भारतीय साहित्य में “सिविल-नागरिक संबंध” अंतर राष्ट्रीय संगोष्टी

2015 sept lerala  (4)2015-sept keralaएम्.इ.एस अस्माबी कोलेज के हिंदी विभाग यु.जी.सी ,युगमानस और रीडर्स फॉर्म के संयुक्त त्वावधान में दो दिवसीय अंतर राष्ट्रीय संगोष्टी का आयोजन २०१५,सितम्बर १८ और १९ को कोलेज के सभागार में किया गया .एम्.इ.एस अस्माबी कोलेज के प्राचार्य डॉ .के.शाजी के अद्ध्यक्षता में संगोष्टी का उदघाटन एम्.इ.एस केरल के सेन्ट्रल कोलेज कम्मट्टी चेयरमान प्रोफसर कडवनाड जी ने किया. उदघाटन भाषण में उन्होंने कहा चुनौती पूर्ण क्षेत्रों में काम कर रहे सैनिकों के बारे में और सामान्य लोग और सैनिक के रिश्ता के बारे में विचार करना समय की मांग है
संगोष्टी में बीज भाषण जवाहर लाल नेहरु विश्व विद्यालय के भूतपूर्व आचार्य एवं केन्द्रीय हिंदी निदेशालय के भूतपूर्व निदेशक प्रोफसर गंगाप्रसाद विमल जी ने किया था . उन्होंने हिन्दी साहित्य में पहली बार ऐसी विधा यानी सैनिक विमर्श पर चर्चा करने हेतु हिंदी विभाग के अद्ध्यक्ष डॉ.रंजित और डॉ .सूर्या को बधाई देते हुए जिन घटनाओं के बारे में जिक्र किया गया है, वह सब भारत वर्ष की एकता और संस्कृति के परिचायक थे . पाकिस्तान के एक कवि के “बम “नामक कविता के सहारे आपने यह साबित भी किया .
विख्यात सिन्धी –हिंदी साहित्यकार एवं गीतकार श्रीमती देवी नागरानी , मौरीशियस के महात्मा गाँधी इंस्ट्टीटयूट के प्राध्यापिका डॉ .अलका धनपत ,दिल्ली के विख्यात पत्रकार एवं लेखिका गीताश्री ,हैदराबाद केन्द्रीय विश्व विद्यालय के डॉ भीम सिंह ,पोंदिचीरी केन्द्रीय विश्विद्यालय के डॉ सी जयशंकर बाबू , मुंगेल छतीसगढ के डॉ .चंद्रशेखर सिंह ,बिलासपुर के डॉ.राजेश कुमार मानस ,असम के मिन्हाज अली और शहीदुल इस्लाम ,डॉ सुप्रिया पी ,डॉ .सुमेष ,डॉ .प्रतिभा ,डॉ.के जयकृष्णन ,डॉ.डी.रोज़ अन्तो ,डॉ .प्रमोद कोव्वाप्रथ ,डॉ रंजित ,डॉ.सूर्या बोस, डॉ .जीनु ,श्रीमती लिजी,श्रीमती रेशमी ,कुमारी सरयू आदि आमंत्रित विशेषज्ञों के साथ साथ छात्र –छात्राएं ,विभिन्न विश्व विद्यालयों के शोध छात्र और कोलेजों के प्राध्यापक पधारे हुए थे.
उदघाटन सत्र के बाद की पहली सत्र की अध्यक्षता विख्यात सिन्धी–हिंदी साहित्यकार एवं गीतकार श्रीमती देवी नागरानी जी ने की चश्मदीद गवाह बन कर २००८ मुंबई महानगरी में ताज की शान में जो गुस्ताखियाँ देखी, उन्हें बयान करते हुए, उनके जान कुर्बान देने की भावना के मर्म को सामने लाया। उन शहीदों के बारे में भारतीय प्रवासी लेखक–लेखिकाओं नें जो लिखा ,उन भावभीनी स्मृतियों को फिर से ताज़ा किया।
सत्र में भाग लेते हुए डॉ.अलका धनपत जी ने मॉरिशियस और वहाँ की संस्कृति के बारे में बताते हुए मॉरिशियस के राष्ट्र कवि ब्रजेन्द्र कुमार भगत मधुकर की रचनाओं के आधार पर युद्ध साहित्य पर अपनी विचार प्रकट की। दिल्ली के वरिष्ट साहित्यकार एवं पत्रकार श्रीमती गीताश्री जी हिंदी साहित्य में सिविल सेना के संबंध का चित्रण कैसे हो रहे है इसका वर्णन किया .
डॉ .के जयकृष्णन जी ने सिविल सैनिक संबंध, भारतीय सेना और उनके कानूनों के बारे में भी विस्तृत रूप से चर्चा की .
हैदराबाद विशव विद्यालय से आये डॉ भीम सिंह जी ने अपने भाषण में यह सवाल उठाया कि क्या अपनी देश कि सभ्यता और संस्कृति की रक्षा के लिए सेना बल की ज़रुरत है ..सैनिकों की मनोदशा व्यक्त करनेवाला साहित्य एवं इसकी जांच की आवश्यकता पर आपने बल दिया.
