खुद से जीत: टाटा ट्रस्ट्स का अभियान सर्वाइकल कैंसर की समय पर जांच के लिए महिलाओं को कर रहा है प्रेरित

नई दिल्ली, जुलाई 2025: कई बारकिसी महिला की सबसे बड़ी लड़ाई उसके अपने मन के डरचुप्पी और हिचकिचाहट से होती है। टाटा ट्रस्ट्स के सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य जागरूकता अभियान ‘खुद से जीत’ में इसी अंतर्द्वंद को सामने लाया गया है। यह अभियान महिलाओं को समय पर सर्वाइकल कैंसर की जांच कराने और अपनी सेहत को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित करता है।

भारत में महिलाओं के बीच सर्वाइकल कैंसर दूसरा सबसे आम कैंसर हैजो हर साल लगभग 75,000 महिलाओं की जान लेता है—अधिकतर मामलों में इसलिए क्योंकि इसका पता देर से चलता है। जबकि अगर समय रहते जांच हो जाएतो 95% मामलों में इसका इलाज संभव है। फिर भीकई महिलाएं समय पर जांच नहीं करातीं। इसके पीछे कारण है – इस बीमारी के लक्षणों के प्रति जागरूकता की कमीडरशर्म और चुप्पी की वह आदत जो जांच में देरी करवा देती है।

पिछले एक साल मेंटाटा ट्रस्ट्स ने झारखंडआंध्र प्रदेशओडिशा और महाराष्ट्र में राज्य सरकारों और सहयोगी संस्थाओं के साथ मिलकर 26,000 से ज़्यादा सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग करवाई हैं। इस ज़मीनी अनुभव से यह साफ़ हुआ है कि भावनात्मक और सामाजिक बाधाएं आज भी महिलाओं को मदद लेने से रोकती हैं—भले ही स्वास्थ्य सेवाएं उनके आसपास ही क्यों न हों। अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों के ज़रिएटाटा ट्रस्ट्स का लक्ष्य है महिलाओं को हिचकिचाहट छोड़कर कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करना।

सर्वाइकल कैंसर के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से टाटा ट्रस्ट्स ने एक विशेष पैनल चर्चा का आयोजन कियाजिसमें ऑन्कोलॉजीसाइको-ऑन्कोलॉजी और रोगी सहायता से जुड़े प्रमुख विशेषज्ञ शामिल हुए। इस चर्चा में बीमारी की गंभीरतासमय पर जांच की बाधाएंज़रूरी कदम और भारत में इस विषय पर बातचीत का स्वर बदलने के तरीकों पर विस्तार से बातचीत हुई।

इस सत्र में डॉ. गौरवी मिश्राडिप्टी डायरेक्टरसेंटर फॉर कैंसर एपिडेमियोलॉजीटाटा मेमोरियल सेंटरडॉ. सविता गोस्वामीसाइको-ऑन्कोलॉजिस्टटाटा मेमोरियल हॉस्पिटलऔर वंदना गुप्ताकैंसर सर्वाइवर और ‘वी केयर फाउंडेशन’ की संस्थापक मौजूद रहीं।

इस सत्र का संचालन डॉ. रुद्रदत्त श्रोत्रियहेडमेडिकल ऑपरेशन्सटाटा कैंसर केयर फाउंडेशन ने किया। उन्होंने कहा, “भारत में हर साल सर्वाइकल कैंसर के कारण करीब 15 लाख स्वस्थ जीवन वर्ष का नुकसान होता हैखासकर 30 से 65 वर्ष की महिलाओं में। इसकी सबसे बड़ी वजह है – जागरूकता की कमी और हिचकिचाहट। कई महिलाएं शुरुआती लक्षणों को गंभीरता से नहीं लेतींऔर जो लेती हैंवे डर या शर्म के चलते जांच टाल देती हैं। कुछ को तो यह भी नहीं पता होता कि बिना लक्षणों के भी खतरा हो सकता है। ऐसे में समय पर स्क्रीनिंग बेहद जरूरी है। हमारा उद्देश्य है कि महिलाएं अपनी सेहत को प्राथमिकता दें और बिना हिचक जांच कराएं।”

टाटा ट्रस्ट्स ने इसी विषय पर एक संवेदनशील सामाजिक जागरुकता फिल्‍म भी लॉन्च की हैजो एक महिला के आंतरिक संघर्ष को दर्शाती है—जहां वह आत्म-संदेहइनकार और संकोच से निकलकर अपने लक्षणों पर ध्यान देती है और स्क्रीनिंग का फैसला लेती है। ट्रस्ट्स का मानना है कि ऐसी कहानियों के ज़रिए ज्यादा महिलाओं को प्रेरित किया जा सकता है कि वे अपने शरीर की आवाज़ सुनें और अपनी सेहत को महत्व दें।

 इस अभियान के बारे में बात करते हुए शिल्पी घोषकम्युनिकेशन्स स्पेशलिस्टटाटा ट्रस्ट्स ने कहा, “‘खुद से जीत’ की शुरुआत तब हुई जब हमने महिलाओं की चुप्पीडर और संकोच को सुना। सर्वाइकल कैंसर सिर्फ एक बीमारी नहींएक भावनात्मक अनुभव भी हैजो अनकही बातों और झिझक में छिपा रहता है। कई बार यह न केवल जानकारी की कमी होती हैबल्कि वह अंदर की आवाज़ भी होती है जो कहती है – रुकोमत बोलोपहले खुद को मत रखो।‘ हमारा प्रयास है महिलाओं को यह भरोसा देना कि वे जरूरी हैंउनकी सेहत जरूरी है। हर कहानी और हर शब्द के ज़रिए हम यही संदेश देना चाहते हैं कि अगर वे यह भीतरी लड़ाई जीत लेंतो वे वही ज़िंदगी पा सकती हैंजिसकी वे हक़दार हैं।”

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