देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाली किसी भी गतिविधि या कार्यवाही को खत्म करने की कोशिश में हम भारत की सरकार के साथ खड़े हैं। लेकिन ईमानदारी से काम करने वाले, प्रतिबद्ध गैर-सरकारी संगठनों की विविधता को नहीं पहचानने और उनकी प्रशंसा करने में विफल रहते हुए और यह मानते हुए कि सभी एनजीओ संदिग्ध और दोषी हैं, यह बिल भारत के जीवंत लोकतंत्र के एक बहुत महत्वपूर्ण स्तंभ को नष्ट कर देगा
विधेयक में संशोधन को लेकर किसी भी तरह की चर्चा या संशोधन से पूर्व-विधायी बातचीत का हिस्सा बनने में हमें खुशी होती, लेकिन हम इस बात से निराश हैं कि हमें ऐसा कोई अवसर नहीं मिला।
पिछले पांच दशकों से भारत की सेवा कर रही पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया एफसीआरए फ्रेमवर्क में किए गए संशोधन को लेकर बेहद चिंतित है।
यह बिल गैर-सरकारी संगठनों के बीच जुड़ाव और सहयोग को खत्म कर देगा जो हमारे देश में नागरिक समाज की भावना के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिन्होंने वर्षों से सामाजिक परिवर्तन में अहम योगदान किया है।
मौजूदा प्रतिबंधों के साथ संशोधित एफसीआरए बिल, भारतीय संगठनों को किसी भी विदेशी संगठन से सब-कॉन्ट्रैक्टिंग के तहत मिलने वाले फॉरेन रिसर्च ग्रांट्स पर प्रतिबंध लगाता है। (जिसका संक्षेप में मतलब है कि कोई भी भारतीय संगठन एटरनेशनल कॉन्सोर्टियम में प्रमुख संस्था नहीं हो सकती) जो भारत के विज्ञान/अनुसंधान परफॉरमेंस को मजबूत करने की सरकार की इच्छा के मूल मिशन के खिलाफ है। यह बिल्कुल भी वाजिब नहीं है।
कोविड-19 के इस मुश्किल समय में, गैर सरकारी संगठनों ने हमारे विशाल और विविधता से भरपूर देश में, भ्रातृत्व और सहानुभूति की भावना से सरकार और साथी एनजीओ के साथ मिलकर लोगों के हित में काम किया है। यह विधेयक इस तरह के हर जुड़ाव, सहयोग और मेल-मिलाप को असंभव बना देगा। महामारी अभी खत्म नहीं हुई है, और हमारा मानना है कि आपसी सहयोग और भाईचारे की भावना समय की बेहद अहम जरूरत है, न कि मदद और सहयोग करने वालों के प्रति संदेह की दृष्टि रखना। वैज्ञानिक अनुसंधान एनजीओ समुदाय ( कम से कम स्वास्थ्य क्षेत्र में) इस नाजुक समय में तेजी से प्रभावित होगा, क्योंकि नए नियम दूसरे भारतीय संगठनों के साथ सहयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
विश्व मंच पर भारत की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। हमारे देश कुछ सबसे अहम बहुपक्षीय संस्थानों में शामिल रहा है, जिसमें भारत की अहम भूमिका के बारे में कल्पना की गई थी और यह कई वैश्विक साझेदारियों का नेतृत्व करता है। संयुक्त राष्ट्र के उच्च पटल पर भारत के मुद्दे को उठाने के लिए हम अपने प्रधानमंत्री का पूरा समर्थन करते हैं। सतत विकास लक्ष्यों व अन्य वैश्विक प्रतिबद्धताओं को हासिल करने के लिए दुनिया के राष्ट्रों के बीच अपनी जगह की तलाश ठीक वैसी ही है जैसी नागरिक समाज की सरकार और साझेदार-संगठनों के साथ साझेदारी। अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी और बंधुत्व की यह भावना, आज की दुनिया में बेहद महत्वपूर्ण है, इन नए नियमों से सभी विदेशी योगदानों (कानूनी रूप से और पारदर्शी तरीके से आने वाले) को संदेह की दृष्टि से देखने पर, यह भावना बुरी तरह प्रभावित होगी।
