केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मुंबई हमले के आरोपी आतंकी अजमल कसाब की दया याचिका खारिज करने की राष्ट्रपति को सिफारिश कर दी है। इस सिफारिश पर राष्ट्रपति की मुहर लगते ही कसाब की फांसी का रास्ता साफ हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 29 अगस्त को कसाब की फांसी की सजा बरकरार रखी थी, इसके बाद उसने राष्ट्रपति से दया की गुहार लगाई थी।
कसाब की दया याचिका को तेजी से निपटाने के लिए इसे सीधे राष्ट्रपति को भेजने के बजाय महाराष्ट्र सरकार और केंद्रीय गृह मंत्रालय की सिफारिश के साथ भेजा गया है। सामान्य तौर पर राष्ट्रपति को संबोधित किसी भी दया याचिका को सीधे राष्ट्रपति भवन भेजा जाता है और राष्ट्रपति उस पर केंद्रीय गृह मंत्रालय से राय मांगते हैं। बाद में गृह मंत्रालय संबंधित राज्य सरकार से उस पर राय मांगता है। फिर राज्य सरकार की सिफारिश के साथ केंद्रीय गृह मंत्रालय होते हुए दया याचिका अंतिम विचार के लिए राष्ट्रपति के पास दोबारा पहुंचती है। लेकिन कसाब के मामले में इससे उलट प्रक्रिया अपनाई गई।
दरअसल, कसाब ने राष्ट्रपति के नाम दया याचिका महाराष्ट्र के राज्यपाल के शंकरनारायणन के पास भेजी थी। राज्यपाल ने इसे सीधे राष्ट्रपति के पास भेजने के बजाय राज्य सरकार से इस पर राय मांग ली। राज्य सरकार ने दया याचिका ठुकराने की सिफारिश के साथ राज्यपाल को वापस भेज दी। राज्यपाल ने राज्य सरकार की सिफारिश पर अपनी मुहर लगाते हुए इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेज दिया।
अब गृह मंत्रालय ने महाराष्ट्र सरकार और राज्यपाल की सिफारिशों पर मुहर लगाते हुए राष्ट्रपति के विचार के लिए इसे भेजा है और अब राष्ट्रपति को इस पर अंतिम फैसला लेना है। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सामान्य तौर पर राष्ट्रपति मंत्रालय की सिफारिश के अनुरूप ही दया याचिकाओं पर फैसला लेते हैं। राष्ट्रपति के पास लगभग एक दर्जन दया याचिकाएं लंबित हैं। इनमें संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की दया याचिका भी शामिल है।
देखने वाली बात होगी कि राष्ट्रपति अफजल गुरु से पहले कसाब की याचिका पर फैसला करते हैं या फिर पुरानी दया याचिकाओं पर फैसले के बाद इसे निपटाते हैं। गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की मानें तो राष्ट्रपति किसी भी याचिका पर कभी भी फैसला करने के लिए स्वतंत्र हैं।