दिल्ली गैंगरेप के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों और गुस्से को पूरी तरह जायज व जरूरी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने कहा, ‘मैं भी जंतर-मंतर जाना चाहता था, लेकिन नहीं जा सका।’ उन्होंने कहा कि 16 दिसंबर, 2012 को कुछ नया नहीं हुआ था, लेकिन घटना ने लोगों का ध्यान खींचा और गुस्सा व आक्रोश पैदा हुआ। इसके बाद हुए प्रदर्शन एकदम सही और जरूरी थे। उन्होंने दुष्कर्म के मामलों को देखने वाले न्यायिक अधिकारियों की सोच बदलने की जरूरत बताई।
‘मैं उन सभी को सलाम करता हूं, जिन्होंने सामूहिक दुष्कर्म के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों में शिरकत की।’ घरेलू हिंसा पर आयोजित एक सम्मेलन में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अब ऐसे लोगों और समूहों को कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, जो ऐसी घटनाओं का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते हैं। उन्होंने बताया कि इंडिया गेट पर हुए प्रदर्शन में उनके भतीजे की भी पिटाई हुई थी। यह आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से शुरू हुआ, लेकिन बाद में कुछ लोग इसमें घुसे और आंदोलन बदसूरत हो गया। उन्होंने कहा कि 16 दिसंबर की रात हुई वारदात केवल एक लड़की के खिलाफ नहीं थी, बल्कि महिलाओं और पूरे समाज के खिलाफ थी।
राजधानी में चलती बस में एक 23 वर्षीय फिजियोथेरेपिस्ट छात्रा के साथ वीभत्स सामूहिक दुष्कर्म की वारदात का जिक्र करते हुए मुख्य न्यायाधीश कबीर ने कहा, ‘इस घटना ने सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर समाज में चल क्या रहा है।’ हम में से बहुत से जज भी असंवेदनशील हैं। उन्होंने कहा कि मैं अक्सर जजों को महिलाओं की समस्याओं के प्रति संवेदनशील रहने की याद दिलाता रहता हूं। कानून के शब्दों के साथ ही उसकी आत्मा को भी समझना जरूरी है। अगर दोनों को साथ लेकर चलेंगे तो बेहतर होगा।