वैश्विक डोनर्स, भारत में बहुत से गैर सरकारी संगठनों के साथ लगातार और लंबे समय से काम कर रहे हैं। निश्चित तौर पर एनजीओज के लिए वे न सिर्फ भौतिक संसाधन उपलब्ध करा रहे हैं बल्कि एक विजन भी दे रहे हैं, जो हमारे देश की महत्वाकांक्षाओं के साथ संबंध रखते हैं और अहम जरूरतों को पूरा करते हैं। कानून में नए संशोधन के बाद अब ऐसे नियम हैं जो मदद के इस प्रवाह पर रोक लगाते हैं (वैध तरीके से आने वाले फंड भी)। नए नियम अंतर्राष्ट्रीय परोपकारी और सम्मानित संगठनों की भूमिका से लगभग अंजान हैं। हमारे आईआईटीज और अन्य महत्वपूर्ण कोर उद्योगों ने भी वैश्विक संगठनों से सहयोग प्राप्त किया है, और निसंदेह भारतीय अनुभव को समृद्ध है कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय संसाधनों के गलत चित्रण से सबकुछ शुरुआत से ही संदेह के घेरे में आ जाता है और उनकी भूमिका को नकारता है।
अगर नए एफसीआरए विधेयक को कानून के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है तो देश के सपनों को पूरा करने के लिए नागरिक समाज द्वारा जमीन पर किया जाने वाला आवश्यक अधिकांश कार्य, असंभव हो जाएगा।
सहायता/ अनुदान के रूप में एफसीआरए विनियमन के माध्यम से भारत में आने वाले विदेशी फंड में कथित तौर पर 96% कॉर्पोरेट क्षेत्र में जाता है जबकि सिर्फ 4% नागरिक समाज को। इस छोटे से हिस्से पर रोक लगाने के लिए नए प्रतिबंध गैरजरूरी होने के साथ ही जमीन पर होने वाले काम को भी प्रभावित करेंगे।
सीमित घरेलू परोपकारी फंडदाताओं के साथ, ऐसे दिशानिर्देश, एफसीआरए का पालन करने वाली गतिविधियों को भी अपराधिक बनाते हैं। इससे हजारों छोटे गैर सरकारी संगठन जो अच्छा काम कर रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त कानूनी फंड्स पर निर्भर हैं, बंद हो जाएंगे। साथ ही उन पर आश्रित लोगों की आजीविका संकट में पड़ जाएगी।
पॉपुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के चेयरपर्सन और भारत सरकार के पूर्व सचिव, श्री केशव देसीराजू ने कहा, “स्वयंसेवा की भावना ने स्वतंत्रता के पहले से भारत को मजबूत किया है। गैर-सरकारी और नागरिक समाज संगठनों ने सभी सफल सरकारी पहलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां कम्युनिटी प्रेजेंस और पहुँच महत्वपूर्ण होती है। हम उम्मीद करते हैं कि सरकार हमें सशक्त बनाएगी और सरकारी संस्थाओं और सहयोगी एनजीओज के साथ मिलकर हमें काम करने देगी।”
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा ने कहा, “वैश्विक दानदाता न सिर्फ उनके द्वारा लाए गए फंड के लिए बेहद अहम हैं बल्कि उनके विचार और विजन, भूख तथा बीमारी जैसी मौलिक और बुनियादी चुनौतियों से निपटने में भारत में काम करने वाले संगठनों के लिए काफी मददगार साबित हुए हैं। गैर सरकारी संगठन भारत में सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमें डर है कि कोई भी प्रतिबंध जो एक दूसरे के साथ काम करने की उनकी क्षमता को खत्म करता है, वह सार्थक सामाजिक परिवर्तन और प्रगति की प्रक्रिया को धीमा कर देगा। हम भारत के राष्ट्रपति से इस विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करने की अपील करते हैं जो भविष्य में हमारे काम को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।”