कुछ भी हो मेरी तो बेटी चली गई न.

बेटी को खोने का दर्द न बर्दाश्त कर पाने के कारण मां की हालत रविवार सुबह बिगड़ गई। उन्हें दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस दौरान रह-रह कर उनके मुंह से एक ही बात निकलती रही-कुछ भी हो मेरी तो बेटी चली गई ना.। इतना कहकर वह बेहोश हो जातीं थी। बेटी के अंतिम संस्कार के बाद उनकी हालत खराब हो गई थी। पूरे दिन इलाज के बाद शाम को उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

बताया जाता है कि उन्होंने पिछले हफ्ते से अन्न त्याग दिया है इसलिए उनकी इतनी नाजुक हालत हो गई है। सुबह करीब पौने सात बजे घर से बेटी का शव निकलने के कुछ देर बाद ही अचानक उसकी मां बेहोश हो गई। परिजन आनन-फानन में अस्पताल ले गए, जहां उन्हें आइसीयू में भर्ती किया गया।

डॉक्टरों का कहना है कि बेटी खोने के गम से वह बुरी तरह सदमे में हैं। इलाज के दौरान वह पांच बार बेहोश हुई। बार-बार आग्रह के बाद उन्होंने जब कुछ भी खाने से इन्कार कर दिया, तब अंत में डॉक्टरों ने ग्लूकोज चढ़ाने का फैसला किया। पूरे दिन करीब पांच बोतल ग्लूकोज चढ़ाई गई। तीन दिन बाद निरीक्षण के लिए डॉक्टरों ने उन्हें दोबारा अस्पताल बुलाया है।

बेटी की पढ़ाई के लिए बेच दी थी जमीन

सपने टूट गए और असुरक्षित भविष्य का साया मंडराने लगा बेटी के परिवार पर। दुराचार की शिकार बिटिया में मेधा और उसके तेज हाव-भाव देख पिता को उससे बहुत उम्मीदें थीं। दिल्ली में नट बोल्ट का धंधा करने वाले पिता ने औकात से बाहर जाकर उसके पालन पोषण में रुचि ली। अपनी कमाई से अच्छी तालीम दिलाने के बाद उस पर जोखिम उठाया। गांव की जमीन बेचकर उसे देहरादून में पैरामेडिकल में दाखिला दिलाया। इस उम्मीद पर कि दो छोटे बच्चों की बड़ी बहन काबिल निकल जिम्मेदारी संभाल लेगी। कठिन दिनों में भी मां बाप ने उसे अपना पेट काट कर पढ़ाया, अपनी थाती बेचकर बड़ी उम्मीद से उच्च शिक्षा दिलाई। इन दरिंदों ने सब पर पानी फेर दिया। 14 व 11 साल के दोनों छोटे भाइयों का भविष्य भी दांव पर लगा देने वाले पिता के सामने अब सब कुछ शून्य ही दिख रहा है। उसके चाचा ऐसी चर्चा करते हुए गमगीन हो जाते हैं। फिर थोड़ा उबर कर इन दरिंदों को सजा दिलाने की चर्चा करते हैं। कहते हैं संविधान में संशोधन कर इन्हें फांसी दिलाए सरकार। गांव के बड़े बुजुर्ग, महिलाएं सब दरिंदों को जल्द से जल्द कड़ा दंड दिए जाने के पक्ष में हैं।

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