13 दिसंबर 2001, संसद पर हमला लोकतंत्र के मंदिर पर हमला था। इस हमले की खौफनाक साजिश पड़ोसी देश की जमीन पर रची गई थी। देश के लिए 13 दिसंबर, 2001 का वो मंजर लोगों के लिए भूलना आज भी आसान नहीं है। इस दिन को इतिहास के पन्नों पर काला दिन कहा जाता है। इस दिन 11 बजकर 40 मिनट पर जिस समय संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था, उस समय जैश-ए-मुहम्मद के पांच आतंकियों ने संसद भवन पर हमला किया था। यह सभी आतंकी एक लाल बत्ती वाली कार में आए थे जिस पर गृह मंत्रालय का स्टीकर लगा था।
हालांकि भारतीय जवानों ने आतंकियों को उनके नापाक मंसूबों में कामयाब नहीं होने दिया। संसद परिसर में तैनात सुरक्षा बलों ने इस हमले का मुंहतोड़ जवाब देते हुए सभी आतंकियों को मार गिराया था। इस आतंकी हमले में दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल, संसद के दो गार्ड, संसद परिसर में काम कर रहा एक माली और एक पत्रकार शहीद हो गए थे।
इन सब के पीछे जैश-ए-मुहम्मद के खूंखार आतंकी अफजल गुरु का हाथ था। हमले के बाद दिल्ली पुलिस ने इस हमले के मुख्य आरोपी अफजल गुरु को गिरफ्तार कर लिया था, जिसे अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। लेकिन लंबे समय तक इसे टाल दिया गया। लेकिन आखिरकार शनिवार 9 फरवरी को अफजल गुरु को फांसी दे दी गई।
मामले में कब क्या हुआ
13 दिसंबर, 2001 को संसद पर हुए हमले की साजिश रचने के आरोप में अफजल को सुनाई गई सजा-ए-मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त, 2005 को मुहर लगा दी थी। सजा पर अमल के लिए 20 अक्टूबर, 2006 की तारीख भी तय कर दी गई थी। लेकिन, इससे ठीक पहले 3 अक्टूबर, 2006 को अफजल की पत्नी तबस्सुम ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल कर दी थी। पांच साल से अधिक समय गुजरने के बाद भी इस दया याचिका पर कोई फैसला नहीं हुआ था।
दरअसल, राष्ट्रपति ने इस दया याचिका पर गृह मंत्रालय से राय मांगी और गृह मंत्रालय ने उसे दिल्ली सरकार के पास भेज दिया था। हैरानी की बात यह है कि दिल्ली सरकार ने चार साल तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया था।
गृह मंत्रालय के 15 बार याद दिलाने के बाद अंतत: 3 जून, 2010 को दिल्ली के उपराज्यपाल तेजिंदर खन्ना ने अफजल की दया याचिका को निरस्त किए जाने की राय दी थी। इसे एक साल से अधिक समय तक अपने पास रखने के बाद गृह मंत्रालय ने इस साल 27 जुलाई को राष्ट्रपति सचिवालय को बताया था कि अफजल की दया याचिका खारिज की जानी चाहिए।
पुराने रिकार्ड के मुताबिक दया याचिका पर फैसला लेने में राष्ट्रपति को सबसे कम 18 दिन और सबसे अधिक 12 साल तक का वक्त लगा है।