मैनहैटन से दिखने वाले गुड़गाँव की असलियत

गुड़गाँव शहर के बीचों-बीच एक तेईस मंज़िली इमारत की छत पर खड़े होकर देखने से ये गलतफहमी हो सकती है कि आप हिंदुस्तान में नहीं बल्कि न्यूयॉर्क के मैनहैटन इलाक़े में हैं.

चारों ओर चमचमाते शॉपिंग मॉल्स, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी धुरंधर कंपनियों के कॉरपोरेट ऑफिस, गगनचुंबी रिहायशी इमारतें और उनके ऊपर से गुज़रते हुए हवाई जहाज़.

पर तेईसवीं मंजिल से उतरकर सड़क पर पहुंचते ही मैनहैटन में होने की गलतफहमी एक झटके में दूर हो जाती है.

बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दमकते दफ्तरों के आसपास ही कूड़े के ढेर, जुगाली करती गायें, आवारा कुत्ते, बजबजाते नाले और अफरा-तफरी को बढ़ाने वाला अराजक ट्रैफिक.

ये उस गुड़गाँव की असली तस्वीर है जिसे एक दशक पहले “उभरते भारत” के आधुनिक शहर के तौर पर पेश किया गया था.

ये तस्वीर देखकर गुड़गाँव ही नहीं, बल्कि भारत के तमाम नए बनाए जा रहे शहरों का भविष्य डरावना लगता है.

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट से जुड़ी अनुमिता रॉयचौधरी साफ शब्दों में कहती हैं, “गुड़गाँव नए शहरों के लिए मिसाल नहीं है बल्कि इसे देखकर ये सबक लिया जा सकता है कि कैसे नए शहरों को गुड़गाँव न बनने दिया जाए.”

भयावह भविष्य

ये वो शहर है जिसकी 70 प्रतिशत आबादी भू-जल पर निर्भर है. जानकार कहते हैं कि अगले पांच साल में यहां जमीन के नीचे का पानी पूरी तरह सूख जाएगा.

और तब गुड़गाँव की कल्पना करना और भी भयावह होगा.

 

बसाने वालों ने शहर बसा दिया पर ये नहीं सोचा कि यहां की आबादी के कारण पैदा होने वाली गंदगी कहां जाएगी.

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने खबरदार किया है कि “इस शहर की आबादी 2021 में करीब चार लाख यानि दोगुनी हो जाएगी और इतनी गंदगी पैदा होने लगेगी कि गुड़गाँव की आबादी के खुद अपने ही मलमूत्र में डूबने की नौबत आ जाएगी”.

सीएसई की अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं, “किसी भी शहर के निर्माण से पहले उसका एक दूरदर्शी मास्टर प्लॉन बनाया जाता है. लेकिन गुड़गाँव के साथ ऐसा नहीं हुआ. यहां पहले घर बना दिए गए और जिसके बाद प्राधिकरण ने ये सोचना शुरु किया कि अब सड़क, पानी और बिजली कैसे लाया जाए. इस प्लान के ढांचे में ही खोट थी.”

कौन ज़िम्मेदार?

योजनाकार और आर्किटेक्ट कहते हैं कि गुड़गाँव के निर्माण के दौरान प्राइवेट बिल्डरों को इतनी छूट दी गई कि आज वहां सरकार से ज़्यादा बिल्डरों का वर्चस्व दिखता है.

पर बिल्डर कहते हैं कि इस स्थिति के लिए उन्हें ज़िम्मेदार ठहराना गलत है, क्योंकि उन्होंने हुडा यानी हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण को विकास के लिए करोड़ों रुपए दिए जिसका इस्तेमाल पानी और बिजली के विकास के लिए नहीं हुआ.

भारत में रियल एस्टेट कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्थान ‘क्रिडाई’ के अध्यक्ष ललित जैन का कहना है, “दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में मूलभूत सुविधाओं के बारे में निर्माण कार्य शुरु करने से पहले नहीं सोचा जाता. इसीलिए आज ऐसी धारणा बनी है कि गुड़गाँव एक बेकार शहर है.”

डीएलएफ और प्राइवेट बिल्डरों ने जहां निर्माणकार्य में खरगोश की रफ्तार पकड़ी, वहीं मूलभूत ढांचा बनाने में हुडा कछुए की तरह पीछे रह गया.

नतीजतन आज गुड़गाँव में आलम ये है कि पानी की ज़रूरत पूरा करने के लिए लोग जगह-जगह गैरकानूनी तौर पर बोरवेल खोद रहे हैं.

हर दिन 5-6 घंटे बिजली गुल रहना यहां आम बात हो गई है. कॉरपोरेट ऑफिस वालों के पास बड़े-बड़े जनरेटर हैं जबकि आम जनता इनवर्टर पर निर्भर है.

यहां के लोग मेट्रो ट्रेन के आराम का फायदा तो उठाते हैं, लेकिन ट्रैफिक की भयानक अराजकता के कारण मेट्रो से घर तक की दूरी तय करना उनके लिए दूभर हो जाता है.

पब्लिक ट्रांसपोर्ट की समुचित सुविधा न होने से लोग अपनी कारों से सफर करना पसंद करते हैं, पर 32 लेन का टोल हाइवे होने के बावजूद वो घंटो ट्रैफिक में फंसे रह जाते हैं.

ये सब देख कर लगता है कि यहां लोगों की ज़िंदगी सरकार की वजह से नहीं, बल्कि सरकारी नियंत्रण के बावजूद चल रही है.

कैसा शहरीकरण?

हालांकि खरगोश और कछुए की असल कहानी में अंत में कछुए की जीत होती है, लेकिन इस परिस्थिति में किसी को उम्मीद नहीं है कि हुडा ये रेस जीत पाएगा.

भ्रष्टाचार और सरकारी नियंत्रण के अभाव के आरोपों के बावजूद हुडा के प्रबंधक प्रवीण कुमार गुड़गाँव के भविष्य को लेकर आशान्वित हैं.

उनका कहना है, “मैं ये मानता हूं कि निर्माणकार्य और मूलभूत सेवाओं की डिलिवरी साथ-साथ नहीं हो पाई, लेकिन ये दरार इतनी बड़ी भी नहीं है जिसे भरा न जा सके. लोकतंत्र में प्रशासनिक कार्यों में ऐसी चुनौतियां हमेशा बनी रहती हैं जिसके कारण भ्रष्टाचार भी अनायास ही प्रणाली का हिस्सा बन जाता है. लेकिन मुझे यकीन है कि इन सभी चुनौतियों के बावजूद गुड़गाँव में अब भी दुनिया का सबसे बेहतरीन शहर बनने की क्षमता है.”

गुड़गाँव वाकई भविष्य में दुनिया का बेहतरीन शहर बन पाएगा या नहीं, ये तो नहीं कहा जा सकता.

लेकिन इस शहर की वर्तमान स्थिति ने ये सवाल ज़रूर खड़ा किया है कि भारत आखिर किस तरह का शहरीकरण चाहता है?

error: Content is protected !!