मंदिरों में यूं ही चढ़ता रहा सोना, देश को पड़ेगा रोना

देशवासियों के सोने से प्रेम पर लगाम लगाने की केंद्र सरकार की पहल के समर्थन में रिजर्व बैंक (आरबीआइ) भी उतर आया है। रिजर्व बैंक की चले तो देश के किसी भी कोने में सोना या गहने की हर खरीद-बिक्री की निगरानी करवा दे। साथ ही वह मंदिरों में सोने के चढ़ावे पर भी रोक लगवा दे।

बैंक का कहना है कि सोने के प्रति भारतीयों के लगाव के साथ ही इसे मंदिरों में चढ़ाए जाने का खामियाजा देश की अर्थव्यवस्था को भुगतना पड़ सकता है।

रिजर्व बैंक ने हर हाल में सोने के इस्तेमाल को हतोत्साहित करने के लिए कदम उठाने के सुझाव सरकार को दिए हैं। सरकार को बैंकों के साथ मिलकर ऐसे उत्पाद लांच करने चाहिए, जिससे आम निवेशकों का सोने के प्रति मोह भंग हो। हाल के सालों में स्वर्ण आधारित कुछ निवेश प्रोडक्ट बाजार में उतारे गए हैं, लेकिन उसके बारे में आम जनता को पता नहीं है।

ग्रामीण क्षेत्र की जनता में इन उत्पादों के बारे में प्रचार करना चाहिए, क्योंकि सोने के प्रति उनका प्रेम ज्यादा गहरा है। जब तक सोने की मांग देश में कम नहीं होगी, तब तक न तो इसका आयात घटेगा और न ही चालू खाते में घाटे की स्थिति सुधरेगी।

केंद्रीय बैंक ने मंदिरों में चढ़ावे को सोने को समस्या की प्रमुख जड़ बताया है। साथ ही देश में टूटे-फूटे सोने के गहनों का भी एक बड़ा भंडार है, जिसका इस्तेमाल नहीं है। आरबीआइ का अनुमान है कि हर साल 300 टन सोना स्क्रैप के तौर पर देश में जमा हो रहा है। यह पूरी व्यवस्था पर एक बोझ है। इन दोनों को वित्तीय बाजार में तब्दील करने का सुझाव देते हुए बैंक ने कहा है कि सोना आयातकों को इजाजत मिले कि वे देश में बेकार पड़े या स्क्रैप्ड सोने को पारदर्शी तरीके से खरीद सकें। अगर बड़ी एजेंसियों को खरीद की मंजूरी मिलेगी तो काफी संख्या में लोग बिक्री के लिए सामने आ सकते हैं। अभी तो घरों में बेकार पड़े सोने को लोग इसलिए नहीं बेचते कि उसकी कीमत अच्छी नहीं मिलती। इसके लिए बड़े निवेशकों को कर छूट भी दी जा सकती है।

वित्त मंत्री पी चिदंबरम भी सोने की बढ़ती खपत के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले विपरीत असर पर चिंता जाहिर कर चुके हैं। सोने के आयात पर विदेशी मुद्रा खर्च होने से चालू खाते में घाटे की स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण हो चुकी है। सरकार इस पर लगाम लगाने की कोशिश कर रही है। जब किसी देश से वस्तुओं व सेवाओं का आयात कुल निर्यात की इन्हीं मदों से अधिक होता है। देश से जाने वाली पूंजी आगत से ज्यादा होती है तो इसे चालू खाते का घाटा कहा जाता है।

error: Content is protected !!