के अनुसार आत्मा को शुद्धात्मा बनाने के लिए स्वयं को तपस्या की भट्टी में झोंकना पड़ता है। भगवान महावीर कहते हैं कि मात्र भोजन छोड़ना ही तपस्या नहीं है। मन का संयम रखकर आत्मसाधना करना तप होता है। पर्वत की चोटी पर बैठकर शरीर को सुखाने से कुछ नहीं होगा, अपने कर्मों को सुखाने का प्रयास करोे। इस संसार में रहकर कीचड़ में कमल की तरह जीवन जियो। उपरोक्त विचार श्रमण संघीय सलाहकार दिनेष मुनि ने शनिवार को जैन स्थानक षिर्डी में पर्युषण पर्व के द्वितीय दिवस 12 सितम्बर 2015 को प्रवचन के दौरान कहे।
सलाहकार दिनेष मुनि ने कहा किसी ने पूछा कि जब आत्मा और शरीर अलग-अलग हैं तो फिर आत्मा को तपाने के लिए शरीर को कष्ट क्यों देते हो। मैंने कहा कि जब तुम दूध गर्म करते हो तो उसे भगोने में डालकर आग पर रखते हो। बताओं पहले दूध गर्म होता है या भगोना? जैसे बिना भगोने के गर्म हुए दूध गर्म नहीं हो सकता है, वैसे ही शरीर को तपाये बिना आत्मा को नहीं तपाया जा सकता है। आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए उसे मथना पड़ता है, ठीक वैसे ही जैसे दूध में से घी निकालने के लिए उसे पहले जमाकर दही बनाना पड़ता है और फिर मथना पड़ता है। जब आत्मा एक बार परमात्मा का स्वरूप पा लेती है तो फिर जन्म-मरण के फेर से मुक्त हो जाती है।
इच्छाओं पर अंकुश जरूरी
सलाहकार दिनेष मुनि ने कहा- इच्छाओं पर अंकुश लगाना सबसे बड़ा तप होता है। लोग कहते हैं कि अत्यधिक भोग से व्यक्ति भोगों से तृप्त हो जाता है। लेकिन मैं इसे नहीं मानता, क्योंकि इच्छाएं मनुष्य का कभी पीछा नहीं छोड़ती हैं। एक इच्छा पूरी हुई तो दूसरी तैयार खड़ी होती है। मन कभी इच्छाओं से भरता नहीं है। सदैव खाली बना रहता है। ऐसे में कब तक भागोगे इच्छाओं के पीछे, सारा जीवन निकल जाएगा। ऐसे में हमारे सामने दो ही रास्ते हैं। एक- इच्छाओं की पूर्ति और दूसरा-इच्छाओं का निरोध। छोड़ो इन भोगों को अपना जीवन भोग में नहीं, तप में लगाओ।
डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि ने अन्तकृत दशांग सूत्र का वाचन करते हुए कहा कि इंसान को चादर देखकर ही पैर पसारने चाहिए। ऐसा हो कि बाद में उसे पछताना पड़े। उन्होंने कहा की इंसान को जीवन में अपनी आमदन देखकर ही खर्च करना चाहिए। अगर आप अपनी आमदन से ज्यादा खर्च करोगे तो एक एक दिन बड़े खर्चे को पूरा करने के लिए कहीं कहीं से कर्ज जरूर लेना पडेगा, ये कर्ज पीढी दर कोई न कोई चुका देगा पर कर्म का कर्ज कौन चुकाएगा।
डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि ने मन को आनंदित रखने के 3 सूत्र बताए। पहला भूल जाना सीखो क्योंकि जीवन परिवर्तनशील है। दूसरा सबको साथ में रखना सीखो क्योंकि स्वजन बिखेरेंगे नहीं। तीसरा परमात्मा से मिल जाना सीखो जैसे दूध में शकर घुल जाती है।

धर्मचक्र की आराधना आज संपन्न हुई
पर्युषण पर्व के प्रथम व द्वितीय दिवस 42 साधक – साधिकाओं द्वारा धर्मचक्र की साधना – आराधना की जा रही है। जिसमें श्रद्धालुजनों ने 42 बेलातप व एक तेला तप किया है।

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