पटना वीमेंस कॉलेज में ‘स्वाहा: इन द नेम ऑफ फायर’ की विशेष स्क्रीनिंग, बिहार की महिलाओं को समर्पित ऐतिहासिक आयोजन

पटना, 10 जुलाई 2025 : बिहार की सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना को उजागर करने वाली पहली पूर्णत: मगही भाषा में बनी फिल्म ‘स्वाहा: इन द नेम ऑफ फायर’ की विशेष स्क्रीनिंग आज पटना वीमेंस कॉलेज के प्रतिष्ठित वेरोनिका ऑडिटोरियम में हुई। यह आयोजन बिहार में इस फिल्म की पहली औपचारिक प्रदर्शनी थी और खासतौर पर राज्य की कामकाजी महिलाओं को समर्पित किया गया था। स्क्रीनिंग का विधिवत शुभारम्भ  मुख्य अतिथि के रूप में बिहार के मुख्य सूचना आयुक्त श्री त्रिपुरारी शरण के साथ, गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में श्री परवेज अख्तर वरिष्ठ थिएटर डायरेक्टर, स्मिता कुमारी, डीन आर्ट्स एंड ह्यूमेनिटीज, पटना वीमेंस कॉलेज के द्वारा संयुक्त रूप से की गयी।

उक्त अवसर पर बिहार के मुख्य सूचना आयुक्त श्री त्रिपुरारी शरण ने कहा कि सिनेमा कला के एक माध्यम के रूप में समाज को प्रतिबिम्बित करता है। यह एक सशक्त माध्यम है किसी फिल्म को कहने का। उन्होंने कहा कि फिल्म ‘स्वाहा: इन द नेम ऑफ फायर’, मुंबईया सिनेमा नहीं है, मगर इसे बेहद गहराईयों से बहुत सोच – समझ कर बनाया गया है। यह आम फिल्मों से हट कर है, जिसमें आज हमारे समाज में औरतों का स्टेट्स क्या है, इस लाइन पर यह फिल्म केन्द्रित है। सबों को यह फिल्म देखनी चाहिए। मेरी बहुत सारी शुभकामनाएं हैं। मैं फिल्म के निर्देशक अभिलाष शर्मा और निर्माता विकास शर्मा को कहूँगा कि इस फिल्म को हर प्लेटफ़ॉर्म पर दिखाएँ।

प्रजना फिल्म्स द्वारा निर्मित फिल्म ‘स्वाहा: इन द नेम ऑफ फायर’ का निर्माण बिहार (राजगीर और गयाजी) में किया गया है और यह एक ऐसी महिला की मार्मिक कहानी को बयां करती है जो भय, चुप्पी और सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष करती है। फिल्म की पृष्ठभूमि बिहार की आत्मा से जुड़ी हुई है और यह महिला सशक्तिकरण की मजबूत आवाज बनकर उभरी है। इसको लेकर निर्देशक अभिलाष शर्मा ने बताया कि इस फिल्म की प्रेरणा मुझे उत्तर प्रदेश में बनी एक शार्ट एनिमेशन फिल्म देख कर मिली थी। इसमें बिहार के कलाकारों ने काम किया है। हमें उम्मीद है कि हमारी फिल्म को बिहार सरकार से भी प्रोत्साहन मिलेगी।

उन्होंने ‘स्वाहा’ मेरे लिए सिर्फ एक फिल्म नहीं, आत्मा की आवाज़ है। इसकी प्रेरणा मुझे “Animator vs. Animation” जैसी शॉर्ट फिल्म से मिली, जहाँ रचनाकार और रचना के बीच संघर्ष को दिखाया गया था। यही विचार धीरे-धीरे एक माँ और उसके बच्चे के बीच संघर्ष की कहानी में बदल गया — एक ऐसी माँ जो समाज के बोझ तले दबती चली जाती है। यह फिल्म विशेष रूप से बिहार के वंचित समुदायों, खासकर मुसहर समुदाय की पीड़ा को उजागर करती है। मैं मानता हूँ कि धर्म, जाति और गरीबी मिलकर कैसे लोगों को हाशिए पर धकेलते हैं — यही ‘स्वाहा’ का असली मतलब है: बलिदान।

फिल्म को ब्लैक एंड व्हाइट में शूट करने का फैसला भावनात्मक प्रभाव को गहराई देने के लिए था। ‘स्वाहा’ पूजा की आग में नहीं, ज़िंदगी की आग में जलने की कहानी है — एक माँ की, जो अपने बच्चे और समाज के लिए खुद को होम कर देती है। यह फिल्म बौद्ध दर्शन — दुःख, करुणा और निर्वाण — से गहराई से प्रभावित है। छोटे बजट में बनी यह फिल्म इस बात का प्रमाण है कि सिनेमा का असली जादू संसाधनों में नहीं, बल्कि सच्ची भावना और ईमानदार दृष्टि में होता है। ‘स्वाहा’ बनाना मेरे लिए आत्मिक अनुभव था — एक यात्रा, जिसमें मैंने न सिर्फ एक कहानी कही, बल्कि खुद को भी जाना, समझा और बदला।

विदित हो कि फिल्म ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी जबरदस्त पहचान बनाई है। इसे अब तक 30 से अधिक अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रदर्शित किया जा चुका है और यह कई प्रतिष्ठित पुरस्कार जीत चुकी है। शंघाई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और अभिनेता का ‘गोल्डन गोब्लेट अवॉर्ड’ से सम्मान, न्यूयॉर्क के सोशल्ली रेलेवेंट फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ कथा फिल्म और इमैजिन इंडिया इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (स्पेन) में ‘लाइफ अवॉर्ड’ जैसे सम्मान इसकी उत्कृष्टता के प्रमाण हैं।

स्क्रीनिंग से पूर्व ‘वूमन ऑफ सब्सटेंस’ सम्मान समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें तीन प्रेरणादायी महिलाओं को उनके सामाजिक योगदान के लिए सम्मानित किया गया। पद्मश्री सुश्री सुधा वर्गीज (‘नारी गुंजन’), सुश्री ज्योति परिहार (‘किलकारी बिहार बाल भवन’) और सुश्री चेतना त्रिपाठी (‘चेतना फाउंडेशन’) को उनके अद्वितीय कार्यों के लिए सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर वक्ताओं ने बिहार की क्षेत्रीय भाषाओं, खासकर मगही के माध्यम से सशक्त फिल्म निर्माण की दिशा में यह फिल्म मील का पत्थर साबित होने की बात कही। उन्होंने कहा कि यह फिल्म आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन सकती है, विशेषकर महिलाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए।

‘स्वाहा’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की एक मजबूत आवाज है। यह बिहार की मिट्टी, उसकी बोली और उसकी नारी शक्ति का प्रतीक है। आयोजकों ने मीडिया से अपील की कि वे इस फिल्म को राज्य के कोने-कोने तक पहुँचाने में सहयोग करें, ताकि यह सिनेमा बदलाव की एक नई लहर ला सके।

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