खुशियों की फुलझड़ियां

गायक अनिक धर दिवाली का अपना अनुभव शेयर करते हैं, एक बार मैं रॉकेट चला रहा था। उसे मैंने सीधा रखा था, लेकिन आग लगाते ही उसकी दिशा बदल गई और उससे एक महिला बुरी तरह जख्मी हो गई। इस घटना से अनिक ने सबक लिया कि वे दिवाली पर सुरक्षा का खास खयाल रखेंगे। अब वे फुलझड़ी भी संभलकर जलाते हैं। दीपावली में सुरक्षा और सावधानी तो बरतनी ही चाहिए, साथ में यह त्योहार सफाई, साज-सज्जा, सादगी और संस्कारों के लिए भी हमें प्रेरित करता है।

सबकी हो सुरक्षा

हर साल दिवाली पर आतिशबाजी के कारण कई लोग घायल हो जाते हैं। इसलिए इस दिन अपने साथ-साथ दूसरों की सुरक्षा का भी खयाल होना चाहिए। कैसे? इस सवाल के जवाब में टीवी आर्टिस्ट सुगंधा मिश्रा कहती हैं, खुली जगहों में पटाखे चलाएं, व्यस्त सड़कों या गलियों में लडिया न लगाएं। यदि कोई पटाखा जलाने पर भी न फूटे, तो उसे झुककर नहीं देखना चाहिए।

जिम्मेदारी का अहसास

लोगों का खयाल करने का मतलब है कि हम जिम्मेदार नागरिक कहलाने योग्य हैं। टीवी अभिनेत्री दिव्याका त्रिपाठी कहती हैं, माना कि आतिशबाजी करने में हमें खूब मजा आता है, लेकिन एंजॉयमेंट का सही मतलब यह है कि किसी को भी उससे परेशानी न हो। पास-पड़ोस में बीमार, वृद्ध और छोटे बच्चे भी रहते हैं। अगर हम तेज आवाज और जहरीला धुआ फैलाने वाले पटाखे चलाएंगे, तो उन्हें दिक्कत हो सकती है। इंसानों की सुनने की क्षमता तकरीबन 50 डेसिबल होती है, लेकिन तेज आवाज वाले पटाखे 100 डेसिबल तक के होते हैं। इनकी आवाज से व्यक्ति बहरा भी हो सकता है। हृदय के रोगियों में दिल का दौरा पड़ने की आशका भी बढ़ जाती है।

अच्छा हो कि दीपावली पर पटाखों के साथ हमारे पास फ‌र्स्ट एड बॉक्स या टूल किट भी जरूर हो। कहती हैं कमेंटेटर तान्या सचदेव। वह कहती हैं, इससे छोटी-बड़ी दुर्घटनाएं होने पर उचित समय पर मरहम-पट्टी की जा सकती है। इस किट में गॉस, बीटाडिन, डिटॉल, कैंची व कुछ एंटीसेप्टिक दवाएं जरूर रखनी चाहिए। आतिशबाजी के दौरान पानी की बाल्टी भी साथ होनी चाहिए, ताकि जल जाने पर तत्काल राहत मिल सके।

शरारतों से तौबा

गोल्फर महेंद्र सिंह कहते हैं कि दिवाली की उमंग में आकर ऐसा कुछ न करें कि त्योहार की खुशी मुसीबत बन जाए। वह कहते हैं, इस दिन कुछ बच्चे अपनी बालकनी में पटाखे जलाकर नीचे जाने वालों पर फेंकते रहते हैं, तो कुछ जानवरों की पूंछ में पटाखे बाधकर उन्हें तंग करते हैं। ऐसी शरारतें त्योहार का मजा किरकिरा कर सकती हैं।

सादगी का सलीका

गाधी जी ने कहा था कि दिवाली मनाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि किसी एक व्यक्ति की जिंदगी से अंधेरा दूर किया जाए। कहते हैं पर्वतारोही अर्जुन वाजपेयी। उनके अनुसार, दिवाली पर दिखावे की प्रवृत्ति हावी हो गई है। लोग ज्यादा से ज्यादा पटाखे फूंककर पड़ोसी को जलाने और अपने घर को सबसे अच्छी फैंसी लाइटों से जगमगाने की होड़ में रहते हैं। इससे सिर्फ पैसे की बर्बादी होती है। इसके बजाय हमें सादगी से दिवाली मनानी चाहिए। साथ ही यह भी देखना चाहिए कि दिवाली पर पड़ोसी के बच्चों को भी मिठाइया व पटाखे मिले हैं या नहीं? फिल्म निर्देशक वंदना कोहली की हर दिवाली सादगी भरी होती है। वह कहती हैं, बिजली के बल्बों, झालरों या फिर आतिशबाजी में पैसा फूंकने से अच्छा है कि उस पैसे को उपयोगी कामों में खर्च किया जाए। पटाखे जलाना सिर्फ पैसे की बर्बादी ही नहीं है, इससे हमारा पर्यावरण भी प्रदूषित होता है और इसका सीधा प्रभाव हम सबकी सेहत पर पड़ता है।

साफ-सफाई और सज्जा

दिवाली साफ-सफाई और सजावट का भी त्योहार है। इस अवसर पर तुम अपनी क्रिएटिविटी का भरपूर इस्तेमाल कर सकते हो। इंटीरियर डेकोरेटर संगीत गाधी के अनुसार, दिवाली पर घर की सफाई तो होती ही है, यह त्योहार किशोरों को अपने कमरे को नया लुक देने का भी अच्छा अवसर देता है। उनके अनुसार, आजकल मार्केट में इंस्टेंट डेकोरेशन के कई ऑप्शस मौजूद हैं। इनसे कम खर्च में बढि़या सजावट हो सकती है। कर्टेन, बेडशीट और स्टडी टेबल के लिए एथनिक डिजाइन की टेबल क्लॉथ व कुछ डेकोरेटिव्स से कमरे को फेस्टिव और मॉडर्न लुक दिया जा सकता है। पेंटर नूपुर कुंडू दिवाली को क्रिएटिविटी दिखाने का बेहतरीन मौका मानती हैं। उनके अनुसार, दीपावली सृजनात्मक शक्ति को जगाने का त्योहार है। दिवाली पर रंगोली बनाने में किशोरों को दिलचस्पी लेनी चाहिए। रंगों व फूलों के साथ दीयों को सजाकर और खूबसूरत कलाकृतिया बनाकर क्रिएटिविटी दिखा सकते हैं।

संस्कार को मिले आकार

परंपराएं हमें संस्कारी बनाती हैं। कहते हैं सुलभ कालरा। उनके अनुसार, लक्ष्मी पूजा के समय पूरा परिवार एक साथ बैठता है। हमारे घर की परंपरा रही है कि लक्ष्मी पूजा और दीये जलाने के बाद घर के जूनियर सदस्य सीनियर्स यानी बड़ों का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते। आखिर परंपराएं हमें संस्कार भी तो देती हैं!

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