जलवायु परिवर्तन से अनियमित एवं निरंतर बन रहा मानसून

भारत के 70 प्रतिशत से अधिक जिलों में अत्यधिक बारिश की घटनाः आईपीई ग्लोबल और एसरी इंडिया का अध्ययन

नई दिल्ली, अगस्त, 2024- आईपीई-ग्लोबल और एसरी इंडिया द्वारा आज जारी अपनी तरह के पहले अध्ययन के मुताबिक, भारत के 84 प्रतिशत से अधिक जिलों में अत्यधिक लू चलने की आशंका है जिसमें से 70 प्रतिशत जिलों में बार बार और अत्यधिक बारिश होने की घटना दर्ज की गई है। अत्यधिक गर्मी और बारिश की घटनाओं की पुनरावृत्ति, तीव्रता और अनिश्चितता हाल के दशकों में बढ़ी है। जहां भारत में पिछले तीन दशकों में मार्च-अप्रैल-मई और जून-जुलाई-अगस्त-सितंबर के महीनों में अत्यधिक गर्म हवाओं में 15 गुनी वृद्धि दर्ज की गई है, अकेले पिछले दशक में तेज लू के दिनों में 19 गुना वृद्धि दर्ज की गई। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि भारत में मानसून के सीजन में गैर बारिश के दिनों को छोड़कर बढ़ी हुई गर्मी की स्थितियां देखी गई हैं। इस अध्ययन को आज आईपीई ग्लोबल, एसरी इंडिया और इसकी साझीदार यूनेस्को एवं क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा “भारत किस तरह से जलवायु की तीव्रता से निपट सकता है” शीर्षक से आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में पेश किया गया। दुनिया, जलवायु सप्ताह, एनवाईसी, अमेरिका के लिए कमर कस रही है जहां उद्योगपतियों, राजनेताओं के जलवायु कार्य प्रतिबद्धता पर चर्चा करने की संभावना है।
आईपीई ग्लोबल में जलवायु परिवर्तन एवं टिकाऊ व्यवस्था के प्रमुख और इस अध्ययन के लेखक अबिनाश मोहंती ने कहा, “प्रलयंकारी अत्यधिक गर्मी और बारिश के मौजूदा रुख का परिणाम है कि पिछली शताब्दी में तामपान 0.6 डिग्री सेल्सियत बढ़ गया है। अल नीना गति पकड़ रहा है और पूरी दुनिया में इसकी समय से पहले उपस्थिति महसूस की जा रही है जिसमें भारत को पहले से अधिक अशांति की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में अनियमित और निरंतर बारिश की वजह से केरल में भूस्खलन की घटना और भारी बारिश से शहरों की व्यवस्था पंगु होना, जलवायु परिवर्तन का एक प्रमाण है। हमारा विश्लेषण यह सुझाव देता है कि हर 10 में से 8 भारतीयों को वर्ष 2036 तक अत्यधिक बारिश या गर्मी का सामना करना पड़ सकता है और यह संख्या अपने चरम पर है। भारतीय कृषि, उद्योग और वृहद आकार वाली ढांचागत परियोजनाओं की जलवायु परिवर्तन की अनियमितताओं से रक्षा करने के लिए हाइपर ग्रैनुलर जोखिम आकलन एवं जलवायु जोखिम वेधशालाओं को अपनाना एक राष्ट्रीय अनिवार्यता होनी चाहिए।”
एसरी इंडिया के प्रबंध निदेशक अगेंद्र कुमार ने कहा, “तीव्र वर्षा के साथ संयोजन में लू की बढ़ती तीव्रता और पुनरावृत्ति लोगों के जीवन, आजीविका और आधारभूत ढांचे पर काफी प्रभाव डाल रही है। सूझबूझ के साथ नीतिगत निर्णय करने, जलवायु अनुकूलन और लचीलापन के लिए एक समग्र, डेटा संचालित दृष्टिकोण अपनाए जाने की आवश्यकता है। उन्नत स्पैटियल एनालिसिस टूल्स औक विभिन्न प्रकार के डेटा को एकीकृत करने की क्षमता के साथ जीआईएस टेक्नोलॉजी से आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण दृष्टिकोण से जलवायु के प्रभाव को विस्तृत रूप से समझने में मदद मिलेगी। सरकार में नीति निर्माता इसका उपयोग लचीले आधारभूत ढांचे के नियोजन और विकास, आपदा प्रबंधन और नागरिकों को काम में लगाने में कर सकते हैं। वहीं कारोबारी बेहतर रणनीतिक नियोजन के लिए और आपूर्ति श्रृंखला एवं कारोबारी परिचालनों में अधिक लचीलापन लाने के लिए जलवायु अंतर्दृष्टि को एकीकृत कर सकते हैं। जीआईएस टेक्नोलॉजी पहले से ही विभिन्न आपदा राहत कार्यक्रमों, आधारभूत ढांचा, जनोपयोग सेवाओं, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और स्मार्ट सिटीज़, अमृत, राष्ट्रीय जल मिशन और स्वच्छ गंगा जैसे मिशनों का मुख्य आधार है। एसरी इंडिया में हम हमारे साझीदारों और अंतिम यूज़र्स को नवीनतम टेक्नोलॉजी, टूल्स और डेटा के साथ समर्थ बनाने की दिशा में निरंतर काम करते हैं ताकि वे सभी के लिए एक टिकाऊ भविष्य के निर्माण के अपने प्रयासों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के लिए मैपिंग और लोकेशन एनालिटिक्स का उपयोग कर सकें।”
गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मेघालय और मणिपुर गर्मी और अत्यधिक वर्षा की दोहरी मार झेल रहे
आईपीई ग्लोबल के अध्ययन में पाया गया कि भारत के 84 प्रतिशत से अधिक जिलों अत्यधिक लू वाले हॉटस्पॉट के तौर पर समझा जा सकता है जिसमें से करीब 70 प्रतिशत जिलों में मानसून के सीजन में पिछले तीन दशकों में जून-जुलाई-अगस्त-सितंबर में अधिक और बार बार अनवरत और अनियमित वर्षा दर्ज की गई। इसके अलावा, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में लू की संभावना वाले 62 प्रतिशत से अधिक जिलों में अनवरत और अनियमित वर्षा देखी गई। वातावरण के तापमान और आद्रता में इस वृद्धि से दुनियाभर में विशेषकर ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गर्म हवाएं बढ़ने की संभावना है। इस अध्ययन के क्षेत्रीय विश्लेषण के आधार पर निम्नलिखित राज्यों में अत्यधिक लू देखी जा रही है।

