नई दिल्ली, 25 अप्रैल, 2022: एग्रो इनपुट्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एआईएम) ने उर्वरक नियंत्रण आदेश में बायो-स्टिमुलेंट्स को शामिल करने का स्वागत करते हुए मांग की है कि सरकार एमएसएमई को पंजीकरण प्रक्रिया के लिए एसोसिएशन द्वारा एकत्र किए गए डेटा जमा करने की अनुमति देकर उन्हें व्यवसाय जारी रखने में सक्षम बनाये।
2010 में स्थापित पुणे स्थित एसोसिएशन में लगभग 300 सदस्य हैं और उसके पास 8 प्रमुख बायो-स्टिमुलेंट्स का डेटा है। एसोसिएशन की उपस्थिति अखिल भारतीय स्तर पर है।
एसोसिएशन का कहना है कि व्यक्तिगत निर्माता के लिए इस डेटा को इकठ्ठा करना मुश्किल और अलाभकारी होगा, एआईएम की मांग है कि उसके द्वारा एकत्रित किए गए डेटा को छोटे निर्माताओं द्वारा पंजीकरण प्रक्रिया को पूरा करने के लिए उपयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
2019 में जारी एक अधिसूचना ने बायो-स्टिमुलेंट्स को उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ) 1985 के दायरे में ला दिया था।
एआईएम का मानना है कि दिशानिर्देश नवाचार (इनोवेशन) को प्रोत्साहित करने वाले, उद्योग अनुकूल और लेबल क्लेम आधारित उत्पादों को बढ़ावा देने वाले होने चाहिए, जोकि किसानों की आय को दोगुना कर उन्हें समृद्ध बना सकें।
स्थापना के बाद से ही उद्योग निकाय बहुत सक्रिय रहा है और बायोस्टिमुलेंट्स के लिए डेटा बनाने का कार्य शुरू कर दिया था।
वर्तमान में एसोसिएशन के पास सभी आवश्यक डेटा है, जोकि अधिसूचना के अनुसार अनुसूची6 में बायो-स्टिमुलेंट्स को शामिल करने के लिए जरूरी है।
एआईएम ने सरकार को एकत्रित किए गए इस डेटा को स्वीकार करने का प्रस्ताव दिया है, ताकि लघु से मध्यम उद्योग इस डेटा का उपयोग कर व्यावसायिक संभावनाओं को आगे बढ़ा सकें।
उपरोक्त डेटा निर्माण की प्रति उत्पाद लागत लगभग 30 लाख रुपये है, जोकिएमएसएमई के लिए वहनीय नहीं है।
एसोसिएशन का तर्क है कि कृषि रसायनों के पंजीकरण में एकत्रित डेटा कोई नई बात नहीं है और इसलिए बायो-स्टिमुलेंट्स के मामले में भी इसे स्वीकार किया जाना चाहिए।
इससे एआईएम के लगभग 300 सदस्य व्यवसाय जारी रखने में तुरंत सक्षम होंगे। एकत्रित डेटा के उपयोग से फिर से वही कार्य नहीं करना पड़ेगा और समय, ऊर्जा और राष्ट्रीय धन की बचत होगी।
इस एकत्रित डेटा का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग नई बायो-स्टिमुलेंट्ससम्बंधित अधिसूचना की सफलता होगी, क्योंकि हजारों छोटे से बड़े विनिर्माता (मनुफैक्टरर्स) इस डेटा का लाभ लेने के साथ-साथ नई अनुसूची6 में पंजीकरण करा सकते हैं।
“हम एफसीओ1985 के दायरे में बायो-स्टिमुलेंट्स को लाने वाली नई बायो-स्टिमुलेंट अधिसूचना का स्वागत करते हैं। इस निर्णय से बायो-स्टिमुलेंट को ‘पंजीकृत कृषि इनपुट’ का दर्जा मिलेगा और असली विनिर्माताओं को गर्व और प्रामाणिकता के साथ अपना व्यवसाय करने में मदद करेगा,”एआईएम एसोसिएशन के अध्यक्ष (प्रेसिडेंट) राजकुमार धुरगुड़े ने कहा।
“एआईएम एसोसिएशन के एकत्रित डेटा को स्वीकार किया जाना चाहिए। एमएसएमई और एसएमई के लिए अपने-अपने स्तर पर डेटा बनाना बहुत महंगा पड़ेगा। एफसीओ1985 की अनुसूची6 में बायो-स्टीमुलेंट के स्थायी पंजीकरण के लिए एक संघ के रूप में हमारे पास सभी आवश्यक डेटा है। इससे छोटे से मध्यम विनिर्माताओं को राहत मिलेगी और उनकी व्यावसायिक संभावनाओं में बाधा नहीं आएगी,”एआईएम एसोसिएशन के सचिव समीर पठारे ने कहा।
“हमें वर्तमान बायो-स्टिमुलेंटविनियमनों और उनकी प्रशासनिक चुनौतियों से आगे बढ़ने की जरूरत है। आइए, चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए खुद को तैयार करें और इसे अपने व्यवसाय और उद्योग को अगले स्तर पर ले जाने के अवसर के रूप में लें,”एआईएम एसोसिएशन के उप-सचिव वैभव काशीकरने कहा।
अन्य मांगों में एसोसिएशन चाहता है कि 22फरवरी, 2023को समाप्त होने वाले अस्थाई पंजीकरण प्रमाणपत्र (फॉर्म जी 3) की सत्यापन अवधि को कम से कम एक वर्ष बढ़ाने की आवश्यकता है।
साथ ही, बायो-स्टिमुलेंट्स में परतीकरण (लेसिंग) / मिलावट को रोकने के लिए 0.01पीपीएम की न्यूनतम अवशेष सीमा (एमआरएल) को बढ़ाकर न्यूनतम 5-10पीपीएम किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि 0.01पीपीएम की सीमा उपकरण दूषण (कंटैमिनेशन) के साथ-साथ उत्पादों के निर्माण के लिए उपयोग किए जाने वाले पानी के दूषण के कारण भी हो सकती है।
एसोसिएशन का मानना है कि अगर कोई कीटनाशक पर 1-5पीपीएम की परत चढ़ाई गई है, तब भी इससे किसी भी कीड़े को नुकसान नहीं होगा। इसलिए कीटनाशक अधिनियम के तहत भविष्य के मुकदमों के अलावा किसी अन्य उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो रही है।
कच्चे माल के रूप में बायो-स्टिमुलेंट्स की आयात नीति को तत्काल परिभाषित करने की आवश्यकता है। आयातकों को बायो-स्टिमुलेंट्स की पंजीकरण प्रक्रिया से छूट दी जानी चाहिए।