तीसरे सत्र की अद्ध्यक्षता पांडिचेरी विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग के साहयक आचार्य डॉ.सी.जयशंकर बाबू जी ने की। अद्ध्यक्षीय भाषण में उन्होंने ने कहा सेना शब्द के साथ ही दो अर्थ हमारे सामने आते हैं – एक युद्ध और दूसरा शान्ति. सेना और सिविल के बीच अच्छा रिश्ता होना ही चाहिए . सत्र में पहला प्रपत्र एम्.इ.एस नेडुमकंदम के डॉ.एस.सुमेष जी ने किया. उन्होंने यह व्यक्त किया कि हमारे समय कि सबसे विकल परिस्थिति है युद्ध .हर युद्ध के बाद अपनी संस्कृति से बहिषकृत लोगों का पलायन और विस्थापन की समस्या आज बढ़ रहे है . दूरा प्रपत्र डॉ .जीनु जॉन ने प्रस्तुत की ‘ सीधी सच्ची बातें ‘ उपन्यास के आधार पर युद्ध किस प्रकार समाज को प्रभावित करते है इसका विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया . ताड़ पश्चात डॉ.सूर्या बोस अल्पना मिश्र की ‘ छावनी में बेघर ‘ नामक कहानी में किस प्रकार सैनिक की पत्नी के मनोव्यवहार प्रस्तुत किया है इसका अध्ययन प्रस्तुत किया .
दुसरे दिन का पहला सत्र कालीकट विश्व विद्यालय के डॉ प्रमोद कोव्वाप्रत जी की अद्ध्याक्ष्ता में शुरू हुआ जिसमें – डॉ.सी .जयशंकर बाबू जी ने मनीषा कुल श्रेष्ट की रचना ‘शिगाफ ‘ में नागरिक –सेना संबंध किस प्रकार हुआ है इसका वर्णन किया . डॉ .चन्द्रशेखर सिंह जी ने हिंदी काव्यों में किस प्रकार भारतीय सैनिकों के शौर्य ,श्रम तथा पराक्रम का वर्णन किया है, बिलासपूर से आये डॉ.राजेश कुमार मानस जी ने ‘उसने कहा था’ कहानी , और ‘वापसी’ एकांकी में सैनिक जीवन के मार्मिक प्रसंग वर्णन किया. प्रदीप सौरभ जी की ‘देश भीतर देश ‘उपन्यास में सिविल सैनिक सम्बन्ध किस प्रकार आया है इसका वर्णन कालीकट विश्व विद्यालय की शोध छात्रा सरयू ने किया. सिविल सैनिक सम्बन्ध अटूट होने पर ही देश की प्रगती हो पाएगी ,यह मत उसने आगे रखी .एरनाकुलम महाराजास कोलेज की प्राध्यापिका डॉ.सिंधु जी ने अपने प्रपत्र में सिविल सैनिक संबंध का मनोरम चित्र अभिव्यक्त किया । पटटम्बी संस्कृत कोलेज के डॉ.प्रतिभा जी ने दिनकर की रचनाओं में युद्ध का वर्णन कैसे हुआ है इसका अद्ध्यायन प्रस्तुत किया। एम्.इ.एस अस्माबी कोलेज की रश्मि जी ने अपने प्रपत्र में यह साबित किया कि सैनिक सबसे पहले अपने देश के बारे में ही चिंता करते है ,भारतीय सैनकों के महत्व के बारे में भी अपने सूचना दी . श्रीमती लिजी ने मलयालम साहित्यकार कोविलन की रचनाओं में सैनिक जीवन का चित्रण कैसे हुआ है का मनोरम वर्णन प्रस्तुत किया . सेंत.जोस्फ्स कोलज ,इरिन्जलकूड़ा के डॉ.सी.रोज़ आंतो जी कोर्ट मार्शल नामक नाटक में चित्रित सैनिक समस्याओं पर विचार प्रकट किया . एम्.इ.एस अस्माबी कोलेज के इतिहास विभाग के अद्ध्यक्ष मुहम्मद नासर जी ने Armed forces special power act के बारे में और उसके कारण सामज में हुए नौबतों के बारे में जानकारी प्रदान की . आसाम राज्य से आये मिन्हाज अली ने डॉ सी. जयशंकर बाबू जी की ‘एक सैनिक की इच्छा ‘ कवीता में सैनिक नागरिक संबंधों पर रोशीनी डाली।
दो दिनों में हुयी यह अंतर राष्ट्रीय संगोष्टी कई रचनाओं के बारे में विचार करने का अवसर प्रदान करने में सक्षम रही। इस अवसर को शिखर पर ले आने के लिए हिन्दी विभाग के डॉ. रंजीत व डॉ. सूर्य बॉड को दिली बधाई एवं शुभकमनाएँ।

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