जलवायु घटनाओं के बदलते प्रारूप
इस अध्ययन में एक रुख पाया गया कि अत्यधिक लू वाले हॉटस्पॉट में अनवरत और अनियमित बारिश की पुनरावृत्ति और तीव्रता देखी जा रही है। तटीय जिलों- पूर्वी और पश्चिमी तट दोनों में अधिक और बार बार अप्रत्याशित बारिश होते देखी गई है। वहीं जून- जुलाई-अगस्त-सितंबर में जिन जिलों में अधिक लू चली, वहां भी अनवरत और अनियमित बारिश अधिक होने का रुख दर्ज किया गया है। वातावरण में बढ़ते तापमान और उमस से दुनियाभर में खासकर ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लू चलने की अधिक संभावना है। अधिक लू चलने के दिनों में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन की वजह से अनवरत और अनियमित बारिश होने से काफी चुनौतियां पैदा होती हैं जिसे देखते हुए प्रभावित कमजोर समुदायों की रक्षा के लिए समग्र रणनीतियां बनाना आवश्यक हो जाता है। इस अध्ययन में पाया गया कि हर 10 में से 8 भारतीय को वर्ष 2036 तक अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन जिलों की हॉटस्पॉट के तौर पर पहचान की गई है, वहां लैंड-यूज़-लैंड-कवर में 55 प्रतिशत बदलाव आया है। यह प्रारूप परिवर्तन पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सूक्ष्म जलवायु परिवर्तन की वजह से आया है और इसके लिए लैंड-यूज़ सरफेस परिवर्तन, वनों की कटाई, कच्छ वनस्पति (मैनग्रोव्स) और दलदली भूमि पर अतिक्रमण जैसे स्थानीय जलवायु परिवर्तन के कारक जिम्मेदार हैं।
इस अध्ययन में सिफारिश की गई है कि लू और अत्यधिक बारिश से निपटने के लिए जोखिम आकलन के सिद्धांत, भारत की रणनीति के केंद्र में होने चाहिए। पहले कदम के तौर पर यह एक हीट रिस्क ऑब्जर्वेटरी (एचआरओ) की स्थापना का प्रस्ताव करता है जो अर्बन हीट आइसलैंड्स, पानी को लेकर तनाव, वेक्टर जनित बीमारियों, फसल नुकसान और जैव विविधता एवं पारितंत्र ध्वस्त होने जैसे गर्मी से पैदा होने वाले जोखिम से निपटने में बेहतर तैयारी के लिए हाइपर ग्रैनुलर स्तर पर अत्यधिक गर्मी के जोखिम की पहचान एवं आकलन करने में मदद कर सकता है। इस अध्ययन ने गर्मी के जोखिम और अत्यधिक बारिश के जोखिम को कम करने के लिए रिस्क फाइनेंसिंग के भी उपाय करने का सुझाव दिया है। इसके अलावा, यह जिला आपदा प्रबंधन समितियों के भीतर हीट रिस्क चैंपियनों की नियुक्ति करने का भी सुझाव दिया है। इससे एजेंसियां जिला स्तर पर गर्मी के जोखिम को कम करने के प्रयासों को प्राथमिकता दे सकेंगी जिसके परिणाम स्वरूप गर्मी झेलने के लिए लचीलापन बढ़ाया जा सकेगा।
आईपीई और एसरी का यह अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत के सभी जिलों में अत्यधिक गर्मी और बारिश का सूक्ष्म स्तरीय खतरे का आकलन उपलब्ध कराता है। इसकी दलील है कि अत्यधिक स्थानीय स्तर पर जोखिम का समग्र आकलन आज के समय की जरूरत है और महज वैश्विक मॉडल पर निर्भरता प्रभावी नहीं होगी। इसके अलावा, जलवायु के जोखिमों की पहचान और अनुमान, जी20 की अगुवाई करने वाले भारत के स्तर पर जलवायु प्रूफ जीवन, आजीविका, आधारभूत ढांचा और अर्थव्यवस्थाओं के लिए वैश्विक स्तर पर कार्रवाई के आह्वानों में से एक है और ब्राजील जी20 के मौजूदा संस्करण में इस पर आगे बातचीत की जा रही है।

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