दिल्ली गैंगरेप का आरोपी बालिग या नाबालिग, फैसला आज

दिल्ली गैंगरेप मामले में पकड़े गए छठे आरोपी को नाबालिग न मानकर उसका मामला अन्य आरोपियों के साथ चलाया जाए, इस संबंध में जनता पार्टी अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा दायर एक अर्जी पर बाल न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड की प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट गीतांजलि गोयल इस संबंध में गुरुवार को फैसला सुनाएंगी।

स्वामी ने अर्जी में कहा था कि इस आरोपी के प्रति नरमी न बरती जाए क्योंकि उसका अपराध जघन्य है। उसका अपराध यह दर्शा रहा है कि यह किसी नाबालिग का काम नहीं है। स्वामी ने दलील दी कि भारतीय दंड संहिता की धारा 83 के तहत व्यवस्था है कि 12 वर्ष से ऊपर की उम्र के बच्चों द्वारा जघन्य अपराध करने पर उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है, बशर्ते यह साबित होता हो कि अपराधी दिमागी रूप से व्यस्क है।

मौजूदा मामले में नाबालिग के अपराध की प्रवृत्ति को देखकर कहा जा सकता है कि आरोपी दिमागी रूप से व्यस्क है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट कहता है कि 18 साल से कम उम्र के आरोपियों पर बाल न्यायालय में ही मामला चलाया जाना चाहिए। इन दोनों कानूनों में विरोधाभास है। इसलिए नाबालिग आरोपी पर आइपीसी के प्रावधानों के अनुरूप अन्य आरोपियों के साथ ही फास्ट ट्रैक अदालत में मामला चलाया जाना चाहिए। अन्य पांच आरोपियों के खिलाफ गुरुवार से फास्ट ट्रैक कोर्ट में आरोप पत्र पर सुनवाई शुरू होने वाली है। ऐसे में नाबालिग आरोपी का मामला भी फास्ट ट्रैककोर्ट में भेज दिया जाए। बाल न्यायालय इस अर्जी पर गुरुवार को शाम फैसला सुनाएगा।

बुधवार को स्वामी ने दिल्ली हाईकोर्ट में भी याचिका दायर कर कहा कि नाबालिग आरोपी का मामला अन्य आरोपियों के साथ फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलना चाहिए। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट और आइपीसी की दो धाराएं विरोधाभासी हैं। उन्होंने यह मामला बाल न्यायालय के समक्ष उठाया था, परंतु बाल न्यायालय ने कहा कि वह स्पष्टीकरण के लिए ऊपरी अदालत के पास जाएं। दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी मुरूगेसन व जस्टिस वीके जैन की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई से इन्कार करते हुए कहा कि उनको उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। पहले मामले को सेशन कोर्ट में उठाना चाहिए।

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