मराठीवाद का प्रतीक बन गए हैं एसीपी ढोबले

मुंबई के विवादित पुलिस अधिकारी एसीपी वसंत ढोबले को अब मराठीवाद का प्रतीक बनाकर राजनीति शुरू हो गई है। कुछ राजनीतिक दल उनके स्थानांतरण का विरोध करके मराठी वोटबैंक को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, तो कुछ समर्थन करके हिंदीभाषी मतदाताओं को।

पिछले सप्ताह एसीपी ढोबले द्वारा हॉकरों के विरुद्ध की जा रही कार्रवाई के दौरान एक हॉकर की मस्तिष्कघात से मृत्यु हो गई थी। कांग्रेस के नेताओं द्वारा इस घटना को मुद्दा बनाने के बाद ढोबले का स्थानांतरण करके उन्हें पुलिस कंट्रोलरूम भेज दिया गया है। इसके बाद से ही मुंबई के राजनीतिक दल दो भागों में बंटे नजर आ रहे हैं। ज्यादातर मराठीभाषी ढोबले का समर्थन कर रहे हैं। जबकि अन्य भाषा-भाषी ढोबले के स्थानांतरण को सही मान रहे हैं। जनता का रुख देखते हुए राजनीतिक दल भी दो भागों में बंट गए हैं। शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ढोबले के पक्ष में है, तो कांग्रेस उनके विरोध में। भाजपा और राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता इस मुद्दे पर बंटे दिखाई दे रहे हैं।

एसीपी ढोबले इससे पहले पिछले वर्ष तब चर्चा में आए थे, जब मुंबई पुलिस की समाज सेवा शाखा में रहते हुए उन्होंने देर रात तक चलनेवाले बारों पर हॉकी लेकर कार्रवाई शुरू कर दी थी। बारों में कई बड़ी हस्तियों पर भी उनकी गाज गिरने के बाद उन्हें समाजसेवा शाखा से हटा दिया गया। पिछले दिनों मुंबई के फुटपाथों पर रोजगार करनेवाले उनकी हॉकी का शिकार हुए। उनकी कार्रवाई के दौरान ही एक हॉकर की मृत्यु हो गई। उस क्षेद्द के विधायक कृपाशंकर सिंह एवं सांसद प्रियादत्त ने इस घटना पर तीव्र विरोध दर्ज कराया तो मुख्यमंत्री ने ढोबले का स्थानांतरण कर उन्हें कंट्रोलरूम में बैठा दिया। अब उनके स्थानांतरण को शिवसेना और मनसे जैसे राजनीतिक दल क्षेत्रवाद से जोड़कर अपनी राजनीति चमकाने लगे हैं। कांग्रेस नेता कृपाशंकर सिंह ऐसी राजनीति को समाज के लिए घातक बताते हुए कहते हैं कि पुलिस या कोई भी सुरक्षाबल पूरे समाज के प्रति जिम्मेदार होता है। उसे लेकर क्षेत्रवाद की राजनीति नहीं की जानी चाहिए।

दूसरी ओर मुंबई के हॉकरों ने 24 जनवरी को हॉकरों पर हो रही कार्रवाई के विरोध में प्रदर्शन करने की घोषणा की है। हॉकरों के एक संगठन आजाद हॉकर्स यूनियन के संयोजक डी.के.सिंह कहते हैं कि पुलिस हॉकरों पर कार्रवाई करते समय मुंबई हाईकोर्ट के निर्णय का भी पालन नहीं कर रही है। हाईकोर्ट ऐसे हॉकरों को संरक्षण देने का आदेश दे चुका है, जो 1988 से 1998 के बीच फुटपाथ पर खोमचा-दुकानें लगाने के एवज में मुंबई महानगरपालिका को निर्धारित शुल्क अदा करते रहे हैं। डीके सिंह ढोबले को लेकर हो रही राजनीति को मॉल संस्कृति और गरीबों के बीच का टकराव मानते हैं। उनके अनुसार ढोबले का समर्थन वही लोग कर रहे हैं, जो मॉल में जाकर खरीदारी करते हैं।

error: Content is protected !!