मकबूल भट, सतवंत सिंह, केहर सिंह, अजमल आमिर कसाब और अब अफजल गुरु-भारत के इतिहास में ये चौथा मौका है जब किसी आतंकी को फांसी देने के बाद उसका शव जेल में ही दफना दिया हो या अंतिम संस्कार कर दिया गया हो। सवाल उठता है कि फांसी के बाद शव पर किसका अधिकार हो। जाने-माने कानूनविद् आरएस. सोढी कहते हैं कि ऐसे मामले में शव पर सरकार का अधिकार होता है और यही दलील सतवंत सिंह और केहर सिंह के मामले में भारत सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी।
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश रह चुके जस्टिस सोढ़ी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों सतवंत सिंह और केहर सिंह का मामला याद करते हुए बताते हैं कि जब परिजनों ने अंतिम संस्कार के लिए सतवंत और केहर का शव और उनके अवशेष मांगे तो भारत सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि जब तक व्यक्ति जीवित रहता है तब तक तो उसका अपने शरीर पर अधिकार होता है। लेकिन फांसी के बाद शव पर किसी का हक नहीं होगा, शव पर सरकार का अधिकार होता है। तब सरकार ने अपनी दलील के पक्ष में ब्रिटिश काल के एक कानून का हवाला दिया था। सोढी उस मामले में सतवंत और केहर सिंह के वकील थे। सोढी बताते हैं कि उन्होंने परिजनों की ओर से याचिका दाखिल कर सतवंत और केहर के शवों की मांग की थी। उनकी याचिका पर सुप्रीमकोर्ट ने मामले में यथास्थिति कायम रखने के आदेश दिए थे। लेकिन सरकार ने फांसी देने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार भी तिहाड़ जेल में कर दिया। दूसरे दिन उन्होंने सुप्रीमकोर्ट में मुद्दा उठाया और सरकार पर आदेश के उल्लंघन का आरोप लगाया। साथ ही अंतिम रस्में पूरी करने के लिए अवशेष मांगे। हालांकि कोर्ट ने आदेश के उल्लंघन के आरोपों पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन सतवंत और केहर के अवशेष परिजनों को सौंपने के आदेश दिए और शर्त लगाई कि परिजन अवशेष लेकर कीरतपुर साहिब नहीं जाएंगे, बल्कि सरकार की देखरेख में अवशेष लेकर हरिद्वार जाएंगे
इसके पहले कश्मीर के आतंकी मकबूल बट का शव भी मांगा गया था। उसे 1968 में फांसी की सजा सुनाई गई थी लेकिन वह श्रीनगर जेल से सुरंग बनाकर पाकिस्तान भाग गया। 1974 में पाकिस्तान में गिरफ्तार हुआ तो भागकर फिर भारत आ गया। वह लंबे समय तक जेल में रहा और 11 फरवरी 1984 को उसे तिहाड़ में फांसी पर लटकाया गया। उसका शव भी तिहाड़ में दफना दिया गया था। सुप्रीमकोर्ट के वकील डीके. गर्ग मकबूल का केस याद करते हुए बताते हैं कि उसके दूर के रिश्तेदारों ने वकील रमेश पाठक के जरिये अर्जी दाखिल कर शव की मांग की थी। मामला बहुत संवेदनशील था। सरकार ने कानून व्यवस्था का हवाला देकर याचिका का विरोध किया और इसके बाद सुप्रीमकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
अब कसाब के बाद अफजल का शव भी जेल में दफनाया गया है। ये भी एक संयोग है कि दिल्ली के तीन सबसे बड़े आपराधिक मामलों यानी महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अब संसद हमले के गुनाहगार का अंतिम संस्कार जेल की चारदीवारी में हुआ है। शव उनके परिजनों को नहीं दिया गया।
अंतिम इच्छा का कानूनी प्रावधान नहीं :
फांसी की सजा से पहले अपराधी की अंतिम इच्छा पूरी करने या पूछने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। ये जेल की एक रवायत है जिसे जेल अधिकारी अपने स्तर पर पूरा करते हैं। गर्ग कहते हैं कि ये एक परंपरा ही है। अगर कोई अपराधी कहे कि फांसी आज नहीं कल दी जाए तो क्या अंतिम इच्छा मान ली जाएगी, नहीं। कानूनी प्रावधान होता तो अंतिम इच्छा मानना बाध्यकारी होता।