आखिर कब तक लुटती रहेगी अबला की आबरू?

ऐसा लगा था कि दिल्ली गैंगरेप जैसी दिल दहला देने वाली घटना प्रशासन से लेकर पुलिस और आम आदमी से लेकर नेताओं सभी को झकझोर के रख देगी। ऐसा हुआ भी। लेकिन यह आक्रोश महिलाओं के खिलाफ छेड़छाड़, रेप और यौन उत्पीड़न जैसे मामलों को रोकने के लिए नाकाफी साबित हुआ। यह आक्रोश लोगों के भीतर बैठे राक्षस को न मार सका। दरिंदों की दरिंदगी अब भी जारी है। सोचा था कि यह घटना पुलिस को उसका क‌र्त्तव्य याद दिलाएगी और शायद अब वह वर्दी के साथ ईमानदारी दिखाते हुए महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध को रोक पाएंगे। मगर यह क्या थाने में दरोगा जी ही महिला से पूछ रहे थे कि तेरे साथ तो रेप नहीं हुआ न। पुलिस की इस असंवेदनशीलता से ही यह साबित हो जाता है कि रेप जैसी घटनाएं उनके लिए आम बात है।

उस दर्दनाक घटना के बाद से अब तक दर्जनों महिलाओं और लड़कियों को हवस का शिकार बनाया जा चुका है। लेकिन प्रशासन के पास बगलें झांकने के सिवा कोई जवाब नहीं है। हो भी कैसे जब इसी प्रशासन से जुड़े तथाकथित जनसेवक महिलाओं को ही उनके खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। कोई कहता है कि लड़कियों के छोटे कपड़े देखकर पुरुष आकर्षित होते हैं। तो कोई कुंभ मेले में लड़कियों को सही कपड़े पहनकर आने की सलाह देता है।

वह घटना जिससे देश ही नहीं विदेश में रहने वालों की भी रूह कांप गई, मध्यप्रदेश की एक महिला डॉक्टर को न पिघला सकी। उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि अगर वह लड़की आरोपियों के सामने आत्मसमर्पण कर देती तो उसका इतना बुरा हाल नहीं होता। वहीं, देश के नेता भी इस घटना के बाद उठी आक्रोश की आग पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते नजर आए। किसी ने कहा कि रेप के खिलाफ बनने वाले कानून का नाम पीड़ित के नाम पर रखा जाना चाहिए। तो कोई उसे अशोक चक्र देने की मांग करता हुआ नजर आया। लेकिन जरा अपने दिल से पूछें कि क्या हमारे समाज के सम्मानित व्यक्ति के तौर पर पहचाने वाले किसी भी शख्स ने महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के लिए जरा भी प्रयास किया। कैसे रोके जाएं महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध, नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर दें अपने सुझाव..

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