शाही स्नान के लिए गंगा जल का संकट

पंद्रह दिन पहले नरौरा से छोड़ा गया ढाई हजार क्यूसेक पानी गायब हो गया है। मकर संक्रांति के स्नान को महज दो दिन शेष हैं, लेकिन गंगा में पानी का लेबल पहले से महज 15 सेंटीमीटर ही ऊपर आया है। अभी भी तीस नालों का पानी सीधे गंगा में गिर रहा है। गंगा के पानी का रंग अभी भी लाल बना हुआ है। इसे लेकर संतों में काफी नाराजगी है। ऐसे में 14 जनवरी को मकर संक्रांति को लेकर प्रशासन के इंतजामों का अंदाजा लगाया जा सकता है।

सिंचाई एवं बाढ़ प्रखंड विभाग की मानें तो 27 दिसंबर से नरौरा बांध से ढाई हजार क्यूसेक पानी गंगा में छोड़ा गया था। इसके बावजूद गंगा का जलस्तर पंद्रह दिन में 15 सेंटीमीटर से ज्यादा नहीं बढ़ पाया। विशेषज्ञों के अनुसार नरौरा से यहां तक पानी आने में बारह दिन का समय लगता है। इस हिसाब से अब तक पानी यहां आ जाना चाहिए था, लेकिन हाल यह है कि गंगा में जगह-जगह रेतीली धरती और टापू दिखाई दे रहे हैं। माना जा रहा है कि मकर संक्रांति पर एक करोड़ से अधिक श्रद्धालु यहां आएंगे। वे कैसे और कहां स्नान करेंगे, यह सवाल उठ खड़ा हुआ है। कटान के कारण घाटों का निर्माण भी नहीं हो पाया है।

विभाग का दावा करते हैं कि स्नान में कोई परेशानी नहीं होगा। सिंचाई एवं बाढ़ प्रखंड के अधीक्षण अभियंता एके श्रीवास्तव के मुताबिक पानी की कोई कमी नहीं है। मकर संक्रांति के एक दिन पहले 13 जनवरी को 400 क्यूसेक पानी और गंगा में छोड़ा जाएगा। घाटों के निर्माण की स्थिति पर संतोष व्यक्त करते हुए इसी विभाग के अधिशासी अभियंता जेबी वर्मा ने बताया कि गंगा के कटान को रोकने के लिए संगम से लेकर सलोरी तक क्रेट्स (बांस के घेरे में बालू की बोरी का दबाव) लगवा दिए गए हैं। घाटों की तैयारी पूरी हो चुकी है।

अब रंग का हाल जानें। शासन स्तर से काफी कोशिश के बाद भी गंगा का बीओडी (बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड) लेबल पांच से नीचे नहीं आ पाया। प्रदूषण नियंत्रण इकाई झूंसी के क्षेत्रीय अधिकारी सिकंदर का कहना है कि इस समय गंगा के पानी का बीओडी लेबल पांच से कम हो गया है। इसका मतलब पानी शुद्ध हुआ है। अब गंगाजल का रंग लाल होने की वजह नालों का पानी माना जा रहा है। महाकुंभ के पहले पांच नए सीवर शोधन संयंत्र (एसटीपी) बनाए गए हैं। मगर शहर के तीस नालों का पानी अभी भी सीधे गंगा में गिर रहा है। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के परियोजना प्रबंधक जेपी मणि इस पर सफाई देते हैं कि तीस नालों का पानी भी केमिकल के प्रयोग से साफ करके गंगा में डाला जा रहा है। ये नाले अरैल, शिवकुटी, फाफामऊ से गंगा में गिर रहे हैं।

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